कठुआ पीड़िता की माँ ने कार्यकर्ताओं पर लगाया मदद के लिए जुटाए पैसों के गबन का आरोप

तालिब हुसैन कठुआ

PC: PTI

आपको कठुआ रेप केस याद है? एक जघन्य अपराध जिसे कुछ कार्यकर्ताओं ने अपने फायदे के लिए हिंदू समुदाय को आरोपी चित्रित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले के रसाना गांव में एक आठ साल की मासूम से सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में समाज के आत्मघोषित ठेकेदारों ने अपना एजेंडा साधने की पूरी कोशिश की। कुछ लोगों ने इसपर खूब राजनीति की और कठुआ पीड़िता के परिवार के लिए पैसे भी जुटाए थे लेकिन ये पैसे पीड़िता के परिवार तक नहीं पहुंच पाए। न्यूज़ 18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कठुआ रेप केस का ट्रायल कारगिल से 530 किलोमीटर दूर पठानकोट में चल रहा है जहां सुनवाई के लिए परिवार को लंबी दूरी तय कर जाना पड़ता है। पीड़िता के परिवार को कारगिल से पठानकोट के 530 किलोमीटर के लंबे रास्ते के दौरान खर्चे के लिए कई भेड़ और बकरियां बेचनी पड़ीं।

न्यूज़ 18 के अनुसार पीड़िता के पिता ने कहा, “मुझे तीन से चार बार कोर्ट जाना पड़ा। हर बार यात्रा के खर्चों के लिए मैंने कुछ भेड़ और बकरी बेच दी। मैं अपनी बच्ची को न्याय दिलाने के लिए सारी संपत्ति बेच दूंगा।”

इससे पहले ‘द ट्रिब्यून’ ने कठुआ रेप पीड़िता की माँ को उद्धृत करते हुए कहा,”वो तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता जो मेरी बेटी के साथ हुई क्रूरता और हत्या के बाद त्वरित न्याय की मांग करने में सबसे आगे थे वो अब अपना हित साधने के बाद से गायब हैं। पीड़िता की माँ ने आगे कहा, “उन लोगों मकसद सिर्फ इस मामले से अपना हित साधना था न कि मेरी बच्ची को न्याय दिलाना नहीं था। जिन्होंने ये जघन्य अपराध किया है हम चाहते हैं कि उन्हें सख्त से सख्त सजा दी जाए।” रेप पीड़िता के बायोलॉजिकल पिता ने कहा, कई लोगों उस घटना का फायदा उठाया और अब सभी नदारद हैं।”

‘द ट्रिब्यून’ के एक अन्य रिपोर्ट में पीड़िता के परिवार के एक सदस्य ने सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा पीड़िता के नाम पर जुटाए फंड के विवरण की मांग की है। पीड़िता के दादा ने कहा, “हमारे पास ये जानकारी है कि लोगों इस घटना के बारे बताकर लाखों रुपये जुटाए गये थे। उन्होंने आगे कहा, “जो लोग कल तक इंसाफ दिलाने की बात कर रहे थे आज वो हमारे फ़ोन कॉल्स भी नहीं उठा रहे हैं।”

अब सवाल ये उठता है कि जब पीड़िता के परिवार के नाम पर फंड एकजुट किये गये थे तो वो पीड़िता के परिवार को दिए भी गये होंगे लेकिन उन्हें फिर भी कारगिल से पठानकोट तक की यात्रा के लिए अपनी भेड़ और बकरियां क्यों बेचनी पड़ रही हैं ? स्पष्ट रूप से ये एकजुट फंड को लेकर इन तथाकथित कार्यकर्ताओं की नीयत पर कई सवाल खड़े करता है।

यहां गौर करने वाली बात ये है कि सामाजिक कार्यकर्ता और वकील तालिब हुसैन जिसने जम्मू कश्मीर में कठुआ रेप केस और हत्या मामले में न्याय की मांग के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया था वो भी रेप मामले में गिरफ्तार हुआ था। तालिब हुसैन पर जेएनयू की छात्रा ने सोशल मीडिया के जरिए रेप के आरोप लगाए थे जिसके बाद मशहूर वकील इंदिरा जयसिंह उनके एक केस की पैरवी छोड़ दी थी। तालिब हुसैन पर आरोप है कि उसने दहेज के लिए अपनी पत्नी को जान से मारने की कोशिश की थी।

हालांकि, विवादित जेएनयू छात्र कार्यकर्ता शेहला राशिद भी उन कार्यकर्ताओं में से एक थीं और शेहला पर भी पीड़ित परिवार के लिए जुटाए गए पैसों के गबन का आरोप लगा है लेकिन शेहला ने द ट्रिब्यून की रिपोर्ट को ख़ारिज दिया। शेहला ने कहा को खुद बायोलॉजिकल परिजनों से मुलकात की थी तब उन्होंने कहा था कि उन्हें कोई परेशानी नहीं है उन्हें जुटाए हुए फंड मिले हैं। एक के बाद एक ट्वीट कर शेहला ने एक बार फिर से वही किया जैसा वो हमेशा से करती ये हैं। अपने दावों को सही बताना वो भी बिना किसी सबूत के।

https://twitter.com/Shehla_Rashid/status/1058000891524141062

या तो पीड़िता के परिवार को फंड मिला है या नहीं मिला। यहां कोई तो खिचड़ी पक रही है लेकिन यहां झूठ कौन बोल रहा है इसकी जांच करने की जरूरत है।

 

Exit mobile version