जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने घाटी में राजनीतिक संकट को कैसे रोका

जम्मू-कश्मीर सत्यपाल मालिक

PC: Kashmir Reader

जम्मू कश्मीर में एक बार फिर से सियासी घमासान तेज हो गया है। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अचानक राज्य विधान सभा भंग कर दिया है। इससे पहले जम्मू-कश्मीर में तीन धुर विरोधी विचारधाराओं, कांग्रेस, पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाने की योजना बना रही थीं जबकि दूसरी तरफ पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद लोन भाजपा के साथ सरकार बनाने का दावा पेश कर रहे थे। ऐसे में राज्य के हित को देखते हुए पहले ही राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा ही भंग कर दिया। राज्य में बदले इस सियासी घटनाक्रम के बाद वहां सियासी हलचल तेज हो गई है। चारों तरफ से बयानबाजियां तेज हो गई हैं।  

दरअसल जम्‍मू एवं कश्‍मीर में पीडीपी-भाजपा गठबंधन टूट जाने के बाद पिछले 5 महीने से राज्‍यपाल शासन लागू था लेकिन, पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने बुधवार को राज्‍यपाल को एक पत्र लिखकर सरकार बनाने की पेशकश की थी, इसके लिए महबूबा मुफ्ती ने नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के विधायकों का समर्थन होने का दावा किया था। जबकि सज्जाद लोन ने राज्यपाल को लेटर लिख अपना दावा जताया था।

मुफ्ती ने राज्‍यपाल को बताया कि 87 सदस्यीय विधानसभा में उनके पास पीडीपी के 28 विधायकों के अतिरिक्‍त नेशनल कान्फ्रेंस के 15 और कांग्रेस के 12 विधायकों का भी समर्थन हासिल है। उन्‍होंने एक अन्‍य विधायक के भी समर्थन का दावा किया था। 

इस बीच, जम्‍मू एवं कश्‍मीर पीपुल्‍स कॉन्‍फ्रेंस के नेता सज्जाद लोन ने भी बीजेपी के 25 और 18 अन्‍य विधायकों के समर्थन से राज्‍य में सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। उन्‍होंने राज्यपाल को व्हाट्सऐप पर भेजे संदेश में कहा कि उनके पास सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़ों से कहीं अधिक विधायकों का समर्थन है।

इस सियासी उठापठक और खींचातानी के बीच राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने सूझबूझ से काम लेते हुए विधानसभा भंग कर दिया पर राज्य में स्पष्ट सरकार चुनने के लिए सभी पार्टियों को फिर से जनता दरबार में जाने का इशारा किया। अपने फैसले को लेकर राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने स्पष्ट रुप से कहा है कि मैंने किसी के भी साथ पक्षपात नहीं किया बल्कि राज्य की जनता के भले के लिए जो करना था वो किया। मैंने राज्य में अपवित्र गठबंधन होने से रोका है। बीजेपी ने राज्यपाल के फैसले का स्वागत किया है वहीं अन्य पार्टियां राज्यपाल से नाराज हैं।

इसके अलावा राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग करने के पीछे निम्न 4 स्पष्ट कारण भी गिनाए…

सरकार गठन के लिए ऐसी पार्टियों ने गठबंधन का दावा किया है, जिनके राजनीतिक विचार एक-दूसरे से मेल नहीं खाते। ऐसे में यहां इस गठबंधन के तहत बनने वाली सरकार के स्थिर रहने की संभावना नहीं के बराबर है। ये गठबंधन जनसमस्‍याओं के निराकरण के लिए सरकार गठन की बजाय महज सत्‍ता पाने की कोशिश प्रतीत होती है।

अलग-अलग विचारधाराओं वाली पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाने के दावें से विधायकों के खरीद-फरोख्‍त की आशंका बढ़ गई है। ये संभव है कि सरकार गठन के उद्देश्‍य से विधायकों का समर्थन हासिल के लिए उन्‍हें मोटी रकम की पेशकश की जाए या किसी अन्‍य रूप में लाभान्वित करने की पेशकश की जाए। ये लोकतंत्र के लिहाज से ठीक नहीं है और पूरी राजनीतिक प्रक्रिया को दूषित करता है।

ऐसे में जबकि सरकार गठन और बहुमत होने के संबंध में कई दावे हो रहे हैं, किसी भी व्‍यवस्‍था के लंबे समय तक चलने को लेकर संदेह है।

जम्‍मू एवं कश्‍मीर में सुरक्षा के हालात को देखते हुए यहां स्थिर सरकार की जरूरत हैं। सुरक्षा बल अपनी जान जोखिम में डालकर यहां आतंकियों के खिलाफ अभियान में मुस्‍तैदी से जुटे हैं और हालात को काबू करने की दिशा में बढ़ रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि यहां ऐसी सरकार का गठन हो, जो उन्‍हें समर्थन व सहयोग दे।

वहीं दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग को लेकर भाजपा नेता राम माधव ने कहा कि पीडीपी और नेशनल कांग्रेस ने राज्य में निकाय चुनावों का विरोध किया क्योंकि उन्हें सीमापार से निर्देश मिले थे। संभवतः उन्हें सरकार बनाने के नए निर्देश मिले होंगे। बता दें कि इससे पहले पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस समेत तमान स्थानीय दल राज्य में निकाय चुनाव का बहिष्कार कर चुके हैं।

अब विधानसभा भंग हो जाने पर अब सबके मन में ये सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या अगले चुनाव में कांग्रेस, पीडीपी और नेशनल कान्फ्रेंस जैसी तीन धुर विरोधी विचारधारा वाली पार्टियां सत्ता हथियाने के लिए एक साथ मैदान में उतरेंगी या अलग-अलग ही लड़ेंगी। और अगर किसी तरह से सत्ता के लालचवश एक साथ चुनाव मैदान में उतरते भी हैं तो “क्या जनता इन धुर विरोधी पार्टियों के नकाब लगाए चेहरे को न पहचान पाने की भूल करते हुए इनपर भरोसा करेगी?”

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