मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा कानून बनाकर करें राम मंदिर का निर्माण

इकबाल अंसारी राम मंदिर

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देश का लगभग हर नागरिक चाहता है कि अयोध्या में राम मंदिर बने। ऐसा हम नहीं बल्की एक के बाद एक आ रहे बयान बता रहे हैं। उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिज़वी के बाद अब अयोध्या-बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी ने भी राम मंदिर के लिए समर्थन दे दिया है। इकबाल अंसारी ने कहा कि अगर सरकार संसद में कानून बनाती है तो हमें कोई एतराज नहीं है, लेकिन इसका झगड़ा जल्द से जल्द खत्म किया जाय। ये वही मुस्लिम गुरू इकबाल अंसारी हैं जो कभी राम मंदिर निर्माण का विरोध कर रहे थे। 

इतना ही नहीं, इकबाल अंसारी ने भाजपा की तारीफ करते हुए कहा कि, “हम भाजपा को कभी दोषी नहीं मानते हैं। भाजपा की सरकार ठीक चल रही है।“ अयोध्या मुद्दे पर पक्षकार इक़बाल के इस बयान के बाद एक ओर जहां भाजपा और रामभक्तों में उत्साह और खुशी की लहर हैं तो वहीं विपक्षी खेमें में हलचल मच गई है। मंदिर न बनने के लिए बनाई गईं उनकी सारी योजनाएं किसी काम नहीं आ रही हैं। इससे पहले भी इकबाल अंसारी कई बार अपने राम मंदिर के निर्माण का समर्थन किया है और शांतिपूर्वक इस मामले को सुलझाने का समर्थन किया है। इकबाल अंसारी के बयान पर राम मंदिर के पुजारी सत्येंद्र दास ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “इकबाल अंसारी ने जो कहा है, हम उसका स्वागत करते हैं। सरकार को चाहिए कि वोजल्द से जल्द कानून बनाकर मंदिर का निर्माण कराए। इनके पिता हाशिम अंसारी ने भी अयोध्या विवाद के समाधान की पहल की थी लेकिन वह सफल नहीं हो पाए थे।“ गौरतलब है कि 29 अक्टूबर को राम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दी थी जिसके बाद से इस मसले को अध्यादेश लाकर सुलझाने की बात कही जा रही है।

बता दें कि ये पहला मौका नहीं है जब भारत के मुसलमान या उनके प्रतिनिधि मंदिर के समर्थन में बोले हैं। इससे पहले उत्तर प्रदेश शिया वक्फ़ बोर्ड के चैयरमैन वसीम रिज़वी ने भी मंदिर के समर्थन में खुलकर सामने आये थे। यही नहीं अयोध्या में राम मंदिर जन्मभूमि विवाद को सुलझाने हेतु साल 2017 में यूपी शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट में ये प्रस्ताव दिया था कि अयोध्या में वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज विवादित जमीन को राम मंदिर निर्माण के लिए दे दिया जाए और इसके बदले लखनऊ में ‘मस्जिद-ए-अमन’ बनवाई जाए। जिससे वर्षों से चला आ रहा ये विवाद सुलझ जाए। वसीम रिजवी ने कई बार अपने बयान में कहा है कि मंदिर निर्माण के लिए विवादित भूमि को दे कर सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देना चाहिए। तब पूरे भारत में उनके इस फैसले की सराहना की गयी थी।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे कहा गया था कि, “चूंकि मीर बाकी ने ये मस्जिद बनवाई थी और वे शिया समुदाय के थे, इसलिए मस्जिद पर शिया वक्फ बोर्ड का अधिकार है। वसीम रिजवी ने कई बार अपने बयान से ये संकेत दिया है कि बोर्ड को अयोध्या के इस विवादित जमीन को राम मंदिर निर्माण के लिए दे देना चाहिए क्योंकि ये उन्हीं की विरासत हैं और इससे देश में अमन और शांति का पैगाम देना चाहिए। जब शिया समुदाय के सर्वोच्च धार्मिक गुरु आयातुल्लाह अल सिस्तानी ने इराक से ई-मेल पर भेजे गए फतवे में मुस्लिम वक्फ संपत्ति को मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल के निर्माण के लिए देने की बता कही थी तब यूपी शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ने कहा था कि, “शिया वक्फ बोर्ड भारत के संविधान में जो नियम है उसके हिसाब से चलेगा न कि किसी आतंकी या फतवा के दबाव में चलेगा। हम अयातुल्ला की सलाह को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।” रिजवी ने यहां तक कहा था कि, “अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हिंदुओं की आस्था से जुड़ा है और शिया वक्फ बोर्ड देश और समाज के विकास को लेकर चिंतित रहता है। हिंदुओं को उनका अधिकार मिलना चाहिए और मुस्लिमों को दूसरों का हक छिनने से बचना चाहिए। वक्फ बोर्ड अपने फैसले पर कायम रहेगा चाहे पूरी दुनिया के मुस्लिम हमारे विरोध में क्यों न खड़े हो जायें।”

ऐसे में जिस तरह से एक के बाद एक भारतीय मुसलमानों के प्रतिनिधि दृढ़ता से मंदिर के समर्थन में और धार्मिक कटुता फैलाने वाले नेताओं व कट्टर मुस्लिम धर्मगुरूओं के विरोध में उतर रहे हैं, उसे देखते हुए एक बात तो तय है कि वो दिन दूर नहीं जब रामलला तिरपाल में नहीं, भव्य मंदिर में मिलेंगे। दूसरी तरफ चुनाव के समय में मंदिर मुद्दे को सुलझते देख कांग्रेस समेत तमाम फुटकर विपक्षी दलों का चुनावी मुद्दा खत्म होते दिख रहा है और इसके डर ने विपक्षी नेताओं की रातों की नींद उड़ा दी है। यही वजह है कि इन शुभ संकेतों से सत्ता के लिए पानी बिन मछली की तरह तड़फड़ाती कांगेस समेत तमाम विपक्षी दलों में खलबली मची है। उन्हें करारा झटका लगा है। खैर राम भक्तों को उम्मीद है कि जल्द ही राम मंदिर मामला सुलझ जायेगा और इससे भविष्य में कोई भी राजनीतिक पार्टी अपने फायदे के लिए धर्म की राजनीति कर पाने में असफल होगी।

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