बीजेपी छत्तीसगढ़ में क्यों हार गयी?

रमन सिंह छत्तीसगढ़ कांग्रेस चुनाव

PC: India Tv

विधान सभा चुनावों के नतीजे 11 दिसंबर को साफ़ हो गये। जब इन राज्यों में चुनाव हुए थे तब सिर्फ छत्तीसगढ़ ही एक ऐसा राज्य था जहां किसकी सरकार बनेगी ये स्पष्ट नहीं हो पा रहा था। हालांकि, जैसे ही नतीजे आने शुरू हुए थे छत्तीसगढ़ की स्थिति सबसे पहले साफ़ हो गयी और कांग्रेस को बहुमत मिला। छत्तीसगढ़ में हुई हार की जिम्मेदारी रामन सिंह ने स्वीकार की है। हुआ। उन्होंने बड़ी विनम्रता से हार को स्वीकार भी किया। इस हार की जिम्मेदारी को स्वीकार करते हुए रमन सिंह ने कहा भी कि, “मैं हार की नैतिक जिम्मेदारी लेता हूं, कांग्रेस को जीत की शुभकामनाएं देता हूं। मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर मैं जीत का श्रेय लेता हूं तो मुझे हार की जिम्मेदारी भी स्वीकार करनी होगी।” हालांकि, चुनावी नतीजों में जो उलटफेर हुए उसे रमन सिंह की हार के पीछे कई कारण हो सकते हैं। वो क्या कारण हो सकते हैं चलिए एक नजर डालते हैं:

अजीत जोगी फैक्टर

छत्तीसगढ़ में बीजेपी और कांग्रेस के बीच टक्कर के बीच जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रमुख अजीत जोगी की खूब चर्चा थी। मायावती और अजीत जोगी की जोड़ी के थर्ड फ्रंट में होने से कांग्रेस के वोट में सेंध लगने के आसार थे और हुआ भी ऐसा ही। अजीत जोगी ने दुर्ग, रायपुर और बिलासपुर संभाग में कांग्रेस के वोट शेयर का 9%  भाग अपनी तरफ खींचा जिससे कांग्रेस का वोट शेयर 40.3% से घटकर 31% पर पहुंच गया। यही नहीं इस गठबंधन के मत प्रतिशत में बढ़ोतरी ने भारतीय जनता पार्टी के परंपरागत मतदाताओं में भी सेंध लगाई जिससे बीजेपी नुकसान हुआ। ये वोट शेयर के आंकड़े चुनावी नतीजों को काफी प्रभावित करते हैं साल 2013 में यही कांग्रेस पार्टी 0.5% से कम वोटों के अंतर से हुई हार इसका बेहतरीन उदाहरण है। ऐसे में कांग्रेस ने इसकी भरपाई साहू-कुर्मी और ओबीसी वोट से किया और करीब 8-10% अपनी तरफ करने में कामयाब रही। इससे बीजेपी को पिछले चुनाव के मुकाबले में करीब 9% कम वोट मिले।

चुनाव प्रचार में रही कमी

विधान सभा चुनाव के लिए अन्य राज्यों में मोदी-शाह ने कई रैलियां की लेकिन छत्तीसगढ़ में प्रचार की जिम्मेदारी यूपी के सीएम योगी के अलावा रमन सिंह की थी क्योंकि डॉक्टर सिंह यहां सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं। चावल वाले बाबा के नाम से मशहूर रमन सिंह का ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रियता का पैमाना सबसे ऊपर रहा है। यहां तक कि विपक्ष भी उनका लोहा मानता है फिर भी प्रचार में कमी कहां रह गयी? दरअसल, पार्टी राज्य में सत्ता विरोधी लहर का सही आंकलन करने में विफल रही। बेहतर योजनायें और विकास और जनता की भलाई के लिए कई कदम उठाने वाले रमन सिंह पार्टी में बागी नेताओं और सत्ता विरोधी लहर की नब्ज को नहीं पकड़ पाए।

अवधारणा की लड़ाई हारे रमन सिंह

छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बनेगी या नहीं इस अवधारणा की लड़ाई जैसे रमन सिंह पहले ही हार गये थे। उनके मंत्रालय के कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे यहां तक कि कांग्रेस ने रमन सिंह के बेटे का नाम पनामा पपेर्स लीक मामले में भी उछाला जिससे उन्हें चुनावों में भारी नुकसान भी हुआ।  शहरी क्षेत्रों एम् भ्रष्टाचार का मुद्दा हवाई रहा। कांग्रेस ने ऐसा माहौल बनाया कि चावल बाबा नाम से मशहूर रमन सिंह की की पीडीएस योजना में घोटाले की खबरों ने भी उनके खिलाफ माहौल बनाने का काम किया।

वास्तव में रमन सिंह ने अपने पहले कार्यकाल से ही कई सफल योजनाओं को लागू किया था जिसका फायदा आम जनता को मिला था। यहां तक कि किसान भी उनके नेतृत्व से खुश थे लेकिन हाल के समय में वो अपने कार्यकाल में किये गये विकास पूर्ण कार्यों का सही तरह से प्रचार नहीं कर पाए और कहीं न कहीं जनता से उनके जुड़ाव में कमी भी इसकी वजह रही।  इसके अलावा बीजेपी की हार के पीछे जो वजह थी उनमें से एक ईसाई मिशनरियों पर धीमी कार्रवाई। वो मिशनरी जो आदिवासी इलाकों में बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन को अंजाम दे रहे जो एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। 

यही नहीं कांग्रेस की जीत में सबसे बड़ी भूमिका प्रदेश प्रमुख पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री चरणदास महंत, प्रदेश पार्टी प्रमुख भूपेश बघेल और ओबीसी नेता ताम्रध्वज साहू की भी रही। भूपेश बघेल ने तो कांग्रेस को बूथ स्तर पर मजबूत करने के लिए खूब काम किया और इसका फायदा भी कांग्रेस को हुआ।

कुल मिलाकर अगर बीजेपी ने प्रचार के लिए थोड़ी ताकत झोंकी होती और हर स्तर पर पार्टी को मजबूत करने के थोड़ा और प्रयास किया होता तो शायद रमन सिंह की हार नहीं हुई होती। पार्टी इस भरोसे बैठी थी कि नक्सली इलाकों के अलावा पूरे राज्य में विकास के नाम पर जनता रमन सिंह का साथ जरुर देगी लेकिन जनता ऐसा नहीं हुआ। खैर, हम उम्मीद करते हैं कि अगली बार वो इस तरह की कोई भी लापरवाही करने से बचेंगे और अपनी दावेदारी को मजबूत करने का भरसक प्रयास करेंगे।

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