कांग्रेस ने मध्य प्रदेश चुनाव से पहले कहा था सिर्फ दस दिनों में किसानों का कर्ज माफ़ कर दिया जायेगा लेकिन कर्ज में डूबे मध्य प्रदेश की नयी सरकार के लिए इस वादे को निभाना मुश्किल है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान चुनावी वादों के लिए जानी-जाने वाली कांग्रेस ने इस बार के चुनाव प्रचार के दौरान भी जमकर चुनावी वादे किए। वहीं दूसरी ओर अपनी छोटी-छोटी गलतियों के कारण बीजेपी बहुमत हासिल करने से थोड़ा सा चूक गई। जिस कारण कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई। मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने सरकार बनाते ही, अपने बड़े-बड़े वादों के अनुरूप कांग्रेस ने किसानों की कर्जमाफी का ऐलान कर तो दिया है लेकिन अब सवाल ये उठता है कि कांग्रेस ने चुनावी महत्वाकांक्षा के बीच किए गए बड़े-बड़े वादों को पूरा करने के लिए सरकार के कोष में पैसे कहां आएंगे। पैसे आएंगे भी तो वो आम जनता के ही पैसे होंगे, जनता के कोष के पैसे होंगे, ऐसे में जनता के कोष के पैसों से अपनी चुनावी रोटी सेंकने वाली कांग्रेस उन पैसों की भरपाई कैसे करेगी।
बता दें कि चुनाव प्रचार के दौरान जनता के बीच अपनी खोई हुई पैठ बनाने के लिए कांग्रेस ने ढेरों-ढेर हवा-हवाई वादे किए। उस समय कांग्रेस ने वादों की कतारें लगा दीं। इस दौरान कांग्रेस ने मध्यम और निचले स्तर के किसानों के अधिकतम 2 लाख तक के कर्ज माफ करने की घोषणा कर दी। यही नहीं, कांग्रेस ने हर बेरोजगार युवा को 10 हजार रुपये भत्ता, छात्राओं को पीएचडी तक की शिक्षा मुफ्त देने, 5 रुपये लीटर दूध देने, सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि 300 से बढ़ाकर 1000 रुपये करने, छोटे किसानों की बेटियों के विवाह के लिये 51000 के अनुदान, किसानों के बिजली बिल माफ करने जैसे ढेरों वादों पर वादे कर गई। कांग्रेस को केवल और केवल सत्ता की कुर्सी दिख रही थी। कांग्रेस चुनाव जीतने के लिए कुछ भी ऐलान करने के मूड में थी लेकिन अब, जब सत्ता हाथ लग गई है तो ऐसे में कांग्रेस के सामने समस्या ये है कि वो इतनी हवा-हवाई योजनाएं लागू करने के लिए सरकारी कोष में पैसे कहां से लाएगी।
मध्य प्रदेश के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 23 लाख से अधिक लोग बेरोजगार है ऐसे में इतने लोगों को पैसे देने के लिए 28 हज़ार करोड़ रुपये चाहिए होंगे. किसानों की कर्ज माफ़ी के लिए 50 हजार करोड़ चाहिए होंगे अब सवाल ये है कि इतने पैसे प्रदेश सरकार कहां से लाएगी? मध्य प्रदेश सरकार ने पिछले साल के बजट में लगभग 30 हजार करोड़ रुपये का घाटा पेश किया था। ऐसे में कर्ज माफ़ी और अन्य वादों को पूरा करने के लिए कमलनाथ की सरकार या तो जनता को टैक्स के बोझ तले दबाना चाहेगी या फिर वादे कागजों पर पूरे दिखेंगे लेकिन हकीकत में नहीं।
बता दें कि सरकारी कोष में पैसों पर हर विभाग, हर क्षेत्रों के लोगों का हिस्सा निश्चित होता है। कांग्रेस पार्टी उन सरकारी पैसों को इस्तेमाल अपने निजी वोटों को साधने के लिए करना चाहेगी है। संभव है कि कांग्रेस पार्टी इन योजनाओं को किसी तरह खानापूर्ति करने के लिए लागू कर भी दे लेकिन ऐसा करके कांग्रेस पार्टी जनता के पैसों को गलत तरीके से उपयोग करेगी। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि ऐसा करने पर कांग्रेस दूसरे विभागों के फंड में कमी करेगी। इसलिए अब ये गौर करने वाली बात होगी कि कांग्रेस अपनी किन-किन योजनाओं को लागू करेगी। उन योजनाओं के लिए पैसे कहां से लाएगी, किन विभागों की फंडिंग में कटौती करेगी।
बता दें कि, इससे पहले कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक में भी किसानों की कर्जमाफी जैसे बड़े-बड़े वादे किए थे। लेकिन सरकार बनने के बाद किसानों की कर्जमाफी का ऐलान भी कर दिया लेकिन किसानों की कर्जमाफी के लिए ग्यारह शर्तें रखी गयी थीं। इस वजह से चार महीने में सिर्फ 400 किसानों का ही कर्ज माफ़ हो पाया और कर्ज न चुकाने के कारण किसानों की गिरफ़्तारी हो रही है। इस खबर से कांग्रेस की काफी किरकिरी हुई थी। आंकड़ों को देखें तो कर्नाटक की GDP मध्य प्रदेश से लगभग दोगुनी है और कर्नाटक सरकार ने किसानों की कर्जमाफी के लिए 34 हज़ार करोड़ रुपये दिए थे लेकिन फिर भी कई किसान कर्ज माफ न होने से परेशान हैं। ऐसे में मध्य प्रदेश सरकार लगभग आधे बजट के साथ 50 हज़ार करोड़ की कर्ज माफ़ी और 28 हजार करोड़ का बेरोजगारी भत्ता कहां से देगी?
ऐसे में अब, जबकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने सरकार बना ली है, तो देखने वाली बात ये होगी कि वो किसानों की कर्जमाफी कितनी ईमानदारी से करती है और अगर करती भी है तो उसके लिए सरकार के कोष में पैसे कहां से आएंगे।