मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान ने 29 नवम्बर 2005 को जब पहली बार शपथ ली थी तो उस समय किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि, शिवराज का जादू राज्य की जनता के सिर कुछ यूं चढक़र बोलने लगेगा कि, वो पूरे राज्य के ही मामा हो जाएंगे। उनसे प्रदेश का हर बच्चा मामा जैसा अपनत्व का संबंध रखेगा। प्रत्येक महिला भाई जैसा दुलार महसूस करेगी। राज्य में जलापूर्ति का मामला हो, बिजली आपूर्ति की बात रही हो या फिर जनहित से जुड़ा कोई अन्य मामला रहा हो, शिवराज सरकार ने अपने शासन में हर मामले और हर क्षेत्र में बारीकी से ध्यान दिया है। यह शिवराज सिंह चौहान ही थे, जिनकी सरकार में नर्मदा-गंभीर लिंक परियोजना के लिये 2 हजार करोड़ रुपये स्वीकृत हुए थे। शिवराज सरकार में चौबीस घंटे बिजली देने के लिए 9704 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया। गरीब और आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों के लिए प्री-मैट्रिक और मैट्रिक स्कॉलरशिप की व्यवस्था की गई। उनके लिए नये छात्रावासों की व्यवस्था के साथ राजीव आवास योजनान्तर्गत नगरीय निकायों में 15 हजार 430 आवास के विकास में 1781 करोड़ रुपये मंजूर किए गए। यही नहीं शिवराज सिंह एक दशक से भी कम समय में मध्यप्रदेश को बीमारू राज्य से देश के अग्रणी राज्यों में ले आए।
जिस समय शिवराज सरकार सत्ता में आई थी, उस समय कृषि उत्पादन में देश में एमपी का हिस्सा मात्र 5% ही था। लेकिन जैसे-जैसे शिवराज सरकार अपने रंग में आती गई, यह आकड़ा बढ़ता गया। 2014 में यह आकड़ा 8% तक पहुंच गया। शिवराज सरकार में राज्य में क़ृषि की आधारभूत संरचना को मजबूत करने का लक्ष्य रखा गया। दिग्विजय सिंह की सरकार में ज्यादातर किसान सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर थे लेकिन चौहान ने सरकार में आते ही कृषि पर भारी-भरकम खर्च किया। नतीजा यह रहा कि, मध्यप्रदेश में किसानों की स्थिति में तेजी से सुधार हुए। दिग्विजय सिंह की सरकार में गेंहू का उत्पादन 11.3% से घटकार 10.2% पर आ गया था, शिवराज सरकार में यह उत्पादन लगभग दोगुना होकर 17% पर पहुंच गया। यह शिवराज सिंह की प्रबल इच्छाशक्ति ही थी, जिसके कारण राज्य में किसान खुद को सुरक्षित महसूस करने लगे। मामा के सरकार में सिर्फ गेंहू ही नहीं, बल्कि सोयाबीन (90%), चना (36%), तिलहन (25%) और दाल (24%) हिस्सेदारी तक पहुंच गया।
शिवराज सरकार में प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्जवला योजना और बिजली कनेक्शन जैसी कई योजनाएं प्रदेश में लोगों के विकास का जरिया बनीं। सरकार ने कृषि संबंधी गतिविधियां, सिंचाई, नवकरणीय ऊर्जा, पेयजल, नगरीय विकास एवं पर्यावरण, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास, वाणिज्य, उद्योग एवं रोजगार, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति कल्याण,पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक कल्याण, वन, खाद्यान्न सुरक्षा, कुटीर एवं ग्रामोद्योग, पर्यटन, संस्कृति, धार्मिक न्यास, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, खेल एवं युवक कल्याण, राजस्व, सुशासन, परिवहन,न्याय, प्रशासन या शासकीय सेवकों को सुविधाएँ देने की बात हो, मुख्यमंत्री और उनकी मंत्री परिषद ने राज्य से जुड़े सभी विषयों और विभागों पर गंभीर चिंतन कर योजनाओं का निर्माण और उसकी पूर्ति के लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था रखी थी।
यह राज्य सरकार द्वारा कृषि के क्षेत्र में किए गए सराहनीय कार्यों का ही परिणाम है कि, देश में लगातार कई वर्षों तक सर्वाधिक कृषि विकास दर मध्यप्रदेश की रही है। यही कारण था कि मध्यप्रदेश को लगातार तीन वर्षों तक ‘कृषि कर्मण अवार्ड’ मिला। वहीं दुग्ध उत्पादन में मध्यप्रदेश की वार्षिक विकास दर देश में सबसे अधिक है।
यह शिवराज सिंह के सुशासन का ही नतीजा था कि, मध्य प्रदेश का इंदौर लगातार दो साल तक पूरे देश में सबसे स्वच्छ शहरों में जगह बनाकर राज्य का गौरव बढ़ा रहा है। चौहान ही मध्यप्रेदश को ‘बीमारू’ राज्यों की श्रेणी में से देश के अग्रणी राज्यों में लेकर आए। शिवराज ने जनता के लिए इतनी योजनाएं लागू की हैं कि, जन्म से लेकर मृत्यु तक लोगों को सरकारी लाभ मिलता था। शिवराज सरकार में वरिष्ठ नागरिकों के लिए तीर्थयात्रा से लेकर महिलाओं का प्रसव और लड़कियों के विवाह तक के लिए आर्थिक सहायता की योजनाएं लागू हुई। शिवराज सिंह चौहान शासन में सारी योजनाएं जरूरतमंदों के लिए थीं।
शिवराज सिंह चौहान ने अपने कार्यकाल के 13 वर्षों की अवधि में राज्य की तस्वीर ही बदलकर रख दी। आलोचना करने वाले और कमियां ढूंढऩे वाले भले ही कितनी भी कमियां निकालने का प्रयास करें, लेकिन अकेले में तो वो भी स्वीकार करते रहे कि, एमपी में लगातार विकास की नई गाथा लिखी जा रही है। भले ही शिवराज सिंह को प्रदेश में सबसे ज्यादा वोट शेयर मिलें हों, लेकिन आंकड़े सूबे में उनकी सरकार नहीं बना रहे। शिवराज की लोगों तक पहुंच को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि, मामा ने भांजों और बहनों को ही नहीं खोया है, भांजों और बहनों ने अपना मामा खो दिया है।