हर हार के पीछे उसकी राजनीतिक परिस्थितियां होती हैं लेकिन क्यों पीएम मोदी को बनाया जाता है निशाना ?

मोदी राहुल चुनाव

PC: Patrika

आज पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव के नतीजे सामने आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस ने बढ़त बना ली है और मध्य प्रदेश में भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली। हालांकि, हार जीत होना उस राज्य की इकाई की शक्ति पर निर्भर करता है लेकिन मीडिया और कुछ पत्रकार हर छोटी-बड़ी जीत को मोदी लहर से जोड़कर पेश करते हैं। यहां तक कि ग्राम पंचायत के चुनावों में भी हार का ठीकरा पीएम मोदी पर फोड़ा जाता है लेकिन अगर कांग्रेस जीत रही तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को नया हीरो का तमगा दे दिया जाता है। ये आज की कहानी नहीं है बल्कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद से लुटियंस मीडिया हर चुनाव को उस राज्य की पार्टियों के बीच की टक्कर को न दिखाकर उसे मोदी बनाम राहुल गांधी का एंगल देती रही है।

इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला जहां पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव को मोदी बनाम राहुल गांधी बना दिया गया। चाहे गुजरात विधान सभा चुनाव हो, कर्नाटक विधान सभा चुनाव हो या उत्तर प्रदेश के उपचुनाव हों अगर बीजेपी हार रही तो मोदी लहर का असर फीका पड़ गया है और अगर कांग्रेस जीत रही तो राहुल गांधी के नेतृत्व का सकारात्मक प्रभाव बता दिया गया। यहां तक कि इन चुनावों को लुटियंस मीडिया ने लोकसभा से पहले बीजेपी के लिए सेमीफाइनल करार दिया। हालांकि, अगर हम इन सभी राज्यों की पार्टी की इकाइयों पर गौर करें तो जीत और हार उस राज्य की राजनीतिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है न कि पीएम मोदी की लहर पर। छत्तीसगढ़ राजस्थान और मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस का प्रदर्शन इन राज्यों में इनकी इकाइयों पर निर्भर है ऐसे में हर हार को मोदी लहर से जोड़ना कहां तक सही है? खैर, किसी भी राज्य में किसी भी पार्टी की हार या जीत के पीछे कई कारक हो सकते हैं जैसे जातीय समीकरण, सत्ता विरोधी लहर आदि।

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार 15 सालों से है और यहां भारतीय जनता पार्टी को सत्ता विरोधी लहर के कारण भारी नुकसान हुआ। हालांकि, यहां शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता ही है कि 15 सालों बाद भी यहां भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन छत्तीसगढ़ की तुलना में बेहतरीन रहा। हालांकि, 15 सालों से भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और मतदाताओं ने बदलाव के लिए इस बार कांग्रेस को मौका दिया है। मध्य प्रदेश में कमल नाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने बिना किसी झिझक के ‘नर्म हिंदुत्व’ का कार्ड खेला। प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने मध्य प्रदेश में पार्टी के घोषणा पत्र में गौ शाला निर्माण, और घायल गायों का इलाज, राम पथ का निर्माण जैसे कई मुद्दों को शामिल किया। हालांकि, अगर गौर किया जाए तो कई मामलों में कांग्रेस बीजेपी से ये विधानसभा चुनाव हार गयी है क्योंकि उसने कोई तुष्टिकरण की राजनीति करने की बजाय अपने कार्यों को मुद्दा बनाया। भारतीय जनता पार्टी इन दोनों ही राज्यों में 15 सालों से हैं ऐसे में बीजेपी की हार सिर्फ इसलिए भी है क्योंकि जनता को कुछ नया चाहिए था और कांग्रेस का चुनाव भी उसी का हिस्सा है।

राजस्थान की बात करें तो यहां युवा नेता सचिन पायलट ने कांग्रेस को एक बार फिर से उभारने के भरसक प्रयास किया जो साल 2013 में बुरी तरह से हार गयी थी। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रचार करने के बाद से आत्मविश्वास से परिपूर्ण थे और उनका आत्मविश्वास भी कहीं न कहीं कांग्रेस को राज्य में एक बार फिर से ऊपर उठाने में कामयाब रहा। इन नेताओं के कार्यों का श्रेय सीधा गांधी वंशज के माथे मढ़ दिया गया। जबकि सही मायने में राजस्थान में कांग्रेस की जीत का श्रेय अशोक गहलोत को जाना चाहिए जिन्होंने पूरे राजस्थान में चुनाव की कमान संभालने का काम किया था। इसके साथ ही युवा नेता सचिन पायलट का प्रचार और उनके नेतृत्व की वजह से कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा और राजस्थान में वो जीत सकी। इसके अलावा वसुंधरा राजे का आम जनता से जुड़ाव में कमी भी कांग्रेस की जीत की वजहों में से एक है। राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान ये नारे भी तेज थे कि “मोदी तुझसे बैर नहीं वसुंधरा तेरी खैर नहीं।” वसुंधरा के तानाशाही रवैये की वजह से भारतीय जनता पार्टी के कई नाराज नेताओं ने पार्टी से अलग होने का फैसला किया था। जाट नेता हनुमान बेनीवाल भी वही हैं जिन्होंने बीजेपी से अलग होने के बाद नयी पार्टी का गठन किया था। पीएम मोदी ने भी राजस्थान में समीकरणों को बदलने के लिए रैलियां की थी लेकिन वो सत्ता विरोधी लहर को खत्म नहीं कर पाए।

छत्तीसगढ़ में रमन सिंह ने सत्ता विरोधी लहर के सामने सीधे घुटने टेक दिए यहं तक कि उन्होंने राज्य में हार की जिम्मेदारी भी स्वीकार कर ली। उनका ‘चावल वाले बाबा’ की छवि इस बार काम नहीं आई। पनामा पेपर्स लीक मामले में कांग्रेस द्वारा रमन सिंह के सांसद बेटे का नाम उछाला जाना भी रमन सिंह की हार की वजहों में से एक हो सकता है। यही वजह थी कि इस बार जनता ने बीजेपी को नहीं बल्कि नया विकल्प चुनने का फैसला किया।

वास्तव में सत्ता-विरोधी लहर, अति आत्मविश्वासी बीजेपी नेता, राज्य में कांग्रेस का मजबूत नेतृत्व ही वो कारण हैं जिस वजह से हिंदी बेल्ट में बीजेपी की हार हुई न कि राहुल गांधी का नेतृत्व इसके पीछे का कारण है। फिर लुटियंस मीडिया हर जीत का ठीकरा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को देते हैं जबकि वो जमीनी स्तर पर एक असफल नेता हैं जो पार्टी को एक सूत्र में बाँध कर नहीं रख पाते और न ही बड़े दिग्गज उनकी सुनते हैं। जबकि इसके विपरीत पीएम मोदी ने हर स्तर पर एक बेहतरीन नेतृत्व किया है और हर प्रयास किया है सभी को एकसाथ लेकर चलने और विकास के लिए कार्य करने का। यही वजह है कि देश में उनकी लोकप्रियता सभी से ऊपर है। हालांकि, कुछ मीडिया और पत्रकार हर छोटी हार का ठीकरा भी पीएम मोदी पर फोड़ते हैं चाहे वो उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों गोरखपुर और फूलपुर में बीजेपी की हार हो या चाहे जेएनयू में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की हार हो या कोई पंचायत चुनाव हो यदि बीजेपी की हार हुई तो इसमें सारा दोष पीएम मोदी का है क्योंकि उनकी लहर फीकी पड़ रही है। हालांकि, न ही इन राज्यों में नेताओं का ट्रैक रिकॉर्ड न ही लोगों की नाराजगी बस वजह है तो पीएम मोदी। यही नहीं हर छोटी बड़ी जीत के साथ निधि राजदान या रविश कुमार जैसे पत्रकार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सीधा प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी भी कर जाते हैं।

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