नोटा (NOTA) के विकल्प को ये सोचकर लाया गया था कि इससे ये पता चल सकेगा कि कितने लोग कितने प्रत्याशियों को नापसंद करते हैं। उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि आगे चलकर ये तिकड़ी का काम करेगा। आगे चलकर ये अच्छे-अच्छों का खेल बिगाड़ेगा लेकिन अब यही हो रहा है। हाल ही में बीते 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में नोटा ने बीजेपी की जमकर लुटिया डुबोने का काम किया है। जबकि यही नोटा कांग्रेस के लिए डूबते को तिनके का सहारा का काम कर गया। ऐसा हम हवा-हवाई नहीं कह रहे हैं। हम आपके लिए पूरे आंकड़े लेकर आए हैं। तो आइए हम आपको इस आश्चर्यचकित करने वाले आंकड़े को दिखाते हैं…
सबसे पहले तो चौंकाने वाला ये तथ्य है कि जिन आंकड़ों के आधार पर कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में बीजेपी के 13 सालों के अश्वमेघ यज्ञ को रोकने में गिरते-पड़ते कामयाबी हासिल की है, वो NOTA के हिस्से में गए वोट का लगभग 15वां हिस्सा है। अगर हम राजस्थान की बात करें तो राजस्थान में बीजेपी को जितने प्रतिशत वोट से हार मिलती दिख रही है, वो NOTA के पक्ष में गए वोट के एक-तिहाई से भी कम है। इस बार वोटों के गणित में नोटा की भूमिका का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
दरअसल, मतगणना के मुताबिक मध्यप्रदेश में बीजेपी को कुल 41.3 प्रतिशत वोट मिले हैं। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को 41.4 प्रतिशत वोट मिले हैं। आंकड़ों में साफ दिख रहा है कि दोनों के वोट प्रतिशत में महज 0.1 प्रतिशत का अंतर है, जो एक प्रतिशत का 10वां हिस्सा है। जबकि राज्य में नोटा के खाते में गए वोटों का प्रतिशत लगभग 1.5 है, यानी हार के अंतर का 15 गुना। यानी अगर हम संख्या की बात करें तो कुल 4,56,151 मतदाताओं ने NOTA के पक्ष में वोट दिया है। मध्य प्रदेश के इन आंकड़ों को आप खुद देखिये आपको समझ आ जायेगा कि बीजेपी की हार के पीछे नोटा का सबसे बड़ा हाथ है।
जब बात राज्यों के नतीजों की 2019 के परिपेक्ष में आंकलन की हो तो मध्यप्रदेश के इन आंकड़ों को भी देखना होगा जहां कांग्रेस बस किसी तरह जीती। NOTA को वोट न जाता तो परिणाम बदल भी सकते थे।उधर BJP का वोट प्रतिशत इंटैक्ट है।ऐसे में MP में 2019 में किसका पलड़ा भारी है समझा जा सकता है। pic.twitter.com/rYvtbv26YV
— Sushant Sinha (@SushantBSinha) December 12, 2018
इसी तरह विधानसभा चुनाव में दिलचस्प तस्वीर राजस्थान में भी देखने को मिली है। राजस्थान में बीजेपी को 38.8 प्रतिशत तो कांग्रेस को 39.2 प्रतिशत वोट मिले हैं। दोनों के वोट प्रतिशत का अंतर महज 0.4 प्रतिशत है। वहीं दूसरी ओर अब तक राज्य में नोटा के खाते में गए वोटों का प्रतिशत 1.3 है। यानी हार और जीत के अंतर के तीन गुने से भी अधिक लोगों ने नोटा के पक्ष में वोट दिया है। वहां कुल मिलाकर 4,47,133 लोगों ने नोटा के पक्ष में वोट दिया।
हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता विरोधी लहर थी जिसके कारण छत्तीसगढ़ के मामले में तस्वीर थोड़ी अलग है। छत्तीसगढ़ में भाजपा को जहां 33 प्रतिशत वोट मिले तो वहीं कांग्रेस के खाते में 43.3 प्रतिशत वोट पड़े। जबकि नोटा के पक्ष में वोट डालने वालों का प्रतिशत वहां 2.1 रहा। जो ये बताता है कि यहां कुल 2,01,793 लोगों ने नोटा का बटन दबाया।
छत्तीसगढ़ जैसा ही हाल तेलंगाना का भी रहा, हालांकि यहां सत्ता-विरोधी लहर जैसी कोई चीज नहीं थी। इसके विपरीत यहां प्रो-इनकम्बैंसी थी। यानी वर्तमान सरकार के पक्ष में जोरदार हवा चली था। यहां टीआरएस को 47 प्रतिशत वोट मिले। टीआरएस को दो-तिहाई सीटों पर जीत भी मिली। जबकि कांग्रेस को 28.7 प्रतिशत वोट ही मिले लेकिन नोटा की हवा यहां भी कम नहीं था। यहां 1.1 प्रतिशत लोगों ने नोटा पर ऊंगली रखी।
पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में भी नोटा के पक्ष में वोट डालने वालों का प्रतिशत 0.5 रहा। जबकि जीत और हार का अंतर 7.4 प्रतिशत रहा। एमएनएफ को जहां 37.6 प्रतिशत तो कांग्रेस को मिले वोट का प्रतिशत 30.2 रहा।
इन आंकड़ों को देखकर साफ-साफ कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में नोटा ने एक ओर जहां बीजेपी के लिए नाव में ‘बिग होल’ का काम किया है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के लिए डूबते को तिनके का सहारा वाला काम किया है। इन चुनाव के नतीजों से एक बात और साफ है कि आखिर क्यों विपक्षी दल NOTA…NOTA…NOTA… करके नोटा का प्रचार करते रहे है। दरअसल एससी-एसटी एक्ट को लेकर बीजेपी के मर्थकों में खासी नाराजगी थी। ये बात कांग्रेस को पता थी। कांग्रेस और विपक्षी दल जानते थे कि उन्हें बीजेपी समर्थक कभी वोट नहीं करेंगे ऐसे में उन्हें ये बात समझ में आ गई कि नोटा हमारे लिए संजीवनी का काम करेगा और वो अपनी रणनीति में कामयाब हो गए। इसलिए अब, जबकि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, जनता को विपक्ष द्वारा नोटा के समर्थन में किए जाने वाले प्रचार-प्रसार के लिए तैयार रहना होगा। जनता को अपने कीमती वोट को बरबाद करने की बजाय सही उपयोग करना चाहिए ताकि आने वाले समय में वो विपक्ष की चाल में न फंसे।