प्रियंका चोपड़ा का पटाखे जलाने पर दोहरा रुख आया सामने

प्रियंका चोपड़ा

PC: People

पब्लिक फीगर या पब्लिक ऑयकन का मतबल क्या होता, आप सब जानते हैं। पब्लिक ऑयकन बनने का मतलब ही होता है, आप ऐसे व्यक्तित्व को धारण करें, जिसे जनता फॉलो करें। फिर भी आजकल के कथित-पब्लिक फीगर्स का उद्देश्य केवल पब्लिसिटी पाना मात्र रह गया है। वो किसी मुद्दे के पक्ष में बोलेंगे या विपक्ष में, वो निर्भर करता है कि उन्हें क्या बोलने में ज्यादा पब्लिसिटी मिलेगी। ऐसा ही कुछ हाल प्रियंका चोपड़ा का भी है।

जी हां, वही प्रियंका चोपड़ा जिन्होंने अभी-अभी धूम धड़ाके से निक जोनस से शादी की है। दोनों शादी के बंधन में बंध गए। इनकी शादी में जिस तरह के बाजे-गाजे और पटाखे बजे हैं, उसे पूर देश ने देखा। अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें खास क्या है। तो आइए हम बताते हैं।

दरअसल ये उन्हीं प्रियंका चोपड़ा का दोहरा रवैया, जो दीपावली पर ‘चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया’ से भी ज्यादा जिम्मेदार बनकर पटाखों के नुकसान बताती फिरती हैं। पटाखे न फोड़ने की अपील करती फिरती हैं। अब ऐसे में उनसे सवाल करना हमारा हक़ है कि आपकी शादी में फोड़े गये अथाह पटाखे कौन सा ऑक्सीजन छोड़ रहे थे। उन अथाह पटाखों से कितना ऑक्सीजन निकला होगा। आप कथित पब्लिक फीगर बनती हैं तो पब्लिक फीगर्स की तरह जिम्मेदार और बातों की धनी भी बनिए। क्या पब्लिसिटी का उद्देश्य मात्र फिल्मों का प्रमोशन पाकर अथाह कमाई करना रह गया है।

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ये वही प्रियंका चोपड़ा हैं जिहोने कहा था कि, “पटाखे न जलायें मुझे पांच साल से अस्थमा है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कृपया आतिशबाजी न करें. प्लीज मेरी सांसों को बेरोक रखिए. दिवाली पर पटाखे न फोडे। ये त्यौहार लाइट्स, लड्डू और प्यार का होना चाहिए, न कि प्रदूषण का।” अस्थमा से ग्रसित प्रियंका की अपील समझ से बाहर है जो अब अपनी शादी के जश्न में पटाखों का आनंद ले रही हैं।

 ‘क्वांटिको’ में ‘भारतियों’ को न्यूयॉर्क के मैनहैटन को न्यूक्लियर अटैक से उड़ाए जाने वाले दृश्य को लेकर ट्रोल हुईं प्रियंका का दोहरा रुख पहले भी सामने आ चुका है।

प्रियंका चोपड़ा का दोहरा रवैया उस समय भी सुर्ख़ियों में था जब यूनीसेफ की ब्रैंड एंबेसडर बनाए जाने के बाद रोहिंग्या कैंप में पहुंची। एक तरफ रोहिंग्याओं से मिलने तो प्रियंका हिजाब पहनकर गई थी जिसमें शायद उनके पैर की ऊंगलियां भी ढंग से नहीं दिखाई दे रही थीं। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के लिए समय मांगा था और इस मुलाकात मे  प्रधानमंत्री ने एक साधारण बंद गले का काला सूट पहना हुआ था जबकि प्रियंका चोपड़ा ने एक कैज़ुअल सफ़ेद पोशाक पहना था जिसकी लंबाई उनके घुटनों तक थी।

वो रोहिंग्या से मिलने उनके समूह के कपड़ों का चुनाव करती हैं लेकिन देश के मुखिया से मिलने के लिए वेस्टर्न कल्चर फॉलो करती हैं. भारतीय महिला होने के नाते कम से कम उन्हें विदेशी जमीन पर देश के परिधान का चुनाव करना चाहिए लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. हालांकि, उन्हें सोशल मीडिया पर इसके लिए काफी ट्रोल भी किया गया था। हम यहां न ही प्रियंका चोपड़ा के पहनावे पर टिप्पणी कर रहे हैं न ही उनके रहन-सहन पर बस ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रियंका चोपड़ा जो दूसरों को ज्ञान बांटती हैं वो क्यों कभी खुद के बोल पर अमल नहीं करती?

हालांकि उस समय कई कथित महिलावादी समूह प्रियंका के पक्ष में आकर बोलने लगे थे कि  “यू गो गर्ल”, “आप एक स्वतंत्र महिला हो”। उनका कहना था कि प्रियंका जो चाहें, वो पहनें। “लड़कियां जो पहनना चाहती हैं उसके लिए बिल्कुल आज़ाद है।”, “जब हम महिला के कपड़ों से ध्यान हटाते हैं तभी महिला के दिमाग की ताकत पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं”, “जब उसकी मां को प्रियंका चोपड़ा के पैर दिखाने से कोई आपत्ति नहीं है तो फैसला लेने वाले तुम कौन होते हो ?” जैसी तमाम बातें महिलावीदियों द्वारा प्रियंका के पक्ष में लिखा गया। प्रियंका अपनी विजय पर खुश थीं। उन्हें एक बार फिर विवादों में आने से ही सही लेकिन पब्लिसिटी मिल चुकी थी।

अब ऐसे में उन्हें कौन समझाए कि बात आपके कपड़े की, पटाखों की, शो की, ऐड की… बिल्कुल भी नहीं है। आप क्या पहनती हैं, कहां घूमती हैं, क्या बोलती हैं, क्या सोचती हैं,…जैसी किसी भी बातों से किसी को कोई लेना-देना नहीं है। आप बिल्कुल आजाद हैं लेकिन आप ये मत भूलिए कि आप एक कथिक पब्लिक फीगर हैं। बात आपके संदेशों की है। आप समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं। आपके संदेशों में इतना विरोधाभाष क्यों है। किसी पब्लिक फीगर के ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ भी होना चाहिए। बिना इसे समझे और बिना खुद के आचरण में उतारे आपको किसी को भी सलाह देने का कोई हक नहीं है।

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