मुख्यधारा की मीडिया ने मोदी सरकार की शैक्षिक नीतियों के कवरेज को सही ढंग से नहीं दिखाया बल्कि अफवाह फैलाने का काम किया। लुटियंस मीडिया ने मोदी सरकार द्वारा शिक्षा के सेक्टर में किये गये महत्वपूर्ण नीतिगत बदलावों पर प्रकाश नहीं डाला है। यूपीएससी की परीक्षा के लिए उम्र-सीमा लेफ्ट लिबरल मीडिया ने विपक्ष एक साथ मिलकर जनता को गुमराह करने का प्रयास किया है और इसमें कांग्रेस पार्टी की भूमिका अहम रही है।
हाल ही में मीडिया और विपक्ष ने ये फेक न्यूज फैलाई कि सरकार सिविल सर्विसेज परीक्षा (यूपीएससी) में अभ्यर्थियों की उम्र-सीमा कम करने की योजना बना रही है। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्य सभा में स्पष्ट किया कि सरकार का अभी ऐसा कोई प्लान नहीं हो। मीडिया और विपक्षी पार्टियां केंद्र सरकार की छवि पर हमले के लिए झूठी खबर फैला रही हैं और ये दर्शाने का प्रयास कर रही है मोदी सरकार छात्र विरोधी है।
इससे पहले साल 2017 में इसी तरह की खबरों ने तुल पकड़ा था जब बसावन समिति ने अपने एक रिपोर्ट में ये सुझाव दिया था कि यूपीएससी की परीक्षा के लिए अभ्यर्थियों की उम्र-सीमा कम की जाये। हालांकि, अगस्त 2018 में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में सूचित किया कि था कि “1 अगस्त, 2018 से यूपीएससी 2018 के लिए अधिकतम आयु सीमा 32 साल तय कर दी है और रिजर्व कैटेगरी के उम्मीदवारों को तय की गई उम्र सीमा में छूट दी जाएगी।”
इस साल नीति आयोग ने सिविल सर्विसेज में बदलाव के लिए सुझाव दिया था। आयोग की इस रिपोर्ट का नाम ‘स्ट्रेटेजी फॉर न्यू इंडिया @75’ है। अपनी इस रिपोर्ट में आयोग ने ये सुझाव दिया कि सिविल सर्विसेज के अभ्यर्थियों के लिए अधिकतम आयु सीमा कम की जानी चाहिए। परीक्षा देने के लिए सामान्य वर्ग के अभ्यार्थियों के लिए आयु सीमा 30 साल है। इसे घटाकर 27 साल किया जाना चाहिए। इसके साथ ही आयोग ने कहा था कि नौकरशाही में उच्च स्तर पर विशेषज्ञ की लेटरल एंट्री को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सिर्फ सुझाव दिए थे लेकिन केंद्र सरकार द्वारा इसपर कोई कदम नहीं उठाया गया था।
फिर भी विपक्षी पार्टियों ने यूपीएससी में कम उम्र के सुझाव की खबर को गलत तरह से पेश किया और युवाओं में झूठी खबर को तुल दिया जिसके बाद सोशल मीडिया पर सरकार विरोधी स्वर तेज हो गये। किसी ने भी मामले की सच्चाई को जानने का प्रयास नहीं किया। जब तक इस खबर का पूरा सच जनता समझ पाती तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सामान्य वर्ग में आने वाले ब्राह्मणों ने इसे उनकी आकांक्षाओं पर हमला और सरकार द्वारा उनके खिलाफ भेदभावपूर्ण व्यवहार का आरोप लगाया। इसी तरह अन्य वर्ग के लोगों ने भी सरकार पर खूब हमला बोला।
वास्तव में इसके पीछे केंद्र सरकार की छवि को धूमिल करने का उद्देश्य छुपा है क्योंकि सिविल सेवा की परीक्षा के लिए लोग महीनों यहां तक की वर्षों तैयारी करते हैं। ऐसे में इस फेक न्यूज को सुनकर उन लोगों के सपनों के लिए बड़ा झटका था जो सालों से कड़ी मेहनत कर रहे हैं। सीएसई को सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक माना जाता है और हर साल प्रारंभिक परीक्षा में बैठने वाले लाखों छात्रों में से सिर्फ कुछ हजार छात्र ही मेन्स परीक्षा के लिए चुने जाते हैं इसके बाद इंटरव्यू में छात्रों की संख्या और कम हो जाती है। सिविल की तैयारी करने वाले इंटरनेट पर सक्रीय रहते हैं क्योंकि उन्हें परीक्षा की तैयारी के लिए फैक्ट्स और खबरों से जुड़े रहना जरुरी हो जाता है। डेटा विश्लेषण एवं राजनीतिक परामर्श कंपनी कैम्ब्रिज एनालिटिका भी बड़ी आसानी से अपनी रिपोर्ट्स और डाटा एनालिसिस से इंटरनेट पर सक्रीय युवाओं को भ्रमित कर सरकार के प्रति युवाओं को भ्रमित कर सकती है जिससे युवाओं में सरकार को लेकर गलत संदेश जाता है।
दरअसल, कैम्ब्रिज एनालिटिका कंपनी इंटरनेट पर यूजर की इंटरनेट गतिविधियों द्वारा उनका मनोविश्लेषण करती है। इंटरनेट पर यूजर क्या सबसे ज्यादा सर्च करता है, क्या पसंद करता है, किसपर ज्यादा सक्रीय नजर आता है जैसी गतिविधियों का विश्लेषण करता है। यही नहीं व्हिसलब्लोअर क्रिस्टोफर वाइली ने खुलासा किया था कि कैंब्रिज एनालिटिका ने 50 मिलियन फेसबुक यजर्स का डाटा बिना इजाजत इस्तेमाल किया था। व्हिसलब्लोअर क्रिस्टोफर वाइली ने ब्रिटिश संसद में ये खुलासा किया था कि कैंब्रिज एनालिटिका ने भारत में शायद कांग्रेस के लिए काम किया था। इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि कांग्रेस कैंब्रिज एनालिटिका की क्लाइंट थी। इस खुलासे से कांग्रेस का सच सामने आया था। साल 2016 में रिपब्लिकन इलेक्शन कैंपेन से लेकर ब्रेक्सिट जनमत संग्रह और भारत की कांग्रेस पार्टी तक इस कंपनी की भूमिका ने पूरी दुनिया में सभी को चौंका दिया। इन घटनाओं से इस कंपनी के कार्य करने का तरीका सामने आया था जो वीडियो या ऑनलाइन रिपोर्ट्स में डाटा मैन्यूपुलेशन कर उस समूह के लोगों को लक्षित कर रही है जो सोशल मीडिया पर भावनात्मक रूप से भी जुड़े हैं। यही नहीं कुछ ऐसे दस्तावेज भी सामने आये थे जो ये साबित कर रहे थे कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और कैम्ब्रिज एनालिटिका के निलंबित सीईओ अलेक्जेंडर निक्स की मुलाकात की थी। इस मुलाक़ात में फेसबुक और ट्विटर के डाटा के आधार पर 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका रुझान कांग्रेस की तरफ मोड़ने की बात कही थी। इससे साफ़ है कि ये कंपनी लोकसभा चुनाव में जनता को एक बार फिर से भ्रमित करना चाहती थी जिससे वो सही गलत के बीच के फर्क को जब तक समझे तब तक समय हाथ से निकल चुका होता है। इसका सबसे बड़ा फायदा कांग्रेस को ही होता।
ऐसा ही कुछ SC / ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी देखा गया था जिसमें विपक्षी पार्टियों ने केंद्र सरकार को लेकर दलितों में गलत खबरों को फैलाया था। अपने इस लक्ष्य में वो कामयाब भी हुए इसके बाद जब केंद्र सरकार अध्यादेश लेकर आई तो इसी विपक्ष ने सवर्ण समुदायों को भड़काना शुरू कर दिया कि केंद्र सरकार उनके हितों एक खिलाफ काम कर रही है जबकि वास्तव में ऐसा कुछ था ही नहीं। डेटा विश्लेषण एवं राजनीतिक परामर्श कंपनी कैम्ब्रिज एनालिटिका सुनयोजित तरीके से सक्रीय होती है मनोविश्लेषण कर जनता के बीच भ्रम फैलाने का काम करती है।
अब यूपीएससी को लेकर अफवाह फैलाई जा रही है जिससे वो वर्ग जो इंटरनेट पर सक्रीय है और परीक्षा के लिए तैयारी कर रहा है उसमें केंद्र सरकार के खिलाफ आक्रोश पैदा हो जाये। ये शर्मनाक है कि मीडिया भी इस कड़ी में शामिल हो जाती है।