लोकसभा चुनाव को देखते हुए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने गठबंधन कर लिया है। गठबंधन के कयास बहुत पहले से ही लगाए जा रहे थे। इस गठबंधन को लगभग तय माना जा रहा था लेकिन इसकी औपचारिक घोषणा आज हुई है। आज सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमों मायावती ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस गठबंधन पर मुहर लग दी। दोनों के बीच सीटों का बंटवारा 38-38 का हुआ है।
Mayawati: Amethi aur Rae Bareli ki Lok Sabha seats Congress ke saath gathbandhan kiye bina hi party ke liye chhod di hain, taaki BJP ke log Congress party ke adhyaksh ko yahin uljha kar na rakh saken https://t.co/XAjlmN9vrK
— ANI (@ANI) January 12, 2019
कभी एक दूसरे की ध्रुव विरोधी रही पार्टियां आज 25 साल के बाद एक दूसरे के साथ आ रही हैं। ऐसे में जनता द्वारा मायावती के ऊपर तमाम सवाल उठ रहे हैं कि क्या मायावती अपने साथ गेस्ट हाउस हुई उस भयावह दुर्घटना को भूल गईं हैं? वो घटना जब उनकी जान और इज्जत दोनों पर सपा की वजह से मुश्किल में पड़ गयी थी। क्या मायावती भूल गईं कि ये वही समाजवादी पार्टी है, जो एक समय उनकी जान की दुश्मन बन गयी थी। मायावती और अखिलेश के इस गठबंधन पर तमाम सवाल उठ रहे हैं। चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि एक तरफ मायावती अपनी पार्टी की डूबती नैया बचाने में लगी है तो वहीं अखिलेश यादव को खनन संबंधी जांच का डर सता रहा है। ऐसे में अपनी अपनी डूबती नैया को सहारा देने के लिए दोनों पार्टियां साथ आई हैं। वास्तव में इन दोनों पार्टियों का साथ आना वैचारिक नहीं है। ये गठबंधन केवल सत्ता सुख और स्वार्थ के लिए हुआ है। मायावती और अखिलेश के गठबंधन पर अमित ने शाह ने तंज कसते हुए इस लड़ाई की तुलना पानीपत ले युद्ध से किया है।
बता दें कि आखिरी बार साल 1993 में भी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन हुआ था। उस समय सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव थे जबकि बसपा प्रमुख कांशीराम थे। दोनों ने मिलकर चुनाव लड़ा, सरकार बनाई लेकिन इस गठबंधन की उम्र ज्यादा लंबी नहीं रही। ये गठबंधन 1995 में टूट गया था। मायावती ने जून 1995 में अचानक घोषणा कर गठबंधन से समर्थन वापस लिया था जिसके कारण मुलायम सिंह यादव की सरकार अल्पमत में आ गई थी। इसके बाद गुस्साए सपा समर्थकों ने मायावती के साथ बहुत बदसुलूकी की थी। बताया जाता है कि 2 जून 1995 को मायावती, पार्टी विधायकों के साथ लखनऊ के मीराबाई गेस्ट हाउस के कमरा नंबर 1 में थीं। अचानक समाजवादी पार्टी के समर्थक गेस्ट हाउस में घुस आए। समर्थकों ने मायावती से अभद्रता की, अपशब्द कहे। खुद को बचाने के लिए मायावती ने अपने आप को एक कमरे में बंद कर दिया। मायावती के जीवन पर आधारित किताब ‘बहनजी’ की मानें तो एक दलित महिला नेता पर अभद्र टिप्पणी कर रही थी। भीड़ उनके साथ मारपीट करने वाली थी लेकिन उन्होंने अपने आपको एक कमरे में बंद कर लिया था। इस कांड के बाद से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच फिर कभी कोई गठबंधन नहीं हुआ और ये दोनों ही पार्टियां एक दूसरे की विरोधी बन गयीं। अब जब सपा-बसपा का गठबंधन हो रहा है तो जनता गेस्ट हाउस को लेकर मायावती से सवाल कर रही है कि क्या उन्होंने अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को भुला दिया है? इसपर मायावती ने कहा, “देशहित के लिए हमने 1993 के गेस्ट हाउस कांड को भुलाया दिया। हमारे लिए जनहित लखनऊ गेस्ट हाउस कांड से ऊपर है।“ इतने सालों तक उन्हें देश हित नहीं सूझी और आज अचानक स्वार्थ के लिए अपने दुश्मन के साथ हाथ मिलाने वाली सपा प्रमुख ने इसे देश हित से जोड़ दिया। सच तो ये है कि सपा और बसपा और दोनों को पता है वो मोदी सरकार का अकेले सामना नहीं कर सकते। बीजेपी को हरान एके लिए साथ आना ही दोनों की भलाई होगी।
वैसे अगर ये गठबंधन हो भी जाता है तो भी इससे सपा और बसपा को ज्यादा फायदा नहीं होगा। इसका कारण है मायावती और अखिलेश की पार्टी के बीच हो रही दोस्ती के केंद्र में मुस्लिम वोट बैंक है। इसके साथ ही दोनों पार्टियां दलित, पिछड़ों और अति पिछड़ों को भी एक साथ लाने का मकसद भी रखती हैं लेकिन दलित और यादवों के बीच चली आ रही पारंपरिक दुश्मनी किसी से छुपी नहीं है। जमीनी स्तर पर देखा जाए तो समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन से इन दोनों ही पार्टी के मतदाता नाराज हैं। यही नहीं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा यूपी पर की गयी विवादित टिप्पणी के बाद अखिलेश यदा और मायावती की चुप्पी से भी प्रदेश की जनता नाराज है। ऐसे में उत्तर प्रदेश की जनता की नाराजगी भी इस गठबंधन पर भारी पड़ सकती है। इस गठबंधन के सफल न होने के पीछे मायावती अड़ियल रवैया भी हो सकता है जो गठबंधन भी अपनी शर्तों पर करती हैं ऐसे में सपा के लिए गठबंधन घाटे का सौदा साबित हो सकता है।
इन सबके अलावा जिस तरह से केंदी की मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार राज्य में विकास कर रहे हैं और नयी नयी योजना लेकर आ रहे हैं उससे बीजेपी की पकड़ राज्य में मजबूत हुई है। वहीं, दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में योगी सरकार जिस तरह से कम कर रही है कानून व्यवस्था में सुधार किया है, कुंभ मेला की भव्य तैयारियां, किसानों के लिए यूरिया में कटौती और अब गरीब सवर्णों के लिए मोदी सरकार द्वारा लाया गया आरक्षण जैसे कई कदम उत्तर प्रदेश का चुनावी समीकरण भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में देगा। इन सारी बातों से एक बात तो स्पष्ट है कि यह गठबंधन सत्तासुख मात्र के लिए किया गया है। इसके पीछे जनता की चिंता की बजाय अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा की चिंता छिपा है। ऐसे में ये गठबंधन अपने लक्ष्य को पाने में शायद ही सफल हो पायेगा।