मोदी सरकार के अधिकार को कम करने के लिए विपक्ष किस तरह से गंदी राजनीति पर उतर आया है इसका एक और उदाहरण सामने आया है। एक के बाद एक गैर-बीजेपी शासित राज्यों में राज्यों में सीबीआई को दी गयी सामान्य सहमति वापस ले रही हैं। पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंदशेखर नायडू फिर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अब भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने भी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को राज्य में छापे मारने या जांच करने के लिए दी गई ‘सामान्य सहमति’ वापस ले ली है। गुरुवार को गृह विभाग ने केंद्रीय कार्मिक, जनशिकायत और पेंशन मामले तथा केंद्रीय गृह मंत्रालय को एक पत्र लिखकर कहा कि “राज्य सरकार साल 2001 में केंद्र को दी गई उस सहमति को वापस लेती है, जिसके तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा सीबीआई को छत्तीसगढ़ में कोई भी मामलों की जांच के लिए अधिकृत करने की अधिसूचना जारी की गई थी।” एक के बाद एक करके जिस तरह से राजनीतिक पार्टियां अपने राज्यों में सीबीआई को जांच के लिए दी जाने वाली ‘सामान्य सहमति’ को वापस लेने से केंद्र और राज्य के बीच तनाव की स्थिति पैदा होगी और संघीय व्यवस्था भी प्रभावित होगा। ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव से पहले तीन राज्यों द्वारा उठाया गया कदम राजनीति से प्रेरित है।
क्या होता है सीबीआई को जांच के लिए दी जाने वाली सामान्य सहमती?
सीबीआई की स्थापना1946 में दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिशमेंट एक्ट- 1946 के ज़रिए हुई थी। सीबीआई के दायरे में दिल्ली और अन्य केंद्र शासित प्रदेश आते हैं लेकिन इस कानून के सेक्शन-6 के अनुसार, दूसरे किसी राज्य में कार्रवाई करने के लिए सीबीआई को राज्य सरकार से लिखित सहमती लेना जरुरी होता है। हालांकि, अगर किसी मामले में जांच के लिए हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए हों तो इस स्थिति में राज्य की अनुमति अनिवार्य नहीं होती है। इससे केंद्र और राज्य के बीच संघीय व्यवस्था बनी रहती है और तनाव की स्थिति पैदा नहीं होती।
Chhattisgarh govt requests central govt that 'the CBI be instructed not to exercise jurisdiction for investigation of any fresh matter' in the state. The Home Department of the state govt has withdrawn its consent given to the centre, in 2001. pic.twitter.com/GnCV26GiWS
— ANI (@ANI) January 11, 2019
बता दें कि पिछले 18 साल में सीबीआई छत्तीसगढ़ में कई बड़े मामलों की जांच कर चुकी है जिसमें बिलासपुर के पत्रकार सुशील पाठक और छुरा के उमेश राजपूत की हत्या, रामावतार जग्गी हत्याकांड, एसईसीएल कोल घोटाला, आईएएस बीएल अग्रवाल रिश्वत कांड की जांच शामिल है।
समान्य सहमती वापस लेने से क्या होगा?
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अब सीबीआई को किसी भी जांच के लिए दी जाने वली सामान्य सहमती वापस ले ली है। इससे पहले आंध्र प्रदेश सरकार ने 3 अगस्त 2018 में सीबीआई को दी गयी ‘सामान्य सहमती’ को वापस लिया था। इसके बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी ‘सामान्य सहमती’ को वापस ले लिया था। ऐसे में अब राज्य में किसी मामले में सीबीआई जांच के लिए राज्य सरकार की इजाज़त जरुरी होगी वो भी लिखित में अन्यथा सीबीआई खुद कोई जांच नहीं कर पायेगी।
केंद्र और राज्य के बीच पारस्परिक संबंध हेतु संघीय व्यवस्था लायी गयी थी। संविधान-निर्माता संघीय शासन को अस्तित्व में लेकर आये ताकि केंद्र और राज्य में एकात्मक शासन बना रहे लेकिन अब इस निर्णय का इस व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जबकि केंद्र और राज्यों को शासन में समन्वय बनाये रखने के लिए एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए लेकिन इन तीनों ही राज्य सरकारों का ये आदेश सही नहीं है क्योंकि ये संघीय व्यवस्था को प्रभावित करेगा। यहां गौर करने वली बात ये है कि तीनों ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों के फैसले एक के बाद एक करके समाने आये हैं। वास्तव में ये एक एजेंडे के तहत किया जा रहा है क्योंकि टीडीपी, तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस स,इत विपक्षी दल साल 2019 के लोकसभा चुनावों में एकजुट होकर बीजेपी से मुकाबले के लिए महागठबंधन बनाने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसे में तीनों ही गैर-बीजेपी शासित राज्यों का ये फैसला बीजेपी विरोधी भावना से पीड़ित है। विपक्षी दलों को ये समझ आ चुका है कि वो पीएम मोदी की लोकप्रियता को चुनौती नहीं दे सकते हैं और न ही आगामी चुनाव में वो कोई गंभीर मुद्दा लेकर हमला कर सकते हैं। यही वजह है कि सीबीआई के जरिये अब विपक्ष मोदी सरकार को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं। कार्यपालिका की शक्तियों का इस्तेमाल व्यापक जनहित में होना चाहिए लेकिन ये शर्मनाक है कि अपने एजेंडे के लिए राजनीतिक पार्टियां इसका इस्तेमाल कर रही हैं और भ्रष्टों को संरक्षण देने का प्रयास कर रहे हैं।