क्या कांग्रेस शीला दीक्षित को सिर्फ अपने मतलब के लिए इस्तेमाल कर रही है?

शीला दीक्षित दिल्ली

(PC: DNA India)

कांग्रेस ने अपनी पार्टी की अनुभवी, तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकी किंतु हाशिए पर धकेली जा चुकी नेता शीला दीक्षित को एक बार फिर से सक्रिय राजनीति में बुला लिया है। दरअसल, कांग्रेस ने शीला दीक्षित को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (DPCC)  के अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी है। कांग्रेस के दिल्ली मामलों के प्रभारी पी सी चाको ने इसकी जानकारी दी। बता दें कि कांग्रेस पार्टी  को उनकी जरूरत जब महसूस होती है तब वो शीला दीक्षित को सक्रिय राजनीति में लेकर आती है लेकिन जरूरत खत्म होते ही फिर से उन्हें हाशिए पर धकेल देती है। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि बीते वक्त में कांग्रेस की राजनीति बताती है। आइए एक नजर डालते हैं…

तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकी श्रीमती साल 2013 में विधानसभा चुनाव बुरी तरह हार गयी थीं। उनके हारते ही देश की सबसे पुरानी पार्टी उन्हें राजनैतिक दृष्टिकोण से अनदेखी करना शुरू कर दिया। उसके बाद साल 2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी को एक बार फिर से श्रीमती दीक्षित की याद आई । इस चुनाव में कांग्रेस शीला दीक्षित पर एक बार फिर से चुनावी दांव लगाती है और जातिवाद की राजनीति करते हुए शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रुप में चुनाव मैदान में उतारती है और ‘ब्राह्मण’ कार्ड खेलती है. जब कांग्रेस को लगता है कि समाजवादी पार्टी के साथ जाने में ज्यादा फायदा है इसलिए बीच में ही कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी का हाथ थाम लिया। समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने के बाद इस पुरानी पार्टी ने शीला दीक्षित को दरकीनार कर दिया था। उसके बाद कांग्रेस को शीला दीक्षित हमेशा से राजनैतिक मंचों पर भुलाए रखा।

अब एक बार फिर से, जब लोकसभा चुनाव पास हैं और दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं तब देश की पुरानी पार्टी को एक बार फिर से पार्टी द्वारा भुला दी गई शीला दीक्षित की याद आई है। दरअसल, दिल्ली की जनता शीला दीक्षित को काफी पसंद करती है क्योंकि उन्होंने अपने शासनकाल में दिल्ली में कई बड़े बदलाव किये हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री को कार्यभार सौंपा है जिनके सामने दिल्ली कांग्रेस की बिखरी हुई पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती है। पार्टी ने एक बार फिर से शीला दीक्षित को याद किया है लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या कांग्रेस  श्रीमती दीक्षित के साथ इस बार ईमानदारी बरतेगी या फिर सिर्फ उन्हें अपना चुनावी मोहरा बनाने के लिए सक्रिय राजनीति में वापस लाई है। दरअसल खबरें तो ये भी हैं कि राहुल गांधी की आगुवाई में चुनाव की तैयारियां करने वाली कांग्रेस दिल्ली में आम आदमी पार्टी से गठबंधन करने की फिराक में है। ऐसे में सवाल उठने लाजमी हैं कि अगर केजरीवाल और राहुल गांधी के बीच गठबंधन का समझौता हो गया तो क्या एक बार फिर से कांग्रेस दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रह चुकीं श्रीमती दीक्षित के साथ उत्तर प्रदेश वाला निर्णय लेगी। क्या ‘आप’ से गठबंधन होते ही कांग्रेस एक बार फिर से शीला दीक्षित को भुला देगी।

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