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सिद्दांत, तर्क और कॉमन सेंस की हत्या कर लल्लनटॉप ने किया देश का मनोबल तोड़ने का काम

TFI Desk द्वारा TFI Desk
24 January 2019
in मत
कर्ज देश लल्लनटॉप
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कुछ मीडिया वेबसाइट्स अक्सर अफवाह और भ्रमित करने वाली खबरें फैलाने का काम करती हैं। ऐसी ही एक वेबसाइट है, दि लल्लनटॉप डॉट कॉम। वेबसाइट ने हाल ही में एक वीडियो में इस बात का दावा किया है कि नरेद्र मोदी सरकार ने वर्ल्ड बैंक से सबसे ज्यादा कर्ज लिया है। वीडियो में इस बात का दावा किया गया है कि नरेन्द्र मोदी सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल में देश पर कर्ज 49 फीसदी बढ़ गया। वीडियो में दावा किया गया है कि सरकार पर कर्ज 49 फीसदी बढ़कर 82, 03,253 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। सरकार के कर्ज पर वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, जून 2014 में सरकार पर कुल कर्ज का आंकड़ा 54,90,763 करोड़ रुपये था, जो सितंबर 2018 में बढ़कर 82,03,253 करोड़ रुपये पर पहुंच गया।

रिपोर्ट में कहा गया कि पब्लिक सेक्टर का कर्ज भी बढ़कर 48 लाख करोड़ से 73 लाख करोड़ रुपये हो गया है। जबकि गोल्ड बांड से लिया गया कर्ज शून्य से 9,089 करोड़ रुपये बताया गया है। लल्लनटॉप के इस वीडियो की मानें तो पहले आठ महीने में नवंबर तक राजकोषीय घाटा 7.17 लाख करोड़ रुपये या पूरे साल के 6.24 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य का 114.8 फीसदी रहा है।  लल्लन टॉप द्वारा बताये गए इस दावे में पूरी सच्चाई है। लल्लनटॉप ने वीडियो में बताया गया है कि ये डेटा उसे वित्तमंत्रालय से मिले हैं।

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लेकिन जब इस वीडियो में लल्लनटॉप के वीडियो प्रजेन्टर ने कहा कि, “अब ये फीसदी और ऐसे आकड़े तो हमें समझ में आते नहीं हैं तो हमने सोचा कि रुपये में हिसाब कर लेते हैं।” बस, इसी जगह से वेबसाइट ने भ्रम फैलाने वाला काम शुरू कर दिया। दरअसल, अर्थशास्त्र गणित की अपेक्षा तुलनात्मक विश्लेषण पर आधारित विषय है। अर्थशास्त्र में तुलनात्मक डेटा जरूर सामने रखना चाहिए नहीं तो जनता भ्रमित हो सकती है।

आप 2014 की तुलना आज से नहीं कर सकते। 2014 में 100 रुपये की नोट अपने आप में मायने रखती थी, लेकिन आज की तारीख में आज बाजार में सब्जी लेने जाओ तो 100 रुपये में ढंग से सब्जी भी नहीं खरीद सकेंगे। कहने का मतलब समय के साथ साथ पैसे का मूल्यांकन कम हुआ है। इसलिए उस समय का 54 लाख आज की तारीख में 82 लाख हो गया तो कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं आ गया है। इसमें देश को हताश करने की कोई जरूरत नहीं है।

दरअसल किसी भी देश के कर्ज की तुलना उस देश की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद से की जाती है। जैसा कि लल्लनटॉप के वीडियो में दावा किया गया है कि सरकार पर कर्ज 49 फीसदी बढ़कर 82, 03,253 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। जून 2014 में सरकार पर कुल कर्ज का आंकड़ा 54,90,763 करोड़ रुपये था, जो सितंबर 2018 में बढ़कर 82,03,253 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। तो आपको बता दूं कि यह आधी अधूरी जानकारी देकर जनता को बरगलाया गया है। क्योंकि मोदी सरकार के आने के बाद जीडीपी की तुलना में भारत का कर्ज कम हुआ है। मोदी सरकार में यह कर्ज 2012 के 47.09 प्रतिशत से घटकर 2017 तक 45.11 प्रतिशत पर आ गया।

अगली बात बता दें कि ज्यादातर विकसित देश और विकसित अर्थव्यवस्थाएं घरेलू और बाहरी स्रोतों से कर्ज लेती हैं। इसका इस्तेमाल वो सड़क, रेलवे, पुल, अस्पताल जैसी संस्थाएं बनाने में करती हैं। इससे देश की जीडीपी बढ़ती है। बता दें कि अमेरिका पर कर्ज उसकी जीडीपी रेश्यो का 100 प्रतिशत है जो भारत की तुलना में बहुत ज्यादा है। इसके अलावा अगर हम वैश्विक कर्ज की बात करें तो वह 60 प्रतिशत के आसपास है। यह भी भारत पर कर्ज की तुलना में बहुत अधिक है। इसका मतलब अगर भारत अभी 10 लाख करोड़ (जीडीपी का 9 प्रतिशत) का और कर्ज ले ले तो भी हमारे ऊपर कर्ज और जीडीपी का अनुपात वैश्वक औसत से कम ही रहेगा।

बता दें कि जीडीपी के अनुपात में भारत का बाहरी ऋण 23.9 प्रतिशत से घटकर 20.8 प्रतिशत पर आ गया। बता दें कि भारत के बाहरी ऋण और जीडीपी का रेशियो अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों से कम है। एक ओर जहां अमेरिका का बाहरी ऋण और जीडीपी का रेशियो 115 प्रतिशत है तो वहीं यूनाइटेड किंगडम का 313 प्रतिशत तो फ्रांस का 213 प्रतिशत है। बता दें कि सभी देश अपने देश की अर्थव्यवस्था को और तेज करने के लिए बहुपक्षीय, द्विपक्षीय संस्थाएं या फिर आईएमएफ यानी विदेशी मुद्रा कोश से कर्ज लेते हैं। इसका वे अपने देश की जीडीपी को रफ्तार देने में इस्तेमाल करते हैं। भारत भी इन संस्थाओं से कर्ज लेता है। लेकिन लल्लनटॉप के वीडियो में कहा गया है कि, “नरेन्द्र मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने विश्वबैंक से सबसे ज्यादा कर्ज लिया।”

वीडियो में यह भी कहा गया है कि देश का राजकोषीय घाटा नवंबर तक 114 प्रतिशत तक बढ़ा है। बता दें कि राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने पर मोदी सरकार की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने तारीफें की हैं। जबकि इससे पहले की यूपीए सरकार ने सरकार में आने के लिए राजकोष का ऐसा इस्तेमाल किया था कि वह बहुत बुरी स्थिति में पहुंच गया था। यहां तक कि जिस समय मोदी सरकार ने सत्ता संभाली, उस समय राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4 प्रतिशत था जो इस समय 3.5 प्रतिशत है।

वीडियो में तो इस बात का भी दावा किया गया है कि देश में बच्चा पैदा होता है तो उसके ऊपर 54 हजार रुपये का कर्ज होता है। इसलिए बता दें कि, अमेरिका में जब बच्चा पैदा होता है तो करीब 40 लाख का कर्ज लेकर पैदा होता है। यह भारत के बच्चे की तुलना में 80 गुणा अधिक है। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि इस तरह के वीडियोज देश में अफवाह फैलाने और अपने एजेंडे के तहत चलाए जाते हैं। ऐसा करते समय शायद वो यह भूल जाते हैं कि ऐसी अफवाहों से देशवासियों को गुमराह करके वो देश का मनोबल तोड़ रहे हैं।

Tags: जीडीपीभारतीय अर्थव्यवस्था
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21 October 2025

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