दिल्ली के लाल किले में अब गूजेंगे आजाद हिंद फौज की वीरता के फसानें, मोदी ने किया शुभारंभ

सुभाष चंद्र बोस संग्रहालय मोदी

PC: ANI

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज 122वीं जयंती है और इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजधानी दिल्ली में लालकिले पर सुभाष चंद्र बोस संग्रहालय का उद्घाटन किया है। इसके अलावा दो और संग्रहालयों का भी उद्घाटन करंगे। सुभाष चंद्र बोस संग्रहालय में सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज से जुड़ीं चीजों को प्रदर्शित किया जायेगा जैसे कि नेताजी द्वारा इस्तेमाल की गयी लकड़ी की कुर्सी और तलवार और आईएनए से संबंधित पदक, बैज, वर्दी और अन्य वस्तुएं। बता दें कि लाल किले में इस संग्रहालय को बनाये जाने के पीछे भी एक वजह है वो ये कि आजाद हिंद फौज यानी इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) के खिलाफ जो मुकदमा दर्ज किया गया था, उसकी सुनवाई लालकिले में ही हुई थी यही कारण है कि यहां पर संग्रहालय बनाया गया है।

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इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ‘याद-ए-जलियां’ संग्रहालय और 1857 (प्रथम स्वतंत्रता संग्राम) पर संग्रहालय और भारतीय कला पर दृश्यकला संग्रहालय का भी उद्घाटन करेंगे। ‘याद-ए-जलियां’ संग्रहालय 1919 में जलियांवाला नरसंहार के इतिहास को बयां करेगा और विश्व युद्ध-1 में भारतीय सैनिकों की वीरता को भी प्रदर्शित करता है। वहीं, 1857 (प्रथम स्वतंत्रता संग्राम) पर संग्रहालय 1857 के स्वतंत्रता संघर्ष की ऐतिहासिक गाथा को चित्रित करेगा जो भारतीयों द्वारा किए गए बलिदान को दर्शाएगा।

इस संग्रहालय की आधारशिला पीएम मोदी ने 21 अक्टूबर 2018 को रखी थी और आज 23 जनवरी 2019 बुधवार से ये शुरू हो गया। ऐसे में गणतंत्र दिवस के अवसर पर लोग नेताजी पर बने संग्रहालय में सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी और संघर्ष से जुड़ी तमाम चीजों से रूबरू हो सकेंगे। सुभाष चंद्र बोस देश की आजादी के लिए समर्पित थे। उन्होंने देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। खून के बदले आजादी देने का वादा करने जैसे उग्र विचारों के चलते इतिहास में सुभाष चंद्र बोस का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा है। देश की आजादी के लिए उन्होंने जापान की मदद से आजाद हिंद फौज का गठन किया था और दुनिया के शक्तिशाली नेताओं से मुलाकात भी की थी जिससे वो अपने उद्देश्य में सफल हो सकें। वो अंतिम सांस तक देश के लिए लड़ते रहे। देश की आजादी के लिए उनकी लड़ाई सदा सर्वदा असंदिग्ध और अनुकरणीय रही है।

वर्ष 1943 में सुभाष चंद्र बोस ने आजादी के लिए आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी। इसके बाद 1943 में ही आईएनए ने ब्रिटिश सेना पर हमला कर अंडमान और निकोबार आईलैंड को अंग्रेजों की जंजीरों से आजाद किया था। इसके बाद नेता जी ने ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ जो आज नारा दिया था। अंडमान निकोबार में ही 30 दिसंबर 1943 को पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने तिरंगा फहराया था। मतलब की भारत में देश की आजादी का पहला तिरंगा 15 अगस्त 1947 से 44 महीने पहले फहराया गया था लेकिन ये सच इतिहास के पन्नों तक ही सीमित रह गया। ये तिरंगा खुद नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही फहराया था। भारत की पहली आज़ाद सरकार की स्थापना और उसकी घोषणा नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को की थी। इसके बाद देश की पहली घरेलू सेना आईएनए ने अंग्रेजों को 1944 में कोहिमा से इंफाल तक खदेड़ दिया था। ये आजादी की लड़ाई इसके बाद उग्र होती गयी और फिर 1947 में भारत अंग्रेजों के चुंगल से पूरी तरह से आजाद हो गया लेकिन समय के साथ इन महानायकों की कुर्बानी कहीं न कहीं दबने लगी थी। हालांकि, साल 2014 में देश की बागडोर संभालने के बाद से मोदी सरकार लगातार देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महानायकों के बलिदान को जनता के बीच फिर से जीवित करने की दिशा प्रयासरत है। देश के जिन महानायकों ने हिंदुस्तान को आजाद हिंदुस्तान बनाया और आजादी के बाद बेहतर लोकतंत्र स्थापित करने के लिए महान कार्य किए मोदी सरकार अब सरकार सम्मान दे रही है और उन्हें याद कर रही है।

पिछले साल आजाद हिंद फौज की 75वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराया था। देश के अनेक सपूतों, वो चाहें सरदार पटेल हों, बाबा साहेब आंबेडकर हों, उन्हीं की तरह ही, नेताजी के योगदान को पुनर्जीवित कर रहे हैं।

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