नीतीश ने महागठबंधन से बाहर होने के पीछे राहुल गांधी की ‘अक्षमता’ को ठहराया जिम्मेदार

नीतीश कुमार राहुल गांधी गठबंधन

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी गठबंधन को सही तरीके से संभाल नहीं पाते। क्षेत्रीय पार्टियों का कांग्रेस के साथ गठबंधन का चर्चा में रहने के पीछे की वजह भी एक तरह से राहुल गांधी ही हैं। राहुल गांधी के कमजोर नेतृत्व, कमजोर संगठनात्मक कौशल, अपरिपक्वता और महत्वपूर्ण मुद्दों पर स्टैंड लेने में असमर्थता ही कांग्रेस की बुरी स्थिति का कारण है। कोई भी क्षेत्रीय पार्टी उनके नेतृत्व में गठबंधन नहीं चाहती है। हम ये यूं ही नहीं कह रहे इसके पीछे कई कारण हैं। चाहे उत्तर प्रदेश में सपा, तेलंगाना में टीडीपी और कर्नाटक में जेडीएस सभी को गठबंधन में अपमान का सामना ही करना पड़ा है। बिहार में महागठबंधन का हिस्सा कांग्रेस भी थी जो असफल साबित हुआ। हालांकि, लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा ने कांग्रेस को गठबंधन से पहले ही बाहर का रास्ता दिखा दिया है और इसमें कोई शक नहीं है कि इसके पीछे कांग्रेस पार्टी का अहंकार और पार्टी अध्यक्ष कारण हैं। अब बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के प्रमुख नीतीश कुमार ने भी खुलकर कह दिया है कि बिहार में अध्यक्ष राहुल गांधी की ‘अक्षमता’ के कारण वो विपक्षी गठबंधन से बाहर निकले थे।

मंगलवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महागठबंधन से बाहर होने पर चुप्पी तोड़ी और बताया जेडीयू, कांग्रेस और राजद के महागठबंधन से क्यों बाहर निकले थे। बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा कि ये राजद नेता तेजस्वी यादव के ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर रूख अख्तियार करने में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की ‘अक्षमता’ ने मुझे विपक्षी गठबंधन से बाहर निकलने के लिए मजबूर किया था।

नीतीश कुमार ने जुलाई 2017 में महागठबंधन को छोड़ा था जब सीबीआई ने तेजस्वी यादव के 7 जुलाई 2017 को FIR दर्ज कराई थी। मुख्यमंत्री ने कहा, “हमेशा से मेरा रुख रहा है कि अपराध, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता से कोई समझौता नहीं होगा। उनकी कार्यशैली इस तरह की थी कि मेरे लिये काम करना मुश्किल होता जा रहा था। सभी स्तरों पर हस्तक्षेप था। उनके लोग अपने फरमानों के साथ थाने में टेलीफोन करते थे।’’ नीतीश ने आगे कहा, ये उनकी पार्टी थी जिसने साल 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 40 सीटें दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जबकि राजद जिसका कांग्रेस के साथ पुराना जुड़ाव रहा है उसने इस पार्टी को उतना महत्व नहीं दिया। इसके बावजूद राहुल ने उन्हें निराश किया जब उन्होंने ‘‘कोई बयान तक नहीं दिया, जिससे कि (गठबंधन छोड़ने के बारे में) मैं दोबारा विचार कर सकता था।“

नीतीश कुमार ने आगे कहा कि उनके पास कोई विकल्प शेष नहीं रह गया था। मैंने बीजेपी के तत्काल समर्थन के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा, “इसीलिए मैंने बिहार के हित के लिए बीजेपी के साथ हाथ मिलान एक फैसला लिया था।” बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री ने कहा कि कई मुद्दों पर हमारे विचार एकमत नहीं थे लेकिन फिर भी मोदी सरकार ने पूरा समर्थन किया। नीतीश कुमार ने कहा, अयोध्या, आर्टिकल 370 और समान नागरिक संहिता जैसे कई मुद्दों पर हमारे विचार एकमत नहीं थे। बीजेपी के साथ मेरी पार्टी का जुड़ाव उसी वर्ष हुआ था जब 1999 में एनडीए के गठन हुआ था लेकिन हमने हमेशा मिलकर काम किया है। यहां तक कि आज भी हमें मोदी सरकार अक पूरा समर्थन प्राप्त है।”

ऐसा लगता है कि राहुल गांधी की अक्षमता पार्टी के लिए भारी पड़ती जा रही है जिस वजह से क्षेत्रीय पार्टियां अब इस पार्टी को दरकिनार कर रही हैं। केसीआर और नवीन पटनायक ने पिछले साल दिसंबर में एक बैठक की थी। इस बैठक में केसीआर ने लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और बीजेपी के खिलाफ क्षेत्रीय पार्टियों को एकजुट करने की बात कही थी। ये महागठबंधन कांग्रेस के लिए एक बड़े झटके की तरह है जो बीजेपी को हराने के ख्वाब देख रही है। तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में केसीआर की भारी जीत उनके मजबूत नेतृत्व का बेहतरीन उदाहरण हैं। वहीं ओडिशा में बीजेडी का साला 2014 के लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन भी उनके मजबूत नेतृत्व को दर्शाता है। ऐसे में ये दोनों ही नेता अपने क्षेत्र में एक मजबूत नेतृत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं ऐसे में ये कांग्रेस के एक कमजोर नेता का नेतृत्व ये कभी नहीं चाहेंगे।

तेलंगाना में मिली बड़ी जीत के बाद आगामी लोकसभा चुनाव के लिए एक बार फिर से केसीआर ने कांग्रेस विरोधी और बीजेपी विरोधी पार्टियों को एक मंच पर लाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। क्षेत्रियों पार्टियों के साथ मुलाक़ात भी शुरू कर दिए हैं। इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी केसीआर के साथ एक नए मोर्चे का गठन करने को लेकर चर्चा कर चुकी हैं क्योंकि ममता बनर्जी देश की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखती हैं। वास्तव में कोई भी विपक्षी पार्टियां राहुल गांधी का नेतृत्व नहीं चाहती हैं। यही नहीं खुद कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता भी राहुल की योग्यता को बखूबी जानते हैं। यही वजह है कि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए राह और भी ज्यादा मुश्किल होने वाली है।

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