अपने बेबाक बयानों के लिए जाने-जाने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर एक बार फिर बेबाक बयान दिया है। एक निजी न्यूज चैनल से बात करते हुए योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या विवाद का निपटारा कैसे करेंगे के सवाल पर कहा कि मामला कोर्ट में है इसलिए चुप हूं। कोर्ट मामला हमें सौंप दे। हम 24 घंटों में मामले का निपटारा कर देंगे। हमें 25 घंटे नहीं लगेंगे।
उन्होंने कहा कि, टाइटल विवाद पर अनावश्यक रूप से जोर देकर अयोध्या मामले में देर की जा रही है। हम सुप्रीम कोर्ट से अपील करते हैं कि वह जल्द से जल्द हमें न्याय दे। अदालत के फैसले से करोड़ों लोगों को संतोष मिले ताकि यह स्थान जनता की आस्था का प्रतीक बने। इस दौरान योगी आदित्यनाथ ने मामलें में हो रही देरी पर भी नाखुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि इस मामले में अनावश्यक देरी से लोगों का भरोसा इन संस्थाओं से उठ जाएगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनता की भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा कि अनावश्यक देरी से लोगों का धैर्य और भरोसा टूट रहा है। मैं कहना चाहता हूं कि अदालत अपना फैसला जल्द दे और अगर वह ऐसा कर पाने में नाकाम रहे तो वह यह मुद्दा हमें सौंप दे। इस दौरान योगी ने अध्यादेश न लाने का कारण भी बताया। मुख्यमंत्री ने इसके पीछे के कानूनी और संवैधानिक कारण को बताते हुए कहा कि मामला कोर्ट में है। संसद उन मामलों पर विचार नहीं कर सकती जो उस समय कोर्ट में विचाराधीन हैं। इसलिए हम इसे अदालत पर ही छोड़ रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि यह मामला राजनीति का नहीं है। योगी ने कहा कि सवाल चुनाव में हार जीत का नहीं है बल्कि यह मामला देशवासियों की आस्था से जुड़ा हुआ है। मामले में विलंब के पीछ कांग्रेस को दोषी बताते हुए योगी ने कहा, “कांग्रेस इस समस्या की जड़ में है। वह नहीं चाहती कि यह मामला सुलझे। अगर अयोध्या विवाद सुलझ जाएगा, तीन तलाक पर रोक लागू हो जाएगी तो देश में तुष्टिकरण की राजनीति हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।”
इस दौरान योगी ने राज्य में सपा-बसपा के बीच हुए गठबंधन पर भी अपनी बात रखी। योगी ने सपा-बसपा के गठबंधन को असफल बताते हुए कहा कि अगर वह जाति आधारित लड़ाई को निचले स्तर पर भी ले जाते हैं, तो भी मुकाबला 70-30 का ही होगा। सत्तर फीसद मतदाता भाजपा के ही साथ हैं। जबकि बाकी 30 फीसद वोटों के लिए गठबंधन बना है। उन्होंने प्रियंका गांधी के राजनीति में आने पर कहा कि कांग्रेस ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उनके लिए परिवार ही पार्टी है। वह परिवार के परे देख ही नहीं सकते।
फिलहाल जो भी हो, योगी आदित्यनाथ का यह बयान कि हमें मंदिर मामले को निपटाने में 24 घंटे से अधिक का समय नहीं लगेगा, अपने आप में एक बड़ा बयान है। दरअसल, राम मंदिर मुद्दे को कांग्रेस राज में लगातार लंबा खींचा गया और अब अदालत में यह मामला खिंचता चला जा रहा है जिससे रामभक्तों में रोश है। आइए राम मंदिर विवाद से जुड़ी कुछ तारीखों पर नजर डालते हैं-
- इतिहास की मानें तो 1528 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया।
- 1949 में बाबरी मस्जिद में भगवान राम की मूर्ति पाई गई थी। जिसके बाद दोनों पक्षों के प्रतिनिधि कोर्ट पहुंचे। इसके बाद विवादित स्थल पर ताला लगा दिया गया।
- 1959 में निर्मोही अखाड़ा कोर्ट पहुंचा। अखाड़े ने विवादित स्थल के स्थानांतरण के लिए अर्जी दी थी।
- इसके बाद 1961 में यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ने भी कोर्ट में जाकर बाबरी मस्जिद स्थल के मालिकाना हक की अपील की।
- 1986 में विवादित स्थल को श्रद्धालुओं के लिए खुलवा दिया गया। 1986 में ही बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन हुआ।
- 1989 में विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी के पास राम मंदिर का शिलांयास किया।
- 1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने देशव्यापी रथयात्रा की शुरुआत की। आडवाणी द्वारा 1991 में रथयात्रा की लहर का नतीजा यह हुआ कि बीजेपी यूपी की सत्ता में आ गई। इस साल मंदिर निर्माण के लिए देशभर से रामभक्तों द्वारा इंटें भेजी गई।
- 6 दिसंबर, 1992: अयोध्या पहुंचकर हजारों की संख्या में कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया था। देश में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए। पुलिस ने लाठी चार्ज किया। कई लोगों की मौत हो गई। इसके बाद जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया।
- 16 दिसंबर, 1992: बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच के लिए एमएस लिब्रहान आयोग का गठन किया गया।
- 1994: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में केस चलना शुरू हुआ।
- 4 मई, 2001: स्पेशल जज एसके शुक्ला ने बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित 13 नेताओं से साजिश का आरोप हटाया।
- 1 जनवरी, 2002: तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अयोध्या विभाग शुरू किया। इसका उद्देश्य विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।
- 1 अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक से संबंधित इलाहबाद हाई कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू कर दी।
- 5 मार्च 2003: इलाहबाद हाई कोर्ट के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई शुरू की, ताकि मंदिर या मस्जिद का प्रमाण मिल सके।
- 22 अगस्त, 2003: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपनी रिपोर्ट में मस्जिद के नीचे 10वीं सदी के मंदिर के अवशेष की बात कही। इसके बाद इस रिपोर्ट को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने चैलेंज किया।
- सितंबर 2003: एक अदालत ने मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाने के आदेश दिए।
- जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
- 26 जुलाई, 2010: इलाहबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने फैसला सुरक्षित किया। न्यायालय ने इस मामले में सभी पक्षों को आपस में हल निकालने की सलाह दी। लेकिन कोई आगे नहीं आया।
- 28 सितंबर 2010: सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें इलाहबाद हाई कोर्ट को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने की अपील की गई थी। इससे इलाहबाद उच्च न्यायालय को फैसला सुनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- 30 सितंबर 2010: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। फैसले में विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा गया। इसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े को मिला।
- 9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
- 21 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने भी आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही।
- 19 अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट ने विवादित ढांचे को गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के अन्य कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया।
- 9 नवंबर 2017: शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने और वहां से दूर हटके मस्जिद का निर्माण करने की बात कही।
- 16 नवंबर 2017: आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने मामले को सुलझाने के लिए आगे आए और मामले की मध्यस्थता करने के लिए कई पक्षों से मुलाकात की।
- 5 दिसंबर 2017: सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए 8 फरवरी तक सभी दस्तावेजों को पूरा करने के लिए कहा।
- 8 फरवरी 2018: सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से पक्ष रखा और वक्फ बोर्ड के वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट से मामले पर नियमित सुनवाई करने की अपील की। फिलहाल पीठ ने उनकी अपील खारिज कर दी।
- 14 मार्च 2018: वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कोर्ट से साल 1994 के इस्माइल फारूकी बनाम भारतीय संघ के फैसले को पुर्नविचार के लिए बड़ी बेंच के पास भेजने की मांग की।
- 20 जुलाई 2018: सुप्रीम कोर्ट ने राजीव धवन की अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रखा।
- 27 सितंबर 2018: कोर्ट ने इस्माइल फारूकी बनाम भारतीय संघ के 1994 के ‘मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं’ के फैसले को बड़ी बेंच को भेजने से इनकार करते हुए कहा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर किया जाएगा और पहले का फैसला सिर्फ भूमि आधिग्रहण के केस में ही लागू किया जाएगा। इस तरह यह मुद्दा लगातार खींचा चला जा रहा है। अब 29 जनवरी को यानी परसों सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई होगी।