मोदी सरकार जबसे सत्ता में आई है तबसे भारत में रह रहे अवैध अप्रवासियों और रोहिंग्यों को देश से बाहर भेजने के लिए प्रयासरत है। पिछले साल असम में जारी किया गया एनआरसी भी इसका एक बेहतरीन उदाहरण है। अब केंद्र सरकार ने भारत में रह रहे 4.5 लाख रोहिंग्या शरणार्थियों के फर्जी दस्तावेजों के सहारे जुटाए गए आधार कार्ड और दूसरे पहचान पत्रों को रद्द करना शुरू कर दिया है। इससे वो भविष्य में इन पहचान पत्रों का दुरूपयोग नहीं कर सकेंगे। केंद्रीय गृहमंत्रालय द्वारा यूआईडीएआई को भेजे एक पत्र में उन रोहिंग्याओं के बारे में जानकारी है जिन्हें आधार कार्ड जारी किया जा चुका है। इससे राज्य की सरकारें तत्काल प्रभाव से रद्द कर सकेंगी। तेलंगाना में रह रहे 10 रोहिंग्याओं के आधार कार्ड यूआईडीएआई रद्द कर चुका है।
माय नेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय गृहमंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, “तेलंगाना में जिन 10 आधार कार्ड को रद्द किया गया है, वो बैंक खातों और विभिन्न सरकारी योजनाओं से लिंक थे। इन्हें रोहिंग्याओं ने फर्जी तरीके से बनवाया था। वो भारतीय नहीं हैं इसलिए सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के हकदार नहीं हैं।“
बता दें कि पिछले साल राज्य सरकारों से केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अवैध शरणार्थियों को जारी हुए आधार कार्ड को रद्द करने के लिए कहा था। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साफ़ कहा था कि आधार कार्ड सिर्फ उन्हीं को जारी किया जाए जो भारत में वैध रूप से रह रहे हैं। इसके साथ ही मंत्रालय ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को ये सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि वो देश में अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों और निवासियों को आधारी कार्ड न जारी करे।
दरअसल, ये रोहिंग्या फर्जी तरीके से आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस जैसे भारतीय पहचान पत्रों को हासिल कर सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। ऐसे में ये जरुरी हो जाता है कि राज्य सरकारें भी इस तरह के फर्जीवाड़े काम का पर्दाफाश करने और रोहिंग्याओं को वापस म्यांमार भेजने के लिए केंद्र सरकार का साथ दें।
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रोहिंग्या मुसलमान भारत के लिए खतरा हैं और ये खुद केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी कह चुके हैं। पूर्व में हुईं कई घटनाओं को देखते हुए खुफिया ब्यूरो ने भी कई बार कहा है कि आतंकवादी गतिविधियों में रोहिंग्या शामिल हैं। ऐसे कई मामले सामने आये हैं जिनसे रोहिंग्या का आतंकी संगठन के साथ सांठ-गांठ को इंगित किया है। वर्ष 2002 में एक वीडियो भी सामने आया था जिसमें अफगानिस्तान में रोहिंग्या मुसलमानों का एक समूह तालिबान शिविरों में प्रशिक्षण ले रहा था। वहीं, 17 सितंबर 2017 को दिल्ली पुलिस की विशेष दल ने अलकायदा के ऑपरेटर को गिरफ्तार किया जिसे पूर्वी भारत में म्यांमार सेना से लड़ने हेतू रोहिंग्या मुसलमानों की भर्ती के लिए एक आतंकवादी मोर्चा स्थापित करने की जिम्मेदारी दी गई थी। ये सभी मामले स्पष्ट करते हैं कि रोहिंग्या मुसलमान आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हैं और भारत में अगर इन्हें रहने की अनुमति दी गयी तो ये भारत और उसकी आबादी के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं। वहीं, एक रिपोर्ट में भी सामने आया था जिसके मुताबिक, रोहिंग्या आतंकवाद 25 अगस्त, 2017 में म्यांमार के रखाइन प्रांत के एक गांव में रहने वाले हिंदुओं के कत्लेआम के दोषी हैं। शायद यही वजह होगी रोहिंग्या द्वारा म्यांमार में किये गये अत्याचार के कारण ही म्यांमार सेना उनकी गतिविधियों पर कार्रवाई करने के लिए मजबूर हुई थी। रखाईन प्रांत में रोहिंग्यों द्वारा बौद्ध और हिंदुओं के नरसंहार को अक्सर लिबरल दुनिया और भारतीय मीडिया नजरअंदाज करती आयी है।
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हालांकि, मौजूदा सरकार का रुख हमेशा से स्पष्ट रहा है कि वो भारत की सुरक्षा को लेकर कोई भी जोखिम नहीं उठाना चाहती है। हालांकि, कुछ नेता अपने राजनीतिक फायदे के लिए रोहिंग्या के समर्थन में अपनी आवाज उठाते हैं लेकिन किसी को भी भारत की सुरक्षा की ताक पर अपने हित को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। अगर रोहिंग्या को भारत में रहने की अनुमति दी जाती है तो वो भविष्य में भारत के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकती हैं। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों को अवैध अप्रवासियों को बाहर निकालने के आदेश दे चुकी है। असम सरकार नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर(एनआरसी) लाया गया और 40 लाख अवैध अप्रवासियों की पहचान की गयी। यही नहीं केंद्र सरकार रोहिंग्याओं को वापस म्यांमार भेजना शुरू भी कर चुकी है। पिछले साल अक्टूबर माह में सात रोहिंग्याओं को म्यांमार भेजा गया था।
भारत ने हमेशा ही दुनिया भर के शरणार्थियों को जगह दी है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि भारत में रहकर आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया जाए। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा अवैध अपर्कासियों के खिलाफ उठाया गया कदम कहीं से भी गलत नहीं है। ये कदम उन्हीं नेताओं को रास नहीं आ रहा जिन्हें अपने वोटबैंक की चिंता सता रही है।