सीपीआई ऐक्टिविस्ट का सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करना भक्ति नहीं वीभत्सता है

सबरीमाला केरल

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सबरीमाला मंदिर में बुधवार को केरल की दो महिलाओं ने भगवान अयप्पा के मंदिर में प्रवेश कर मंदिर की पवित्रता को खंडित कर दिया। इसके साथ ही हजारों साल की वो परंपरा टूट गयी जिसके तहत ‘प्रतिबंधित आयु वर्ग’ की महिलाएं मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकतीं हैं। इसमें सबसे बड़ा हाथ केरल की कम्युनिस्ट सरकार का है जिसने पूरी योजना के साथ सबरीमाला मंदिर की पवित्रता को खंडित करने के प्रयास में सफलता पायी। सबरीमाला में बुधवार के तड़के सुबह करीब 40 वर्ष की बिंदु और कनकदुर्गा नाम की दो महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश किया और भगवान अयप्पा का दर्शन किये। इसके लिए महिलाओं ने ऐसा दिन चुना जिस समय लोगों का ध्यान मंदिर की ओर न हो। ये दोनों महिलाएं काले कपड़ों में थीं और इनके साथ सादे कपड़ों में 6 पुलिसवाले भी थे। प्रवेश के लिए पारंपरिक रास्ते (पथिनेट्टम पड़ी) की बजाय स्टाफ के आने-जाने की राह को चुना गया। जैसे ही ये खबर फैली अयप्पा के भक्तों और बीजेपी ने इसके खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसके बाद सीपीआईएम और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हो गयी जिसमें एक 55 वर्ष के सबरीमाला कर्म समिति की एक कार्यकर्ता बुरी तरह से घायल हो गयी। अब अस्पताल में घायल अयप्पा की भक्त की मौत हो गयी है। फ़िलहाल, महिलाओं के प्रवेश के बाद ‘शुद्धिकरण’ के लिए मंदिर को बंद करने का फैसला लिया गया है।

जिन दो महिलाओं ने सबरीमाला मंदिर में प्रवेश किया था उनमें से एक सीपीआई ऐक्टिविस्ट है और कुछ समय के लिए वो राज्य सचिव भी रह चुकी है। 42  साल की बिंदू अम्मिनी कन्नूर यूनिवर्सिटी में लीगल स्टडीज की असिस्टेंट प्रफेसर भी है। हालांकि, 10 साल से वो सक्रिय राजनीति से दूर है। वहीं दूसरी महिला  44 साल की कनकदुर्गा सिविल सप्लाइ कॉर्पोरेशन आउटलेट में असिस्टेंट मैनेजर है जोकि रुढ़िवादी नायर परिवार से हैं। कनक के परिवारवाले नहीं चाहते थे कि वो सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करे लेकिन इसके बावजूद कनक ने मंदिर में प्रवेश किया। मतलब की साफ़ है दोनों न ही अयप्पा की भक्त हैं और ही इन्हें हिंदुओं की धार्मिक भावना से कोई मतलब है लेकिन फिर भी केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने इन महिलाओं को कड़ी सुरक्षा मुहैया करवाई और दर्शन भी करवाया। जबकि ये दोनों महिलाओं ने दर्शन के लिए ले जाने वाली पूजा के समाग्री भी अपने साथ लेकर नहीं गयी थीं इनका मकसद सिर्फ मंदिर की परंपरा तोड़ना था। हालांकि, ये समझना मुश्किल है कि लैंगिक समानता के नाम पर मंदिर की परंपरा तोड़ना कहां तक उचित है? किसी भी मंदिर में प्रवेश की अनुमति होने और न होने के पीछे ख़ास वजह होती है। ऐसे कई मंदिर भी हैं जहां पुरुषों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है लेकिन महिलाओं को है। केरल में ही स्थित अत्तुकल भगवती मंदिर में पुरुषों के प्रवेश पर रोक है वहीं कन्याकुमारी में स्थित भगवती मंदिर में शादीशुदा पुरुषों को प्रवेश की अनुमति नहीं है। यही नहीं बिहार के मुजफ्फरपुर में बने माता मंदिर में तो पुजारी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं है। इन सभी मंदिरों में प्रवेश वर्जित होने के पीछे एक कोई न कोई कारण हैं। इसका तो कोई विरोध नहीं करता? ये सभी मंदिर लैंगिक समानता को नहीं दर्शाते हैं।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में 10-50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश से प्रतिबंध को जबसे हटाया है तबसे केरल सरकार और कुछ कथित कार्यकर्ताओं ने मंदिर की परंपरा को तोड़ने का भरपूर प्रयास किया। जिन्होंने भी प्रयास किया था वो मुस्लिम, ईसाई धर्म और कम्युनिस्ट थीं जिनके अंदर भगवान अयप्पा के लिए कोई भक्ति भावना नहीं थी और न ही उनके मन में हजारों वर्षों से चले आ रहे हिंदू धर्म की मान्यता के लिए कोई सम्मान है। यही नहीं एक्टिविस्ट रेहाना फातिमा तो अपने साथ खून से सना सैनिटरी नैपकिन भी ले गयी थी। मतलब साफ़ है मंदिर की पवित्रता खंडित करना ही उसका उद्देश्य था। ताज्जुब की बात तो यहां ये भी है कि कोर्ट के फैसले के बाद से विरोध प्रदर्शन में ज्यादातर महिलाएं ही शामिल रही हैं जो इस फैसले का विरोध कर रही हैं। महिला श्रद्धालु पूरे जोश के साथ भगवान अय्यपा के प्रति अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए लड़ रही हैं। ये शर्मनाक है कि केरल सरकार विरोध के बावजूद बार बार हिंदू मंदिर की पवित्रता को खंडित करने और हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के प्रयासों का सहयोग कर रही है। वास्तव में केरल सरकार भी लैंगिक समानता के नाम पर हिंदू धर्म पर वार के अपने उद्देश्य की पूर्ति कर रही है और उन्हें इस बात का कोई अफसोस भी नहीं है।

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