10 फीसदी सवर्ण आरक्षण को लेकर सपा और आजम खान के रुख बदले-बदले क्यों हैं?

आजम खान सपा आरक्षण

PC: NDTV Khabar

मोदी सरकार द्वारा गरीब सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को संसद में लाए जाने से हंगामा शुरू हो गया है। न तो विपक्षी दल खुलकर सममर्थन ही कर पा रहे हैं और न ही विरोध कर पा रहे हैं। इसी क्रम में समाजवादी पार्टी में भी मतभेद देखने को मिले हैं। एक तरफ समाजवादी पार्टी ने गरीब सवर्णों को दिए जाने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण का समर्थन किया है तो वहीं सपा में मुसलमानों के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री आजम खान ने पार्टी लाइन से हटकर बयान दिया है। आजम खान ने इसे चुनावी स्टंट बताया है। यही नहीं, आजम खान ने मुसलमानों के लिए इन 10 प्रतिशत में से 5 प्रतिशत आरक्षण की मांग रखी है। जिससे ये पता चलता है कि पार्टी में सबकुछ ठीक चल रहा नहीं है।    

बता दें कि मोदी सरकार ने सोमवार को आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी। सरकार के इस ऐलान के बाद से ही विपक्षी नेता बैकफुट पर आ गये हैं। इस बीच समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान ने एक नई मांग उठा दी है। उन्होंने पार्टी लाइन से अलग कहा है कि 10 प्रतिशत में से 5 प्रतिशत आरक्षण मुस्लिमों को दिया जाना चाहिए।

पार्टी लाइन से हटकर आजम ने आगे कहा कि मुझे ये जानना है कि 10 प्रतिशत में से आर्थिक रूप से कमजोर मुस्लिमों को कितना प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। उन्होंने कहा कि एक बार फिर चुनाव के वक्त सांप्रदायिक कार्ड खेला जा रहा है। अगर इस संवैधानिक बदलाव में मुस्लिमों के बारे में नहीं सोचा जा रहा है, तो फिर इस आरक्षण का क्या मतलब है।

बताते चलें कि सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करने वाला संविधान का 124वां संविधान संशोधन विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने इस विधेयक को लोकसभा में आज यानी मंगलवार को पेश किया।

आजम खान का पार्टी से हटकर यूं बगावत करना बताता है कि पार्टी के अंदर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। बता दें कि इससे पहले सपा-बसपा गठबंधन सपा के मतदातों में काफी नाराजगी है। इसका कारण है कि यादवों और दलितों की कभी बनी नहीं है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, SC / ST अत्याचार अधिनियम में ज्यादातर मामले यादवों के खिलाफ ही हैं। ऐसे में यादव नेता और दलित नेता के साथ आने से दोनों जातियों में नाराजगी है। दोनों पक्षों के स्थानीय नेता सपा-बसपा गठबंधन के खिलाफ हैं। उनमें सपा-बसपा गठबंधन को लेकर खुशी नहीं है। ऐसे में आजम खान का पार्टी के हटकर बयान देना आने वाले समय में पार्टी के परंपरागत मतदाता आधार (मुस्लिम-यादव) में बिखराव होना तय है।

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