मीडिया, मानवाधिकार गैंग और सेक्युलर नेताओं ने मिल कर मारा है हमारे 44 जवानों को

आदिल अहमद डार

PC: Hindustan

श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, ‘रिपु रुज पावक पाप प्रभु अहि गनिअ न छोट करि।‘ इसका मतलब है कि कभी भी शत्रु, रोग, अग्नि, पाप, स्वामी और सर्प को कमजोर नहीं समझना चाहिए। छोटा शत्रु कभी भी बड़ा खतरा बन सकता है, छोटा रोग कभी भी जानलेवा बीमारी बन सकता है, छोटी चिंगारी बड़े बड़े भवनों को राख कर सकती है, छोटा सा पाप पूरी ज़िन्दगी तबाह कर सकती है, छोटा सा सर्प आगे चल कर विषैला भुजंग बन सकता है और स्वामी तो है ही।

ऐसा ही एक छोटा शत्रु था आदिल अहमद डार। आदिल अहमद डार भी कश्मीर के हज़ारों पत्थरबाजों में से एक पत्थरबाज था। आदिल अहमद डार उन हज़ारो प्रर्दशनकारियों में से एक प्रदर्शनकारी था जिसने बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर में उत्पात मचाया था। साल 2017 में जब सेना ने पत्थरबाजों से निपटने के लिए पैलेट गन्स का सहारा लिया था तब मीडिया रुदाली राग अलापने लगी थी। पूरी मीडिया तब चीख चीख कर कह रही थी कि कश्मीर के मासूम नौजवान अंधे किये जा रहे हैं, बहरे किये जा रहे हैं, लोहे के छर्रों से उन्हें तार तार किया जा रहा है। इनके बचाव में फिर मानवाधिकार वाले उतरे,  इसके बाद अमन की आशा वाले और आखिर में इन नौजवानों के बचाव सेक्युलर राजनेता आये। इस तरह पैलेट गन्स ज़्यादा दिनों तक नहीं टिक सके।

मेजर गोगोई ने जब एक पत्थरबाज को जीप से बांध कर अपनी पूरी टीम की जान खून के प्यासे पत्थरबाजों से बचायी थी। तब मेजर गोगोई को देश में बड़ा अपराधी बना दिया गया। इसके पीछे वही मीडिया वाले, मानवाधिकार और सेक्युलर राजनेता थे। यही नहीं मेजर आदित्य पर पत्थरबाजों पर गोली चलाने के लिए एफआईआर तक थोप दिया गया और इसके पीछे भी वही मीडिया वाले, मानवाधिकार और सेक्युलर राजनेता थे।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने तो अपने एक बयान में आम कश्मीरियों को मारने का इलज़ाम आर्मी पर ही लगाया था। वहीं महबूबा मुफ़्ती ने तो सेना पर पत्थरों से हमला करने वाले पत्थरबाजों को माफ़ी दे दी थी।

इन सब ने मिलकर एक छोटे शत्रु को एक बड़ा खतरा बना दिया, एक चिंगारी को आग बनाया, एक संपोले को विषधर सांप बनाया। ये और कोई नहीं बल्कि आदिल अहमद डार है जो कब का सेना के हत्थे चढ़ गया होता, अगर हमने अपनी ही सेना को काम करने से नहीं रोका होता। अगर आज डार नहीं होता तो हमारे 44 बहादुर सिपाही ज़िंदा होते।

याद रखिये एक पत्थरबाज और एक आतंकवादी में बस इतना फर्क होता है कि आतंकवादी के पास असला बारूद होता है और पत्थरबाज के पास रोड़े पत्थर, आतंकवादी के पास पाकिस्तान में बैठा एक हैंडलर होता है जबकि पत्थरबाज के पास एक लोकल हैंडलर, आतंकवाद की मंज़िल पत्थरबाज़ी के रास्ते से ही तय होती है। ये सच है, अब इस सच को मानिये या फिर शुतुरमुर्ग की तरह सर जमीन में गाड़ के बैठे रहिये!

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