बिहार में नितीश कैबिनेट ने 10% सवर्ण आरक्षण को दी मंजूरी, क्या होगा इसका लोकसभा चुनाव पर असर

आरक्षण सवर्ण बिहार

PC: Uttarpradesh.org

पिछले साल केंद्र की मोदी सरकार गरीब सवर्णों के लिए 10% आरक्षण लेकर आई जिससे देशभर के सवर्णों में खुशी की लहर दौड़ गयी। विपक्ष ने इसका विरोध भी खुलकर नहीं किया, यही वजह रही कि ये सर्वणों को आरक्षण का प्रस्ताव लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में पास हो गया। गुजरात ने इसे लागू किया फिर झारखंड और उत्तर प्रदेश ने भी इसे लागू कर दिया। अब बड़ी खबर आ रही है कि बिहार में भी गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण को मंजूरी मिल गयी है। शुक्रवार को मुख्यमंत्री नितीश कुमार की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक के गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण को मंजूरी देकर इसे लागू करने का रास्ता साफ़ कर दिया। इसका मतलब ये है कि गरीब सवर्णों को अब नौकरी और शिक्षण संस्थानों के नामांकन में आरक्षण मिलेगा। अब सवाल ये है कि गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण से राज्य में एनडीए को क्या फायदा होगा? क्या इसका लाभ एनडीए को आगामी लोकसभा चुनाव में मिलेंगे? इसे समझने के लिए हमें बिहार की सवर्ण जनसंख्या और मतदान में उनकी हिस्सेदारी को समझना होगा।

हिंदी बेल्ट के राज्यों की एक ख़ास बात है कि यहां चुनाव में आरक्षण का दांव अहम भूमिका निभाता आया है और बिहार में भी कुछ ऐसा ही है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि राज्य की राजनीति में आरक्षण, वोटों की गोलबंदी का अहम कारक रहा है। अब बिहार की जनसंख्या पर एक नजर डालते हैं। बिहार की 83% आबादी हिंदू है और मुसलमानों की जनसंख्या 17% है। यहां हिंदू तीन प्रमुख जाति समूहों में बंटे हुए हैं। सवर्ण, पिछड़ी जातियां (ओबीसी) और दलित (अनुसूचित जाति) है। वहीं बिहार की कुल आबादी में में दलित 16%, सवर्ण 15 से 20 % और ओबीसी करीब 50% है। इसका मतलब ये हुआ कि 10% का आरक्षण उन गरीब सवर्णों को मिलेगा जिनमें मुस्लिम और हिंदू दोनों ही समुदाय के गरीब आते हैं।

वहीं अगर चुनावों में सवर्णों की भागीदारी की बात करें तो वर्ष 1947 से 1967 तक बिहार विधानसभा में सवर्णों का वर्चस्व था उस समय कांग्रेस का शासनकाल था। इसके बाद जब जनता दल ने लालू यादव के नेतृत्व में बिहार का जातीय समीकरण बदल गया और इसके परिणामस्वरूप लालू यादव के 15 वर्षों के शासनकाल में सवर्ण पिछड़ते चले गये। यही नहीं ऊंची जातियों की शैक्षणिक व आर्थिक स्थितियां बिगड़ती चली गयीं। वहीं, लालू यादव के राज में बिहार में भ्रष्टाचार, अपराध को खूब बढ़ावा मिला और नतीजा ये हुआ कि 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव में राजद सरकार को करारी हार का सामना करना पड़ा। यही नहीं और 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी के केवल चार सांसद ही जीत सके। भ्रष्टाचार और अपराध की राजनीति का त्याग कर साल 2005 में राज्य की आम जनता ने विकास का चुनाव किया जिस वजह से लालू की हार और नितीश की जीत हुई। इसके बाद बिहार में एक बार फिर से सवर्णों की भागीदारी में बढ़ोतरी हुई। नितीश के 10 वर्षों के शासनकाल में इसमें करीब 10 फीसदी का इजाफा हुआ।  

फिर भी वर्ष 2011 में नितीश कुमार राज्य में सवर्ण जातियों (हिंदू और मुसलमान) के शैक्षणिक व आर्थिक हालात का जायजा लेने के लिए सवर्ण आयोग गठन किया। इस आयोग की रिपोर्ट जब सामने आई वो चौंका देने वाली थी। उच्च जातियों के बीच साक्षरता दर सबसे अधिक होने के बावजूद शिक्षा का स्तर नीचे है। यही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में ग़रीबी के चलते हिंदुओं की ऊंची जातियों के 49% और मुसलमानों के 61.8% बच्चे स्कूल या कॉलेज नहीं जा पाते। ऐसे में मुख्यधारा से पिछड़ते जा रहे उच्च जातियों के लोगों के लिए 10% आरक्षण उन्हें सुनहरा मौका देगा। उनके शैक्षणिक व आर्थिक हालात में सुधार लायेगा। बीजेपी के समर्थन के साथ नितीश राज्य में सिर्फ सवर्णों ही नहीं बल्कि सभी की स्थिति को सुधारने की दिशा में प्रयासरत रहे। उनके प्रयास भी जमीनी स्तर पर नजर आने लगे और समय के साथ राज्य में महिलाओं और युवाओं की भागीदारी में भी इजाफा हुआ।

बता दें कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जो भारी जीत दर्ज की थी जिसमें युवाओं की भूमिका अहम रही थी। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बिना जेडीयू के ही बीजेपी ने 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, और 22 सीटों पर उसने जीत दर्ज की थी। वहीं एलजेपी 6 और आरएलएसपी 3 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। जिस तरह से इस राज्य में विकास ने गति पकड़ी है और युवा डिजिटल इंडिया की ओर अकार्षित हो रहे हैं उससे इस राज्य में केंद्र की नीतियों और योजनाओं के प्रति जागरूकता बढ़ी है। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को इसका लाभ जरुर मिलेगा क्योंकि इस बार भी बीजेपी 2014 के आम चुनावों की तरह ही युवा मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रही है। बिहार के 6 करोड़ 70 लाख वोटर्स में से 31% मतदाता 18 से 29 की उम्र के युवा मतदाता बिहार में एनडीए की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

कुल मिलाकर जिस तरह से सवर्णों के विकास के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार प्रयासरत हैं उससे उन्हें सवर्णों पर काफी भरोसा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में उनके साथ खड़े रहेंगे। हालांकि, जिस तरह से सवर्णों के लिए आरक्षण और अब मध्यम वर्ग के लिए टैक्स में भारी छूट की घोषणा मोदी सरकार द्वारा की गयी है उससे बिहार की जनता का झुकाव पीएम मोदी की ओर बढ़ गया है। ऐसे में हम वर्तमान स्थिति को देखें तो पाएंगे कि राज्य में सवर्णों का एक बड़ा तबका पीएम मोदी से काफी प्रभावित है। सिर्फ सवर्ण ही नहीं बल्कि ये कहना ज्यादा उचित होगा कि बिहार में बड़े मतदाताओं का समूह नितीश को मुख्यमंत्री और बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं।

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