सीआरपीएफ ने कारवां की घटिया पत्रकारिता को दिया करारा जवाब

पुलवामा में शहीद हुए जवानों को कारवां पत्रिका के जाति के आधार पर न सिर्फ बांटा बल्कि देश की एकजुटता पर भी हमला करने का प्रयास किया। लेफ्ट-लिबरल के मुखपत्र ने अपनी इस गंदी पत्रकारिता से एक बार फिर से साबित किया कि वो देश को बांटने के लिए किस स्तर पर जा सकती है। हालांकि, इस घटिया लेख का अब खुद सीआरपीएफ ने कड़ा जवाब दिया है और स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनकी पहचान एक भारतीय है और उन्हें रंग, धर्म और जाति के आधार पर बांटकर शहीदों का अपमान न करें।

सीआरपीएफ के उप महानिरीक्षक मोसेस दिनाकरन ने कारवां पत्रिका को करारा जवाब देते हुए कहा, “हम सभी सीआरपीएफ की पहचान भारतीय है। न इससे ज्यादा और न ही इससे कम। जाति, रंग और धर्म के आधार विभाजन हमारे खून में नहीं है। आपको सभी शहीदों का अपमान करने से बचना चाहिए। ये कोई आंकड़ा नहीं है जो आप अपने घटिया और निम्न स्तर के लेखों के लिए इस्तेमाल करें।” इस जवाब से लेफ्ट-लिबरल के मुखपत्र को करारा जवाब मिल गया होगा। यही नहीं इससे पहले इस घटिया लेख के लिए कारवां को यूजर्स ने खूब लताड़ लगाई थी। यही नहीं कॉलमनिस्ट आनंद रंगनाथन ने भी इस का कड़ा जवाब दिया था। इससे पहले कारवां पत्रिका के इस घटिया लेख का कॉलमनिस्ट आनंद रंगनाथन ने करारा जवाब दिया था। उन्होंने कहा था कि “जो इस लेख को सही बता रहा है ये उसके अतार्किक (इलॉजिकल) और साइकोपैथिक (मानसिक बीमारी)को दर्शाता है।”

बता दें कि कारवां पत्रिका ने अपने लेख में लिखा था, “अर्बन मिडिल क्लास खासकर उच्च जाति के भारतीय राष्ट्रवाद का प्रदर्शन करते हैं लेकिन ये विडंबना है कि पुलवामा में हुए आतंकी हमले में शहीद 40 जवानों में से अधिकतर निम्न जाति के गरीब लोग हैं। मैंने 40 शहीद सीआरपीएफ जवानों की जाति की जनच की। हमने जवानों के परिवारवालों से संपर्क किया, फ़ोन के जरिये और उनके घर जाकर पता किया तो ये निष्कर्ष निकला कि शहीद हुए जवानों में अधिकतर निम्न जाति समुदाय से थे। इनमें से अन्य पिछड़ा वर्ग (या पिछड़ी जाति) के 19 जवान, अनुसूचित जाति के 7, अनुसूचित जनजाति के5, उच्च जाति के पृष्ठभूमि के 4, एक उच्च जाति के बंगाली, तीन जाट सिख और एक मुस्लिम शामिल थे। इसका मतलब ये है कि शहीद हुए 40 जवानों में से सिर्फ पांच या यूं कहें कि 12।5 फीसदी उच्च जाति की पृष्ठभूमि से थे। ये आंकड़ा बताता है कि शहरी मध्यवर्ग का हिंदुत्व राष्ट्रवाद जोकि मुख्य रूप से दक्षिणपंथी समूहों द्वारा फैलाया गया वो दलितों के बलिदान का फायदा उठाता है।“ ये शर्मनाक है कि शहीदों के बलिदान का इस तरह से एक नामी पत्रिका जातिवाद का जहर फैला रही है।

वास्तव में लेफ्ट-लिबरल्स का मकसद देश को बांटना है वो देश को एकजुट देखकर जैसे परेशान से हो जाते हैं। देश के लोग एकजुट न रहे, एक होकर कोई अपने अधिकारों की बात न करे, धर्म, जाति और भाषा के नामा पर लड़ते रहे बस यही चाहते हैं। हालांकि, आज के समय में इस गैंग की हर चाल नाकमयाब हो रही है। वो जितनी मजबूती के साथ देश में जातिवाद और धर्म का जहर फैलाने का प्रयास कर रहे हैं देश की जनता उनके मंसूबों से उतनी ही वाकिफ होती जा रही हैं। सीआरपीएफ ने भी अपने जवाब से इस पत्रिका की देश को बांटने के एजेंडे की पोल खोल दी है।

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