राजस्थान में एक बार फिर से गुर्जरों का घमासान शुरू हो गया है। पांच फीसदी आरक्षण की मांग को लेकर प्रदेश में गुर्जर समाज के लोग राजमार्गों और रेलवे ट्रैक पर जुटना शुरू हो गए हैं। आरक्षण की मांग को लेकर शुक्रवार को गुर्जर समाज द्वारा प्रदेश की कांग्रेस सरकार को 4 बजे तक का वक्त दिया गया था। इसके बाद मांग पूरी न होने के कारण गुर्जर समाज शुक्रवार शाम से ही आंदोलन पर है। सवाई माधोपर के मलार्ना डुंगर स्टेशन पर गुर्जर पटरियों पर बैठ गए हैं। आम चुनाव नजदीक होने के कारण गुर्जर इस बार ‘अबकी बार, आखिरी बार’ के संकल्प के साथ आंदोलन कर रहे हैं। जिस तरह से गुर्जर गांवों-गांवों में आंदोलन की रणनीति बना रहे हैं, उससे लग रहा है कि, यह आंदोलन काफी बड़ा रूप लेने वाला है और कई दिनों तक चलेगा। गुर्जरों का यह आक्रोश आने वाले लोकसभा चुनाव के मध्यनजर कांग्रेस सरकार के लिए गले की फांस बनने जा रहा है।
बता दें कि, गुर्जरों का आरक्षण के लिए आंदोलन 13 साल पहले 2006 में शुरू हुआ था। साल 2006 से अब तक गुर्जर समुदाय वसुंधरा सरकार में 4 बार और गहलोत सरकार में अब दूसरी बार आंदोलन पर उतरा है। गुर्जरों ने वसुंधरा सरकार में 3 बार रेलवे ट्रैक जाम किया गया था और गहलोत सरकार में अब दूसरी बार रेलवे ट्रेक जाम कर रहे हैं। इन 13 सालों में गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान 72 गुर्जर अपनी जान दे चुके हैं। इस बार भी राजस्थान में पिछले गुर्जर आंदोलनों जैसे ही माहोल बनते दिख रहे हैं।
गुर्जर समुदाय द्वारा मांग की गई है कि सरकार सभी प्रक्रिया पूरी करके पांच प्रतिशत आरक्षण बैकलाग के साथ गुर्जरों को दे। गुर्जर आरक्षण आंदोलन संघर्ष समिति की ओर से शुक्रवार को समाज के लोगों ने महापंचायत की थी। इसमें उन्होंने आरक्षण पर सरकार के फैसले का इंतजार किया। चार बजे की समय सीमा जैसे ही पूरी हुई तो किरोड़ी सिंह बैसला के नेतृत्व में गुर्जर समुदाय मलारना डूंगर स्टेशन से तीन किमी दूर रेलवे ट्रैक की ओर कूच कर गया और पटरियों पर जाकर बैठ गया। बैंसला का कहना था कि अब तो जब सरकार की ओर से आरक्षण की चिट्ठी आएगी, तब ही वे रेलवे ट्रैक से उठेंगे। बैंसला के ट्रैक पर बैठने के बाद से ही राजस्थान के कोने-कोने से गुर्जर आन्दोलन में आ रहे हैं और रेलवे ट्रैक रोकने के प्रयास कर रहे हैं।
गौरतलब है कि, इससे पहले 24 सितंबर 2015 को विधानसभा में विशेष पिछड़ा वर्ग (एसबीसी) विधेयक पारित हुआ था। इसमें गुर्जर समुदाय को 5 फीसदी आरक्षण दिया गया था। इस विधेयक को राज्य सरकार ने 16 अक्टूबर 2015 को नोटिफिकेशन जारी करते हुए लागू किया था। ये विधेयक 14 महीने चला और 9 दिसंबर 2016 को हाईकोर्ट द्वारा खत्म कर दिया गया। अब इसका मामला सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है।
इस समय सवाई माधोपुर जिले के गुर्जर बाहुल्य गांवों कैलाशपुरी, हिंदवाड़, हलौंदा, कुशालीपुरा, बोदल, छाण, बाढ़पुर, बैरना, फरीया, खंडेवला, मेई कलां, नायपुर, तलावड़ा, सावंटा, डाबिच, पिलेंडी, बरनावंदा, परसीपुरा, बाजौली, बिचपुरी गुजरान सहित कई गांवों में गुर्जर नेता व समाज के लोग गुप्त तरिके से बैठक कर आंदोलन की ठोस रणनीति बना रहे है। जब तक आरक्षण नहीं मिल पाता तब तक गुर्जर समुदाय आंदोलन पर ही रहने की तैयारियां कर रहा है।
गुर्जरों के इस आरक्षण ने प्रदेश की कांग्रेस सरकार की सांसे फुला दीं हैं। आंदोलन को देखते हुए राज्य में यूपी और एमपी से सुरक्षा बल को बुलवाया गया है। रेलवे स्टेशन और पटरियों पर सुरक्षा के इंतजाम किए हैं। गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान प्रभावित इलाकों में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्य सरकार ने 8 जिलों में राजस्थान सशस्त्र बल की 17 कंपनियों की तैनाती की है।
इस आंदोलन को अभी पूरे 24 घंटे भी नहीं बीते हैं कि रेलवे द्वारा कई गाड़ियों को रद्द या फिर डायवर्ट करना पड़ा है। गाड़ी संख्या 54794 मथुरा – सवाई माधोपुर पैसेंजर को गंगापुर सिटी में आंशिक रद्द किया गया है। 12060 जन शताब्दी एक्सप्रेस को गंगापुर सिटी और ट्रेन 69155 को सवाई माधोपुर में आंशिक रद्द किया गया है। इसके साथ 59811 रतलाम आगरा फोर्ट को कोटा में आंशिक रद्द किया गया है। कुल 20 ट्रेनों का डाइवर्जन किया गया है और एक ट्रेन 59812 आगरा फोर्ट से रतलाम को कैंसिल कर दिया गया है।
साल 2006 से किस तरह गुर्जरों का आरक्षण आंदोलन चल रहा है आइए वह आपको बताने की कोशिश करते हैं-
2006 : इस साल पहला गुर्जर आंदोलन हुआ था। उस समय गुर्जरों को एसटी में शामिल करने की मांग हुई थी और हिंडौन में पटरियां उखाड़ी गईं। इस आंदोलन के बाद भाजपा सरकार ने एक कमेटी बनाई थी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
2007 : 21 मई 2007 को पीपलखेड़ा पाटोली में राजमार्ग रोका गया था जिसमें 28 लोग मारे गए थे। इसके बाद भाजपा सरकार से समझौता हुआ था। चौपड़ा कमेटी बनी थी और कमेटी ने गुर्जरों को एसटी आरक्षण के दर्जे के लायक नहीं माना था।
2008 : 23 मई 2008 को बयाना में पीलुकापुरा ट्रैक रोका गया था। इसमें 7 लोग मारे गए थे। दूसरे दिन सिकंदरा में हाईवे जाम हुआ और 23 लोग मारे गए। इसके बाद भाजपा सरकार में 5% एसबीसी आरक्षण पर सहमति बनी लेकिन फिर हाईकोर्ट में अटक गया।
2010 : 24 दिसंबर 2010 को पीलुकापुरा में रेल रोकी गई। इसके बाद कांग्रेस सरकार से 5% आरक्षण पर समझौता हुआ। मामला कोर्ट में था तो कुल आरक्षण 50 पर्सेंट से ज्यादा होने के कारण सिर्फ 1% आरक्षण दिया गया।
2015 : 21 मई 2015 को पीलुकापुरा बयाना में आंदोलन हुआ। इसके बाद भाजपा सरकार ने गुर्जर सहित 5 जातियों को 5% एसबीसी आरक्षण दिया था। इससे प्रदेश में कुल आरक्षण 54% हो गया था। बाद में इस पर हाईकोर्ट की रोक लग गई और अब गुर्जरों को 1% आरक्षण ही मिल रहा है।
इस दौरान 13 सालों में गुर्जर आरक्षण आंदोलन में 754 केस दर्ज हुए थे, इनमें से 105 कोर्ट में हैं और 614 केस वापस ले लिये गए। वहीं 35 मामलों की पुलिस जांच कर रही है।
लोकसभा चुनावों को देखते हुए इस बार गुर्जर आरक्षण आंदोलन कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकता है। आंदोलन के कारण राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है जिससे कांग्रेस सरकार का चुनाव प्रचार से ध्यान भटकना तो निश्चित ही है। राज्य की कांग्रेस सरकार का पूरा फोकस और मशीनरी अब गुर्जर आंदोलन के लिए ही लगने वाली है। दुसरी तरफ आरक्षण न मिलने से नाराज गुर्जरों के रूप में आने वाले चुनाव में कांग्रेस को भारी नुकसान होगा।