ममता बनर्जी ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए खोला राज्य का खजाना

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पश्चिम बंगाल ने करदाताओं के पैसों का इस्तेमाल पश्चिम बंगाल में मदरसा बनाने और आंध्र प्रदेश में चर्च बनाने के लिए किया जा रहा है। माय नेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने 2019-20 के बजट में मदरसों के विकास के लिए 4,016 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि आंवटित की गयी है जबकि पूरे राज्य में उच्च शिक्षा का बजट सिर्फ 3,964 करोड़ रुपये रखा गया है।

मदरसे के विकास के लिए 4,016 करोड़ और उच्च शिक्षा के लिए सिर्फ 3,964 करोड़ रुपये आवंटित करना ये सवाल खड़ा करता है कि क्या पश्चिम बंगाल की सरकार पाकिस्तान के नक़्शे कदम पर चल रही है?

डेली हंट की रिपोर्ट के अनुसार साल 2006 में मदरसों के विकास के लिए 12 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे जो अब 13 सालों में 335 गुना बढ़ गया है। जबकि उच्च शिक्षा के लिए बजट सिर्फ 5 गुना ही बढ़ा है। साल 2006 में उच्च शिक्षा के लिए 760 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे जो अब 3,964 हो गया है। ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि ममता सरकार ने उच्च शिक्षा से ज्यादा मदरसों के विकास को तवज्जों दी है। इससे ममता की सरकार की मंशा साफ़ जगजाहिर होती है। ऐसे मसय में जब राज्य औद्योगिक विकास, बुनियादी जरुरतों और  अच्छी शिक्षा व्यवस्था से वंचित है तब राज्य सरकार अल्पसंख्यकों को लुभाने के प्रयास में जुटी है।

माय नेशन ने अपनी रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल भाजपा के महासचिव रितेश तिवारी ने कहा, ‘यह खुलेआम मुस्लिम तुष्टिकरण है। ये खेल तब शुरू हुआ जब ममता विपक्ष में थीं और राज्य में बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली वाममोर्चे की सरकार थी। तृणमूल सरकार के दौरान मुस्लिम तुष्टिकरण में लगातार वृद्धि हुई है।वो मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ हैं या उनके खिलाफ इससे जगजाहिर है। ये तुष्टिकरण का निम्न स्तर है। वास्तव में ममता राज्य में जो कुछ भी बचा है, उसे बर्बाद करने पर तुली हैं।’

ऐसा लगता है कि ममता और नायडू के बीच कम्पटीशन चल रहा है। कम्पटीशन ये कि कौन अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण में कितना निम्न स्तर पर जा सकता है। बता दें कि आंध्र प्रदेश में नायडू ने पूरे राज्य में चर्चों और मस्जिदों के नवीनीकरण और निर्माण के लिए हजारों करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं।

पिछले साल क्रिसमस के अवसर पर, नायडू ने ईसाई तीर्थयात्रियों को यरूशलेम की यात्रा के लिए दी जाने वाली वित्तीय सहायता को 40,000 रुपये से 75,000 रुपये तक कर दी थी। यही नहीं पिछले साल चंद्रबाबू नायडू ने राजधानी अमरावती में हैदराबाद के विशाल मस्जिद की तरह ही एक विशाल मस्जिद के निर्माण की घोषणा की थी। उन्होंने घोषणा करते हुए कहा था , “मस्जिद राज्य वक्फ बोर्ड की देखरेख में 10 एकड़ क्षेत्र में बनाया जाएगा।“ चंद्रबाबू नायडू ने आगे कहा था, “अमरावती में मस्जिद निर्माण आधुनिक शैली के अनुरूप होना चाहिए और इससे ये आकर्षक पर्यटक स्थल भी बनेगा।” इसके लिए राज्य में भूमि अधिग्रहण का काम भी शुरू कर दिया गया है। यही नहीं आंध्र प्रदेश में ईसाइयों के लिए भूमि अधिग्रहण और दफन के कब्रगाह के निर्माण के लिए 100 करोड़ रुपये की भी घोषणा की थी। उनकी पार्टी भी दलित ईसाइयों को एससी का दर्जा देने की मांग कर रही है।

चर्च और मदरसों के विकास के लिए अधिक धनराशि आंवटित कर इन नेताओं ने ये दर्शा दिया है कि इन्हें राज्य के पूर्ण विकास से कोई मतलब नहीं है। वास्तव इन्हें तुष्टिकरण की राजनीति से फुर्सत ही नहीं है। ये करदाताओं के पैसों का इस्तेमाल अपने वोटबैंक की राजनीति के लिए कर रहे हैं।

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