सवर्णों को 10% आरक्षण देने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान

सुप्रीम कोर्ट आरक्षण

PC: Newsstate

गरीब सवर्णों के लिए दिए गये 10 फीसदी आरक्षण का विपक्ष विरोध कर रहा है और इसे असंवैधानिक बता रहा है। आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए लागू किये गये आरक्षण के खिलाफ तहसीन पूनावाला ने कोर्ट में याचिका दायर की थी और आरक्षण पर रोक लगाने की मांग की थी। मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार गरीब सवर्णों को 10% आरक्षण दिए जाने के केंद्र सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट फिलहाल रोक लगाने से इंकार कर दिया है जिससे विपक्ष को बड़ा झटका लगा है।

बता दें कि कारोबारी तहसीन पूनावाला ने पिछले महीने कोर्ट में गरीब सवर्णों को नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसद आरक्षण देने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी। इस याचिका में संविधान (103वां) संशोधन अधिनियम, 2019 को चुनौती दी है जिसके तहत सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण प्रदान किया गया है। याचिका में कहा गया है, ‘संवैधानिक संशोधन औपचारिक रूप से उस कानून का उल्लंघन करता है जो सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में इंदिरा साहनी मामले में अपने आदेश द्वारा स्थापित किया था।‘ इस याचिका में संविधान में जोड़े गए अनुच्छेद 15(6) और 16(6) के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग भी की गई थी। इस याचिका में कहा गया था कि संविधान संशोधन (124वें) पूर्ण रूप से संवैधानिक मानक का उल्लंघन करता है लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी तरह की रोक लगाने से इंकार कर दिया है। विपक्ष की रणनीति पर पानी फिर गया है।

बता दें कि इससे पहले कोर्ट ने केंद्र सरकार को 25 जनवरी को गरीब सवर्ण के लिए 10% आरक्षण के खिलाफ दायर की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सरकार से 3 हफ्ते में जवाब मांगा था। मतलब की इस मामले पर सुनवाई कोर्ट कुछ हफ़्तों बाद ही करेगा। जल्द ही केंद्र सरकार भी इसपर अपना जवाब स्पष्ट कर देगी।  

गौरतलब है कि मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा हाल ही में सात जनवरी को आर्थिक रूप से कमजोर उच्च जातियों के लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने का बड़ा फैसला लिया गया था। इसके बाद सरकार ने इस बिल को आठ जनवरी को लोकसभा और नौ जनवरी को राज्यसभा में पास कराया था। दोनों सदनों से पास होने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 13 जनवरी को इस बिल को मंजूर दी थी। विपक्ष ने दोनों ही सदनों में इसका विरोध नहीं किया। अगर वो ऐसा करते तो वो सवर्ण विरोधी पार्टी कहलाते। वहीं लोकसभा चुनाव पास है ऐसे में विपक्ष कोई भी गलती करने से बच रहा है। इसका विरोध न कर पाने से विपक्ष में हलचल मची हुई है यही वजह है कि इसे अप्रत्यक्ष तौर पर गलत ठहराने का पूरा प्रयास किया जा रहा है।

आजम खान हो या असदुद्दीन ओवैसी हो या कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी सभी ने आरक्षण का विरोध किया और बेतुके तर्क दिए लेकिन उन्हें इससे कोई फायदा नहीं हुआ। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले विपक्ष को फिर से झटका लगा है जो इस आरक्षण को रद्द करने की मांग कर रहे हैं जबकि कुछ विपक्षी पार्टियों ने अपने घोषणापत्र में गरीब सवर्णों के लिए 10% आरक्षण का जिक्र भी किया है। हालांकि, किसी ने भी चुनाव जीतने के बाद इसपर अमल नहीं किया।  

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