केजरीवाल ने काम किया होता तो आज कांग्रेस के आगे गठबंधन के लिए गिड़गिड़ा नहीं पड़ता

दिल्ली केजरीवाल

PC: Satya Hindi

भारत के संविधान के अनुसार शिक्षा का अधिकार हमारे मौलिक अधिकारों में से एक है। संविधान निर्माताओं ने शिक्षा को इतना महत्व इसलिए भी दिया है क्योंकि शिक्षा ही देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति का आधार भी है। शिक्षित समाज में कानून व्यवस्था भी बेहतर हो सकती है। इसमें कोई दो मत नहीं कि अगर समाज की आर्थिक और कानून-व्यवस्था अच्छी हो तो समाज में लोगों का जीवन अधिक खुशहाल होगा।

दिल्ली में लगभग प्रतिवर्ष निगम के विद्यालयों से दो लाख पचास हजार लिद्यार्थि पांचवी कक्षा से छठी कक्षा में आते हैं। दिल्ली सरकार को इन बच्चों की माध्यमिक और उच्च शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। इसके लिए सरकार को लगभग 2200 विद्यालयों में 8000 कक्षाऐं केवल छठी कक्षा के लिए चाहिए। जबकि दिल्ली सरकार केवल 1000 सरकारी विद्यालयों का संचालन करती है। इन सभी बच्चों की समुचिक शिक्षा व्यवस्था के लिए लगभग 1200 विद्यालय और चाहिए। जिसके कारण से गरीब बच्चों को निजी विद्यालयों में मोटी फीस देकर प्रवेश लेना पड़ रहा है।

मानकों के अनुसार एक कक्षा में 30 बच्चों पर एक अध्यापक होना चाहिए, जबकि दिल्ली सरकार के विद्यालयों में लगभग 50 बच्चों एक अध्यापक है। जहां एक तरफ 6 साल से लेकर 14 साल तक बच्चों को निशुल्क शिक्षा मिलनी चाहिए वहीं दिल्ली में लगभग 1.25 लाख बच्चों को सरकारी विद्यालयों में दाखला ही नहीं मिल पा रहा है। इस कारण हजारों बच्चे अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं और बाकी को निजी विद्यालयों में मजबूरी में महंगी फीस देनी पड़ती है।

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जन्मी इस आम आदमी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में शिक्षा को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कही थी। उन्होंने वादा किया था कि पांच वर्षों में 5 हजार विद्यालय बनवाएंगे लेकिन वे पिछले चार सालों में केवल 25 विद्यालय ही बनवा पाए हैं।

कभी 4000 कभी 8000 नई कक्षाएं बनवाने का ढकोसला करने वाली केजरीवाल सरकार यह भूल जाती है कि, केवल कक्षाएं बनवाने से काम नहीं चलता। विद्यालय बच्चे के संपूर्ण विकास की चिंता करता है। उसके शारीरिक, मानसिक और सांस्कृतिक विकास की चिंता करता है।

झूठ की बुनियाद पर बनी केजरीवाल सरकार शिक्षा संबंधी मूलभूत सुविधाएं देने में विफल रही है। एक भी वायदा शिक्षा को लेकर पूरा नहीं किया गया है। दिल्ली सरकार के आंकड़ों के आधार पर इस समय दिल्ली में अध्यापकों के 66736 पद निर्धारित हैं। जिनमें से केवल 38926 पदों पर ही अध्यापकों की नियुक्ति हुई है। बाकी के पदों पर आज तक अध्यापकों की भर्ती नहीं हो पायी।

अगर एक अध्यापक 60 बच्चों को पढ़ायेगा तो वह बच्चों की शिक्षा के साथ कैसे न्याय कर पाएगा। बता दें कि, इन करीब 39000 अध्यापकों में से 17000 अध्यापक अनुबंध पर हैं अर्थात पक्के नहीं हैं। इन अनुबंध वाले अध्यापकों को भी आप सरकार ने पक्का करने का वादा किया था, वह भी अभी तक पूरा नहीं हुआ है। युवाओं को रोजगार दिलाने के झूठे वाद करने वाली केजरीवाल सरकार चाहती तो लगभग 27000 खाली पदों पर अध्यापकों की भर्ती कर इतने लोगों को रोजगार दे सकती थी। अगर 500 अतिरिक्त विद्यालय बन जाते तो एक लाख गरीब बच्चों को शिक्षा मिल सकती थी। इससे 4000 नए अध्यापकों के पद भी विकसित होते जिससे 4000 शिक्षित युवाओं को रोजगार मिल पाता। लेकिन यह सब तब होता जब दिल्ली के तथाकथित मालिक पूरे देश की चिंता छोड़कर सिर्फ अपने राज्य पर ही ध्यान देते।

अगर यह सब किया होता तो शायद केजरीवाल साहब को दिल्ली में लोकसभा चुनाव लड़ने से ड़र नहीं लगता और न ही उन्हें कांग्रेस के आगे गठबंधने के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता। अब यह दिल्ली की जनता को तय करना है कि उसे केजरीवाल पर कितना विश्वास करना है।

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