एके एंटनी और वीके सारस्‍वत ने मिशन शक्ति को लेकर यूपीए शासनकाल की नाकामी को रखा सामने

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मिशन शक्ति को लेकर कांग्रेस के दिग्गज नेता मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा किये गये दावों को पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने ख़ारिज कर दिया है। एके एंटनी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यूपीए के शासनकाल में मिशन शक्ति को मंजूरी नहीं दी गयी थी और न ही मुझे इस बारे में कोई जानकारी थी। इसके अलावा डीआरडीओ के प्रमुख वीके सारस्वत ने भी यूपीए शासनकाल की नाकामी को सामने रखा।

Fmr Defence Minister AK Anthony Reveals He Wasn't Told About 'Mission Shakti' During UPA Government

पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने रिपब्लिक को दिए इंटरव्यू में कहा, “मुझे मिशन शक्ति के बारे में बताया नहीं गया था। मुझे नहीं बताया गया था कि इसे शुरू किये गया था।” कांग्रेस के दिग्गज नेता मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा किये गये दावों को लेकर जब उनसे सवाल किया गया तो उन्होंने दावों को ख़ारिज कर दिया। एके एंटनी ने कहा, “हम यूपीए के तहत इस परीक्षण के लिए तैयार थे, इस बारे में मुझे किसी ने जानकारी नहीं दी थी। आप रक्षा सचिव से भी पूछ सकते हैं और रिकार्ड्स की जांच भी कर सकते हैं। मुझे इस बारे में नहीं बताया गया और मैं इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहता, मुझे इसकी जानकारी नहीं थी।“ पूर्व रक्षा मंत्री के दावों से स्पष्ट है कि एक बार फिर से कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सफल मिशन शक्ति का क्रेडिट लेने के लिए इस तरह के फर्जी दावें कर रही है। ताज्जुब है कि अगर परीक्षण की तैयारी थी तो उस समय के रक्षा मंत्री को इस बारे में कोई जानकारी क्यों नहीं थी?

दरअसल, बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब मिशन शक्ति की सफलता का ऐलान किया तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने दावा करते हुए कहा, “यह 2012 में तैयार हुआ था, लेकिन उस समय इसका परीक्षण नहीं किया जा सका था। अब इसका परीक्षण किया जा रहा है। मैं केवल इतना कह सकता हूं कि जो लोग इसको बनाने के दौरान शामिल थे, मैं उनका शुक्रगुजार हूं।“ खड्गे के इन दावों को पूर्व रक्षा मंत्री ने नकार दिया और कहा कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं थी। वास्तव में अगर यूपीए सरकार ने 2012-13 में ही इस तकनीक के परीक्षण की इजाजत दे दी गई होती तो 2014-15 में इसे लॉन्च किया जा सकता था लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री ने इसे आगे बढ़ने नहीं दिया। खुद इस बात का खुलासा पूर्व डीआरडीओ प्रमुख वीके सारस्‍वत ने भी की है। इसके साथ ही उन्होंने इस सफल परीक्षण के लिए पीएम मोदी की तारीफ भी की है।  पूर्व डीआरडीओ प्रमुख वीके सारस्‍वत ने कहा, “हमने 2012 में तत्कालीन सरकार के संबंधित मंत्रियों, राष्ट्रीय सलाहकार से इस बारे में बात की थी। अपना निवेदन रखा था। हमें अतिरिक्त वित्तीय संसाधन और सरकार की मंजूरी की जरूरत थी। जो किसी वजह से नहीं दी गयी। अगर उस वक्त यह मंजूरी दी गई होती तो वर्ष 2015 तक हम एंटी सैटेलाइट मिसाइल क्षमता हासिल कर लिये होते।“

वीके सारस्‍वत ने आगे कहा, “मुझे लगता है जब डॉ सतीश रेड्डी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने यह प्रस्ताव प्रधानमंत्री मोदी के सामने रखा था, उनके अंदर हिम्मत थी इसलिए उन्होंने इसे मंजूरी दी।“ वीके सारस्‍वत ने आगे कहा, “ये हमारे देश के लिए और देश के वैज्ञानिकों के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है।” इस बयान से स्पष्ट है कि किस तरह से यूपीए सरकार अपनी मनमानी करती थी और अपने फैसले थोपती थी। उस समय के प्रधानमंत्री के अंदर न ही वो मजबूत आत्मविश्वास था जिससे वो इस परीक्षण को मंजूरी दे सकें।

 

वास्तव में अपने कहे के मुताबिक पीएम मोदी रक्षा क्षेत्र में जरुरी तकनीक को मंजूरी दे रहे हैं लेकिन कांग्रेस अपनी नाकामी को छुपाने के लिए इस तरह के दावें कर रही है।रणनीतिक विशेषज्ञ हर्ष वासानी की मानें तो ‘मिशन शक्ति’ भारत के लिए उतना ही सामरिक महत्व है जितना कि वर्ष 1998 में किया गया परमाणु परीक्षण का था।

बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने बुधवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में बताया कि, “भारत ने तीन मिनट में अंतरिक्ष में लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) में सैटेलाइट को मार गिराया। यह उपलब्धि हासिल करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है।” हालांकि, मोदी के इस संबोधन के बाद विपक्षी दलों ने इस मामले पर राजनीति करनी शुरु कर दी। 

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