बसपा पर दबाव बनाने का कांग्रेस का पैंतरा पड़ा उल्टा, अब उसके गढ़ में ही लगेगी सेंध

प्रियंका गांधी बसपा

PC: Oneindia

चुनावों का ऐलान होने के बाद से देश भर की राजनीति में उठापठक का दौर जारी है। देश के सबसे बड़े राज्य की राजनीति भी इससे अछूती नहीं है। कल कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और पूर्वी यूपी कांग्रेस की प्रभारी प्रियंका वाड्रा ने भी एक बड़ा राजनीतिक दांव चलते हुए भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद  से अस्पताल में जाकर मुलाकात की। उन्होंने चंद्रशेखर आजाद से लगभग 5 मिनट की बातचीत के दौरान अपना समर्थन जाहिर किया, और प्रधानमंत्री मोदी की तथाकथित तानाशाही का मुकाबला करने की बात कही। चंद्रशेखर आजाद रावण भीम आर्मी के अध्यक्ष होने के नाते बहुजन समाज में एक जाने माने चेहरे हैं, ऐसे में प्रियंका वाड्रा की उनसे इस मुलाक़ात के कई मायने निकाले जा रहें हैं।

दरअसल, इससे पहले ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने यह साफ किया था कि उत्तर प्रदेश समेत देश के किसी भी राज्य में वो कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेगी। मायावती ने कहा था “मैं ये साफ कर दूं कि बहुजन समाज पार्टी कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं करेगी, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ हमारा गठबंधन आपसी सम्मान तथा ईमानदारी के बलबूते पर हुआ है और हम भाजपा को हराने के लिए सक्षम हैं।“ अब इसके तुरंत बाद प्रियंका वाड्रा का बहुजन समाज के ही एक बड़े नेता से मुलाकात करना इस बात को बयां करता है कि कांग्रेस बसपा पर दबाव बनाना चाहती है।

यह बात तो सबको पता है कि बहुजन समाज पार्टी का बड़ा वोट बैंक दलित एवं मुस्लिम समुदाय से आता है। चंद्रशेखर का उभार मायावती के सियासी जमीन को कमजोर कर सकता है। अब प्रियंका वाड्रा ने चंद्रशेखर आजाद  से अपनी मुलाकात के बाद यह साफ करने की कोशिश की है कि यदि अखिलेश-मायावती अपने गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं करतें हैं तो उसे अपने बड़े वोटबैंक से हाथ धोना पड़ सकता है। प्रियंका गांधी की चंद्रशेखर से मुलाकात मायावती को रास नहीं आई और उन्होंने तुरंत अखिलेश यादव से मुलाकात की। ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी का यह दांव उसपर उल्टा पड़ने वाला है क्योंकि बहुजन समाज पार्टी ने इसका जवाब बड़े ही आक्रामक तरीके से दिया है।

कांग्रेस के इस राजनीतिक दांव को दबाव मानने की बजाय मायावती ने अखिलेश के साथ अपनी मुलाकात में कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाली अमेठी और रायबरेली की सीट पर भी अपने उम्मीदवार खड़ा करने की वकालत की है। आपको बता दें कि सपा-बसपा ने गठबंधन करने के बाद कांग्रेस के लिए छोड़ दिया था। गठबंधन में जगह न मिलने से कांग्रेस ने भी उत्तर प्रदेश में अब तक कुल 27 उम्मीदवारों का एलान कर दिया । 11 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करने के बाद कांग्रेस ने 16 उम्मीदवारों की दूसरी सूची को भी कल जारी कर दिया। यही नहीं अब चंद्रशेखर से प्रियंका गांधी वाड्रा की मुलाकत के बाद बसपा सुप्रीमों मायावती ने कांग्रेस को तीखी प्रतिक्रिया देते हुए अमेठी और रायबरेली में भी गठबंधन के उम्मीदवार उतारने की बात कही है। इसके लिए मायावती ने फैसला लेने के लिए अखिलेश को दो दिन का ऑल्टीमेटम भी दे दिया है। सूत्रों के मुताबिक, बसपा सुप्रीमो मायावती के प्रस्ताव से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव सहमत नहीं हैं।  इसके लिए उन्होंने अखिलेश को खरी-खरी सुना दी।

बता दें कि समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन ने कांग्रेस को 10 सीटों का ऑफर दिया था लेकिन कांग्रेस 20 सीटों की मांग कर रही थी। जब बात नहीं बनी तो कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। अखिलेश यादव में प्रदेश में छोड़े गये दो सीटों के जरिये ये बताने का भरपूर प्रयास किया कि कांग्रेस भी सपा-बसपा के साथ है जबकि बसपा सुप्रीमों कांग्रेस को किसी भी कीमत पर गठबंधन में नहीं चाहती हैं। जाहिर है कि मायावती के ऐसे कड़े रुख के बाद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ना स्वाभाविक है। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में गठबंधन में शामिल होने के लिए ऐसे हथकंडे अपना रही है लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती की तरफ से उसने ऐसी कठोर प्रतिक्रिया आने की कोई उम्मीद नहीं की होगी। ऐसे में आगामी लोकसभा के इस त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा की जीत होनी तय है. हालांकि, चुनाव परिणाम इसपर आखिरी मुहर लगाने का काम करेगा।

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