वे तीन कारण जिनकी वजह से इमरान खान विंग कमांडर अभिनंदन को वापस सौंपने के लिए मजबूर हुआ

इमरान खान पाकिस्तान

PC : Hindustan

इमरान खान ने मोदी को डिप्लोमसी में चारो खाने चित्त कर दिया, जितना बड़ा क्रिकेटर उतने ही बड़े दिल वाला आदमी। इमरान ने पहल कर दी है अब भारत को भी उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए। शुक्रिया इमरान खान, सलाम इमरान खान। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ ऐसा कह रहे हैं भारत के कुछ छद्मधर्मनिरपेक्ष पत्रकार और राजनेता। बरखा दत्त, राणा अय्यूब, विक्रम चंद्र, शोभा डे, नवजोत सिंह सिद्धू, राजदीप सरदेसाई और सागरिका घोष जैसे कुछ नाम है एक बहुत ही बड़ी लिस्ट से जो अचानक से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को शांतिदूत के रूप में बढ़ा चढ़ा के दिखा रहे हैं, बता रहे हैं।

जो इमरान भारत के खिलाफ जहर उगल के पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बन बैठा, जो इमरान गेंद को लंच टाइम में रगड़ रगड़ के उससे रिवर्स स्विंग कराता था और वो इमरान जो भारत के खिलाफ क्रिकेट मैच को जिहाद की तरह लेता था, अचानक से उसका दिल इतना बड़ा कैसे हो गया? क्या इमरान का ह्रदय परिवर्तन हो गया है? क्या इमरान खान सच में शान्तिदूत है? इसका जवाब थोड़ा सा पेचीदा है।

सबसे पहली बात तो ये कि पकिस्तान में प्रधानमंत्री की वही औक़ात होती है जो चाय की दुकान में चाय देने वाले छोटू की होती है। दुनिया को ये ज़रूर लग सकता है कि चाय बनाना, बेचना, परोसना सब छोटू के हाथ में है लेकिन असलियत में छोटू का काम बस कटिंग देना और उठा के वापस रखना है।

पाकिस्तान का प्रधानमंत्री, पाकिस्तान की सेना के हाथ की कठपुतली होता है। यानी कि जो लोग ये कह रहे हैं कि इमरान ने सेना को बाईपास करके अमन का पैग़ाम भेजा है वो निरे मूर्ख हैं।

हालांकि, जिनेवा युद्द बंदी एक्ट के तहत पाकिस्तान को विंग कमांडर अभिनन्दन को वैसे भी देर सवेर छोड़ना ही पड़ता लेकिन 48 घंटों के भीतर-भीतर अभिनन्दन की रिहाई के पीछे मुख्यतः तीन कारण थे।

पहला और सबसे प्रमुख कारण था, पूरे विश्व का दबाव। जहाँ अमेरिका खुल कर भारत के सपोर्ट में आया, वहीं फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, यूके, इजराइल, और जापान ने भी भारत का ही साथ दिया। पाकिस्तान के सबसे हितैषी संगठन आर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन ने भी भारत की विदेश मंत्री को गेस्ट ऑफ़ हॉनर बना के पाकिस्तान के मुँह पे झन्नाटेदार झापड़ दिया है। पाकिस्तान का वैश्विक बहिष्कार तय था। गधे बेच के देश चला रहे प्रधान मंत्री इमरान खान को पता है कि ये वक़्त फैंटम बनने का नहीं है और यह जानकर उन लोगो के मुँह पर भी ताले लग जाने चाहिए जो आँखे सिकोड़ के, मुँह फाड़ के जोर जोर से चिल्लाते हैं की भाई मोदी जी आखिर इतनी विदेश यात्रा काहे करते हैं?

दूसरा कारण है भारत का आक्रामक रवैया। भारत की मोदी सरकार ने ये साफ़ कर दिया था कि वो पाकिस्तान को अभिनन्दन को एक लेवरेज की तरह इस्तेमाल नहीं करने देगी। यानी कि बातचीत की सूरत में अभिनन्दन कोई मुद्दा नहीं हो सकते थे जिन्हे लेकर पाकिस्तान भारत पर कोई दबाव बना सके। अब ज़रा सोचिये कि भारत का एक फाइटर पायलट पाकिस्तान के कब्ज़े में था, लेकिन मोदीजी ने तीनो सेनाओं के अध्यक्षों को फ्री हैंड दे दिया था। इसका मतलब साफ़ था कि भारत आर पार की लड़ाई के मूड में है।

तीसरा कारण है पकिस्तान में गृहयुद्ध और तख्ता पलट रोकना, ये आखिरी वाला आपको शायद एक कांस्पीरेसी थ्योरी जैसा लग सकता है लेकिन आप इसे ध्यान से समझने की कोशिश करें। अभिनन्दन एपिसोड में दो ही चीज़ें हो सकती थी, या तो पाकिस्तान स्वयं अभिनन्दन को लौटाए या फिर भारत पाकिस्तान से अभिनन्दन को छीन ले। भारत के आक्रामक रवैये को देखते हुए दुसरे की पॉसिबिलिटी ज़्यादा ही लग रही थी। हार के लौटाने पर या किसी पाकिस्तानी सैनिक के एक्सचेंज में लौटाने पर पाकिस्तान की भयंकर किरकिरी होती। याद रखिये जनरल जिया उल हक़ के बाद से पाकिस्तान में आर्मी के लिए सिर्फ रेस्पेक्ट नहीं बल्कि उनके लिए एक प्रकार का उन्माद है, यानी पाकिस्तान के लिए पाकिस्तानी सेना के सैनिक सिर्फ सैनिक नहीं बल्कि रूहानी सैनिक हैं। जिनका हारना, मरना यहाँ तक की घायल होना भी मुश्किल है। भारत के हाथों पिटने से पहले ही गरीब और खोखला पकिस्तान गृह युद्ध की कगार पर जा सकता था और युद्ध में हार के बाद पाकिस्तान में तख्ता पलट का एक पुराना इतिहास रहा है।

यानी इमरान ने एक भारतीय पायलट वापस लौटा कर बस अपनी कुर्सी बचाई है। जिन्हें इमरान खान अमन व शांति का दूत लग रहा है वो एक बार उनके पुराने वीडियोज़ देख ले बस। इमरान खान को अगर goodwill gesture का इतना ही शौक़ है तो वह भारत को मसूद अज़हर और हाफिज मुहम्मद सईद को सौंपे। साथ ही लश्कर और जैश के ठिकानों को ध्वस्त करे। आतंकियों की फंडिंग बंद करे। जिस दिन इमरान खान ऐसा करेंगे, उस दिन भारत उनके शान्ति प्रस्ताव पर ज़रूर ध्यान देगा।

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