जब चंद्रबाबू ने प्रशांत किशोर को कहा ‘बिहारी डकैत’ तो ऐसा मिला जवाब कि उनके होश उड़ गए

चंद्रबाबू पीके बिहारी डकैत

PC : jagran

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू तथा चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर के बीच राजनीतिक जंग देखने को मिली है। दरअसल नायडू ने ओंगोल में अपने भाषण के दौरान तेलंगाना के मुख्यमंत्री ‘के चंद्रशेखर राव’ पर हमला बोलने के साथ-साथ प्रशांत किशोर पर भी निशाना साधा है। उन्होंने प्रशांत किशोर को एक ऐसे शब्द से संबोधित किया कि आंध्र प्रदेश से लेकर बिहार तक की राजनीति में आग लग गई। उन्होंने प्रशांत किशोर को बिहारी डकैत कह डाला। उन्होंने कहा ”चंद्रशेखर राव आपराधिक राजनीति कर रहें हैं। वे कांग्रेस और टीडीपी के एमएलए तोड़ रहें हैं।” उन्होंने इसके बाद प्रशांत किशोर पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि बिहारी डकैत प्रशांत किशोर ने आंध्र प्रदेश में कईं लाख वोटरों का नाम कटवाकर एक साइबर क्राइम किया है।

बिहार के लाल प्रशांत किशोर इसके बाद कहां चुप रहने वाले थे। प्रशांत किशोर ने भी नायडू को करारा जवाब दिया। पीके से पंगा लेना नायडू का भारी पड़ गया। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा ”एक तयशुदा हार सबसे अनुभवी राजनेता को भी विचिलत कर सकती है। इसीलिए मैं उनके निराधार बयानों से हैरान नहीं हूँ। श्रीमान जी आप बिहार के प्रति आपके पूर्वाग्रह और द्वेष को दिखाने वाली अपनी अपमानजनक भाषा का प्रयोग करने की बजाए इस बात पर ध्यान दें कि लोग आपको दोबारा वोट क्यों नहीं देंगे?”

आपको बता दें कि प्रशांत किशोर और आंध्र प्रदेश के बीच कोई सीधा राजनीतिक जुड़ाव तो नहीं है, लेकिन उनकी चुनावी प्रचार के लिए सेवा देने वाली कम्पनी आईपैक आजकल राज्य में वाईएसआर कांग्रेस के लिए काम कर रही है जिसके बाद उन्होंने प्रशांत किशोर पर भी निशाना साधने का काम किया।

प्रशांत किशोर देश के सबसे बड़े राजनीतिक रणनीतिकार रह चुके हैं। प्रशांत किशोर का नाम सुर्खियों में पहली बार 2014 में आया था, जब उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनाव प्रचार की रणनीति बनाई और मोदी लहर को आगे बड़ाने का काम किया था। उसी साल देश में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला और एनडीए की सरकार बनी। लेकिन इसके बाद वे भाजपा से अलग हो गए और साल 2015 में वे जेडीयू के लिए सियासी रणनीति बनाने में जुट गये। इसका असर भी जल्द ही दिखा और बीजेपी से छिटकने वाले प्रशांत किशोर बिहार में महागठबंधन के साथ हो लिए। यहाँ उन्होंने राजद-जेडीयू-कांग्रेस के महागठबंधन के लिए न केवल चुनावी बिसात बिछाई, बल्कि उसे जीता भी।

जब 2014 में नरेंद्र मोदी की जीत सुनिश्चित करने के बाद प्रशांत किशोर बिहार के सीएम नीतीश कुमार के संपर्क में आए तो उनके मुरीद हो गए। राजनीतिक गलियारों में पीके के नाम से चर्चित प्रशांत किशोर नीतीश के विकासवादी एजेंडा और गुड गवर्नेंस की नीति से खासे प्रभावित थे। इसलिए 2015 में लालू से हाथ मिलाने के बावजूद प्रशांत किशोर ने नीतीश की शख्सियत को धुरी बनाते हुए चुनावी रणनीति बनाई, जिसमें उनको खासी सफलता भी मिली।

2015 के विधानसभा चुनाव के बाद ऐसी खबरें भी आईं थीं कि नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर के बीच कुछ मतभेद चल रहा है।  इसके बाद प्रशांत किशोर काफी दिनों तक लाइमलाइट से दूर रहे लेकिन उनके जेडीयू में शामिल होने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि नीतीश कुमार के साथ उनके पुराने मतभेद अब खत्म हो गए हैं। प्रशांत किशोर की पहचान कुशल रणनीतिकार के तौर पर होती है और ऐसे में किशोर के जेडीयू में शामिल होने से नीतीश कुमार बड़े फायदे की उम्मीद लगाए बैठे हैं। इन्हीं प्रशांत किशोर से अब चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता चिढ़े बैठे हैं लेकिन इस बार पीके से पंगा लेना उन्हें भारी पड़ गया

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