BJP की सीटों और मतदाता उपस्थिति के बीच दिलचस्प संबंध और आपको क्यों डरना चाहिए

वोटर टर्न आउट मिडिल क्लास बीजेपी

PC: Indiatoday

समय के साथ भारत के वोटर्स और वोटर टर्न आउट बढ़ा है। जब 1951 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ था उस चुनाव में कुल 17.3 करोड़ मतदाता पंजीकृत हुए थे, जिनमें से 44.87 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले थे। ये संख्या साल 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब पांच गुना बढ़कर 83.4 करोड़ पहुंच गयी तब कुल वोटर टर्न आउट 66 फीसदी था जो पहले की तुलना में 20 फीसदी अधिक था। समय के साथ भारत की राजनीति में राजनीतिक पार्टियां और प्रति निर्वाचन क्षेत्र के दावेदारों की संख्या भी तेजी से बढ़ती गयी। आज हमारा समाज और अधिक लोकतांत्रिक है और दलगत राजनीति के क्षेत्र में अब प्रतिस्पर्धा पहले से ज्यादा है और जनता भी अपने अधिकारों को लेकर ज्यादा जागरूक है।  

वोटर टर्न आउट के डाटा का विश्लेषण करने पर एक महत्पूर्ण चीज सामने आती है जो किसी भी पार्टी की सफलता के महत्वपूर्ण है। दरअसल, ज्यादा वोटर टर्न आउट का मतलब है कि मतदाता मौजूदा सरकार के कार्यों से खुश नहीं है और वो अपने मत से सरकार बदलना चाहते हैं। लगातार बढ़ता वोटर टर्नआउट संकेत है कि मतदान के प्रति देश की जनता जागरूक है और व्वो अपने मनपसंद सरकार चुनते हैं। हालांकि, बीजेपी के लिए ये अलग तरह से नजर आता है। कम वोटर टर्न आउट बीजेपी के दशकों से नुकसानदेह साबित हुआ है।इसके पीछे का कारण हो मिडिल क्लास का वोटर टर्न आउट लोअर क्लास और बैकवर्ड क्लास की तुलना में बेहद कम रहा है।

दरअसल, मिडिल क्लास बीजेपी का पारंपरिक वोटबैंक रहा है और यदि ये क्लास पोलिंग बूथ पर वोट देने के लिए नहीं जाता है तो बीजेपी के जीतने की संभावना कम हो जाती है। जैसा कि ऊपर दिए डाटा में दिया गया है, अपर और मिडिल क्लास का वोटर टर्न आउट साल 2014 में बढ़ा था और भारतीय जनता पार्टी को तब भारी जीत भी मिली थी। वहीं कांग्रेस को सिर्फ मिडिल क्लास का 20 प्रतिशत मिला था जबकि बीजेपी को 32 प्रतिशत मिला था। इस 12 प्रतिशत के अंतर ने बीजेपी की जेते में अहम भूमिका निभाई थी और इस पार्टी को बहुमत मिली थी जबकि कांग्रेस का ये प्रतिशत दो गुना घट गया था। ऐसे में ये कह सकते हैं कि “साल 2014 में क्लास के हिसाब से बीजेपी के पक्ष में नतीजे थे जिसने बीजेपी को चुनाव में न सिर्फ बढ़त दिलाई थी बल्कि पार्टी ने एक इतिहास रच दिया था।

बीजेपी को मुख्य रूप से शहरी पार्टी माना जाता है। शहरी निर्वाचन क्षेत्र में वोटर टर्नआउट ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कम होता है। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में जब भी वोटर टर्न आउट शहरों में बढ़ता है तब तब भाजपा के जीत की संभावना और अधिक बढ़ जाती है। ऐसे में अगर शहरी निर्वाचन क्षेत्र में वोटर टर्न आउट कम होगा तो बीजेपी को अपने निर्वाचन क्षेत्र में हार का मुंह देखना पड़ता।  

2004 में अटल बिहारी वाजपयी जी के सरकार के कार्यकाल को काफी ज्यादा रेटिंग दी गयी थी। इसके पीछे की वजह  ये थी कि उन्होंने अपने कार्यकाल में अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचे और राष्ट्रीय सुरक्षा की बेहतरी के लिए अच्छा काम किया था। अर्बन मिडिल क्लास ये जानता था कि बीजेपी इस चुनाव में जरुर जीतेगी चाहे वो वोट करने जाये या न जायें। मीडिया हो या राजनीतिक विशेषज्ञ या चुनाव विश्लेषक और यहां तक कि विपक्षी पार्टियां तक यही उम्मीद कर रही थीं कि बीजेपी जीतेगी। उम्मीदों के विपरीत बीजेपी को 2004 के चुनाव में बड़ा झटका लगा था। हालांकि, पीएम मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने साल 2014 के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया।

दरअसल, यहां सवाल जागरूकता से ज्यादा मिडिल क्लास के मतदाताओं के ‘आलस्य’ का है जिस वजह से वो अपने मत के अधिकारों का इस्तेमाल नहीं करते। ये तबका ड्राइंगरूम डिस्कशन में स्वच्छ राजनीति पर बहस तो करता है, लेकिन पोलिंग बूथ पर लाइन में खड़ा होने की बजाए अपने घर बैठा रहता है या अपनी छुट्टी एन्जॉय करने में ज्यादा रुचि रखता है। यही वजह थी कि यूपीए सरकार को मौका मिला देश को लूटने और कई भ्रष्टाचार को अंजाम देने का। ये सरकार साल 2009 में एक बार फिर से जीती और अंततः भारत की अर्थव्यवस्था और ज्यादा कमजोर हो गयी। साल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ही स्थिति में सुधार हुआ। यूपीए सरकार में महंगाई इतनी बढ़ गयी कि मिडिल क्लास की स्थिति और बदतर हो गयी थी। अब जब भारत की अर्थव्यवस्था के साथ साथ देश में कई बड़े बदलाव हुए हैं तो ऐसे में मिडिल क्लास को अपने हित की रक्षा के लिए अपने ‘आलस्य’ से बाहर आकर अपने मत अधिकार का इस्तेमाल करने की आवश्यकता है। अगर यही मिडिल क्लास के लोग जोशोखरोश के साथ बूथ तक पहुंचते हैं तो वो अपने लिए एक सही सरकार का चुनाव करने में भी सफल होंगे।

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