कश्मीर के लिए अलग पीएम की मांग करने वाले उमर अब्दुल्ला को पीएम मोदी का करारा जवाब

उमर अब्दुल्ला मोदी कश्मीर

PC: Zee News

जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टी नेशनल कांफ्रेंस का देश विरोधी चेहरा एक बार फिर सामने आया है। नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने अपनी एक चुनावी सभा में यह कहा कि अगर यूपीए की सरकार दोबारा सत्ता में आती है तो जम्मू-कश्मीर का अलग प्रधानमंत्री बना दिया जाएगा। साथ ही उमर अब्दुल्ला ने देश के अन्य राज्यों का अपमान करते हुए कहा कि कश्मीर की तुलना यूपी, बिहार जैसे राज्यों से नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि कश्मीर ने भारत में शामिल होने के वक्त कुछ शर्तें रखी थीं, और भारत को उन्हें पूरा करना ही होगा। उमर अब्दुल्ला के इस बयान के बाद देशभर के लोगों से प्रतिक्रिया आई लेकिन नेशनल कांफ्रेंस की सहयोगी कांग्रेस एवं अन्य किसी विपक्षी दल ने इसपर अब तक चुप्पी साध रखी है। वहीं देश के प्रधानमंत्री मोदी ने इसे उमर अब्दुल्ला का दुस्साहस करार दिया है और लोगों को आश्वस्त किया है कि उनके होते हुए कोई देश को बांटने की साजिश में कामयाब नहीं हो सकता।

पीएम मोदी ने कांग्रेस पर भी हमला बोला और कहा कि उनकी सहयोगी पार्टी की हिम्मत कैसे हुई…वे भारत को बांटने की सोच भी कैसे सकते हैं। अपनी जनसभा के दौरान पीएम मोदी ने कहा “ वो कहते हैं हम घड़ी की सूई को पीछे ले जायेंगे और राज्य में 1953 की स्थिति को पैदा करेंगे और, देश में दो प्रधानमंत्री होंगे, कश्मीर का प्रधानमंत्री अलग होगा। मैं जरा जानना चाहता हूं ,जवाब कांग्रेस को देना पड़ेगा, महागठबंधन के सभी पार्टनर्स को जवाब देना पड़ेगा, क्या कारण है कि उनके सहयोगी दल ऐसी बात कहने की हिम्मत कर रहा है, लेकिन कांग्रेस पार्टी इसपर चुप बैठी है।“ साथ ही पीएम मोदी ने पूछा कि क्या गठबंधन के अन्य नेता जैसे ममता बनर्जी, चन्द्रबाबू नायडू, एच डी देवगौड़ा और शरद पवार भी अपनी सहयोगी पार्टी की इस मांग को जायज ठहराते हैं?

आपको बता दें कि वित्त मंत्री ने चंद दिनों पहले अपने एक ब्लॉग के जरिये कश्मीर में लागू अनुच्छेद 35 ए को संविधान-भेद्य बताया था, यानि उनके मुताबिक संविधान में बिना किसी छेड़छाड़ के मात्र एक राष्ट्रपति की अधिसूचना के बाद इस अनुच्छेद की संवैधानिक मान्यता रद्द की जा सकती है। इसके बाद कश्मीर की तमाम राजनीतिक पार्टियों में इसको लेकर उनकी बौखलाहट सामने आ चुकी है। महबूबा मुफ़्ती ने बीते रविवार को धमकी दी थी कि अगर अनुच्छेद 35 ए को हटाने की बात की गई तो भारत और कश्मीर का रिश्ता खत्म हो जायेगा और कश्मीर के मुसलमान शायद भारत को अपना देश मानने से भी इंकार कर दें। इसके अलावा नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला भी जेटली की इस बात पर अपनी आपत्ति जता चुके हैं।

यहां आपको यह भी बता दें कि अनुच्छेद 35ए की समस्या देश में कांग्रेस राज के दौरान ही वजूद में आई थी, जिसका नतीजा यह हुआ कि कश्मीर में अलगाव की स्थिति पैदा होती गई और भारत के अन्य राज्यों अथवा कश्मीर के लोगों के बीच का संवाद कम होता गया। साल 1952 में दिल्ली की नेहरू सरकार और जम्मू कश्मीर के शेख अब्दुल्ला के बीच ‘दिल्ली समझौता’ हुआ था, जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। दिल्ली समझौते के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना के बाद अनुच्छेद 370 में अनुच्छेद 35 ए जोड़ा गया जिसमें जम्मू कश्मीर की राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया कि वे अपने नागरिकों को दोहरी नागरिकता दे सकते हैं, यानि एक नागरिकता जम्मू एवं कश्मीर की, और एक नागरिकता भारत की। इसी के साथ राज्य सरकार को सरकारी नौकरियों एवं सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में राज्य के नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार दिया गया। अनुच्छेद 35ए की वजह से ही भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में कोई जमीन नहीं खरीद सकते। लेकिन मौजूदा मोदी सरकार ने इस स्थिति को बदलने का काम किया है। एक तरफ राज्य में जमकर विकास कार्य करने का काम किया है तो वहीं राज्य में अलगाववाद को बढ़ावा देने का काम कर रहे संगठनों को काबू करने का काम किया गया। अपने बयानों एवं कार्यों से वे कश्मीर के लोगों को मुख्यधारा में शामिल होने की अपनी मंशा भी जगजाहिर कर चुके हैं।

दरअसल, जम्मू-कश्मीर के राजनेता विवादित अनुच्छेद 35 ए की आड़ में अपनी राजनीति की दुकान चलाते आये हैं और जैसे ही कोई सरकार का मंत्री इसपर अपनी राय रखने का काम करता है, तो इनकी सांसे फूल जाती है। यहां सवाल कांग्रेस से भी पूछा जाना चाहिए कि बात-बात पर भाजपा पर देश को बांटने एवं तोड़ने का आरोप लगाने वाले कांग्रेस के नेता आखिर उनकी सहयोगी पार्टी के इस देशविरोधी बयान पर चुप क्यों बैठे हैं? कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तो छोटे-छोटे मुद्दों को लेकर ट्वीट करते रहे हैं, लेकिन वे भी इसको लेकर अब तक अपनी कोई राय नहीं रख पाए हैं। उनका चुप रहना उमर अब्दुल्ला के उनके इस बयान पर उनकी स्वीकार्यता को दर्शाता है, और ऐसा करके वे वोटर्स के बीच अपनी पहले से कमज़ोर छवि को धूमिल करने का काम कर रहे हैं।

Exit mobile version