गोरखपुर में BJP को हराने वाले प्रवीण निषाद बीजेपी में शामिल, निषाद पार्टी का विलय

प्रवीण निषाद बीजेपी

निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद द्वारा सपा-बसपा के गठबंधन से बाहर निकलने के बाद अब उनके बेटे प्रवीण निषाद ने इस गठबंधन को एक और बड़ा झटका दे दिया है। लोकसभा उप चुनाव में सीएम योगी आदित्यनाथ के गढ़ से चुनाव जीतने वाले समाजवादी पार्टी के प्रवीण निषाद अब बीजेपी में शामिल हो गये हैं। यही नहीं अब निषाद पार्टी का भी भाजपा में विलय हो गया है।

इन दोनों खबरों ने उत्तर प्रदेश में महागठबंधन को लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा झटका दिया है जो यूपी में बीजेपी को हराने के सपने संजो रहे हैं। ये वहीं प्रवीण निषाद हैं जिनके बल पर गोरखपुर में सपा-बसपा गठबंधन में जीत का जश्न मनाया जा रहा था जिसे अब लोकसभा चुनाव से पहले ग्रहण लग चुका है।

खबरों की मानें तो भारतीय जनता पार्टी प्रवीण निषाद को गोरखपुर सीट से लोकसभा चुनाव में उतारने पर विचार कर रही है इसके संकेत बीजेपी नेता जेपी नड्डा ने भी दे दिए हैं। बता दें कि यूपी की हॉट सीट बन चुकी गोरखपुर के सांसद प्रवीण निषाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई वर्षों से सक्रीय हैं और वो निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद के बेटे हैं। ये वहीं संजय निषाद हैं जिन्होंने अभी कुछ दिनों पहले ही बसपा-सपा के गठबंधन से अलग होने के अपने फैसले पर कहा था,‘हम गठबंधन के साथ नहीं है और हमारी पार्टी स्वतंत्र रूप से लोकसभा चुनाव लड़ेगी।’ इस ऐलान के पीछे का कारण उन्होंने अखिलेश यादव के रुख से पार्टी कार्यकर्ता और कोर कमेटी नाराजगी बताया था। इसके बाद वो यूपी के सीएम योगी अदित्नाथ से भी मिले थे तभी से राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा तेज थी कि वो एनडीए में शामिल होंगे और हुआ भी ऐसा ही। 

बता दें कि निषाद पार्टी के अलग होने से सपा-बसपा गठबंधन का जो जातिय समीकरण बना था वो भी बिगड़ गया है। सपा+बसपा+निषाद पार्टी का यादव+दलित+गैरयादव का जो समीकरण बना था वो अब बिगड़ चुका है। दरअसल, उत्तर प्रदेश में निषाद वोट जीत की गुणा गणित में अहम भूमिका निभाते हैं। निषाद में मल्ल, केवट, मल्लाह, दुसाध, बिंद, राजभर समेत 15-16 उपजातियांशामिल हैं। उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति में आने वाले निषाद समुदाय की कुल आबादी 10.25 प्रतिशत है। वहीं सबसे ज्यादा निषाद मतदाता गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में है। इस जिले के 19.5 लाख वोटरों में से 3.5 लाख वोटर निषाद समुदाय के हैं। वहीं, देवरिया में 1-1.5 लाख, बांसगांव में 1.5-2 लाख, महराजगंज में सवा 2-2.5 लाख और पडरौना में भी 2.5-3 लाख है। इसी संख्या के बल पर साल 2016 में निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल’ (निषाद) पार्टी की स्थापना संजय निषाद ने की थी। साल 2018 में हुए उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में जब सपा के टिकट पर राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद ने जीत दर्ज की जिसके बाद ये पार्टी खूब चर्चा में रही थी। इसी के बल पर सपा-बसपा ने बीजेपी को गोरखपुर के उपचुनाव में हराया था जो योगी आदित्यनाथ का गढ़ माना जाता है।

वहीं साल 2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस समय समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों ने निषाद उम्मीदवारों को टिकट दिया था। इस वजह से वोट बंटे और इसका फायदा सीधे बीजेपी को हुआ था। अब एक तरफ जहां निषाद पार्टी खुद एनडीए में शामिल हो चुकी है। तो दूसरी तरफ निषाद पार्टी के सपा-बसपा गठबंधन से अलग होने से निषाद जाति से जुड़ा समीकरण बिगड़ चुका है। ऐसे में निश्चित ही इससे भारतीय जनता पार्टी को फायदा आगामी लोकसभा चुनाव में फायदा होने वाला है। स्पष्ट रूप से बीजेपी की कुछ सीटें अब कहीं नहीं जाने वाली हैं। वहीं अखिलेश यादव जो बड़े-बड़े दावें कर रहे थे उनके दावों की हवा जरुर निकल गयी है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी को हराने के ख्याली पुलाव पका रहीं विपक्षी पार्टियों के लिए ये एक बड़ा झटका है।

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