लखनऊ से पूनम सिन्हा को राजनाथ सिंह के खिलाफ खड़ा करने के क्या मायने हैं?

राजनाथ सिंह सपा

(PC: The New Indian Express)

लोकसभा चुनाव 2019 का बिगुल बज चुका है। सारी पार्टियां अपने अपने नेताओं के साथ चुनावी रण  जीतने को मैदान में कूद पड़ी हैं। इसी के साथ नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया भी ज़ोरों-शोरों से चल रही है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी अपनी लोकसभा सीट लखनऊ से नामांकन पत्र भर दिया है। लखनऊ सीट पर लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में यानी 6 मई को वोट डाले जाएंगे। लखनऊ सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती है। इस सीट पर 1991 से लगातार बीजेपी का कब्जा है। लखनऊ लोकसभा सीट बीजेपी के कद्दावर नेता दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी की परंपरागत सीट रही है। 90 के दशक में लखनऊ लोकसभा सीट से अटल बिहारी वाजपेयी के दौर से बीजेपी की जीत का सिलसिसा शुरू हुआ और अभी तक जारी है।

वहीं दूसरी और सपा ने अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को लखनऊ से टिकट दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो लखनऊ में कायस्थ मतदाताओं की संख्या तीन से साढ़े तीन लाख के आसपास है। इसके अलावा सवा लाख के करीब सिंधी वोटर हैं। इसी वजह से एसपी के कुछ नेताओं ने पूनम सिन्हा को लखनऊ से लड़ाने का सुझाव दिया था। आपको बता दें की पूनम सिन्हा भी सिंधी हैं। हालांकि, पूनम सिन्हा कुछ हद तक वोट बैंक में सेंधमारी ज़रूर कर सकती हैं लेकिन फिर भी राजनाथ के बड़े कद के सामने पूनम सिन्हा कहीं नज़र नहीं आतीं।

लखनऊ सीट से कांग्रेस ने आचार्य प्रमोद कृष्णम को उतारा है इसका मतलब है कि लखनऊ सीट का मुक़ाबला त्रिकोणीय हो गया है। कांग्रेस के अनुसार आचार्य उत्तर प्रदेश (उ.प्र.) में कांग्रेस की दूरगामी राजनीति का चेहरा हैं। कांग्रेसी पंडित उनकी तुलना उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कर रहें हैं। इस तरह से कांग्रेस पार्टी का इरादा भविष्य में योगी आदित्यनाथ के भगवा चेहरे से श्वेत धारी आचार्य प्रमोद कृष्णम का मुकाबला कराने की तौयारी में है।   

आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव 2014 में राजनाथ सिंह को लखनऊ सीट से पांच लाख 61 हजार से अधिक वोट मिले थे। उस समय उनके सामने कांग्रेस ने रीता बहुगुणा जोशी को उतारा था। वहीं बसपा ने निखिल दुबे और सपा ने अभिषेक मिस्र को राजनाथ के खिलाफ खड़ा किया था लेकिन ये सब मिलकर भी राजनाथ का सामना नहीं कर सके थे। वहीं रीता बहुगुणा जोशी राजनाथ के खिलाफ दूसरे नंबर पर रहकर केवल 2 लाख 88 हजार 357 वोट ही पा सकी थीं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि 2014 की जीत राजनाथ सिंह दोहरा सकते हैं।  

2014 की तरह ही 2019 में भी राजनाथ सिंह के आगे किसी पार्टी का कोई भी नेता टिकता हुआ नहीं दिख रहा। ऊपर से कांग्रेस और सपा ने जो उम्मीदवार खड़े किये हैं वो काफी कमजोर है जिसे जिन्हें देखकर ऐसा लगता है कि विपक्षी पार्टियों को ये आभास अच्छे से हो गया है कि लखनऊ उनकी पहुंच से बाहर है। लेकिन ये तो आने वाला चुनावी परिणाम ही तय करेगा कि लखनऊ की पुरानी परंपरा बदलती है या कायम रहती है।

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