जब भी “इनके” खिलाफ कोई फैसला जाता है, न्यायपालिका के खिलाफ सक्रिय हो जाती हैं ये शक्तियां

दीपक मिश्रा रणजं गोगोई

देश में मोदी सरकार आने के बाद से देश के न्याय तंत्र पर हमला करने की कई कोशिशें हो चुकी हैं। इसके संबंध में वर्ष 2014 में भारत के सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने कहा था कि विपक्ष भारत सरकार को अस्थिर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का सहारा ले सकता है। हालांकि पिछले कुछ सालों में समीकरण कुछ ऐसे बने कि खुद देश के सर्वोच्च न्यायालय को अस्थिर करने की कोशिश की जाने लगी। पहले पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ निराधार महाभियोग लाया गया और अब मौजूदा चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए जा रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम के बाद अब यहां सवाल उठना लाज़मी है कि क्या देश की न्यायपालिका के खिलाफ कोई बड़ी साजिश रची जा रही है? और यदि हां, तो इसके पीछे कौन सी ताक़तें सक्रिय हो सकती हैं? इसे समझने के लिए अब इन दोनों ही मामलों की गहराई में जाना पड़ेगा।

देश की अदालतों के पास लोकतंत्र की सुरक्षा की एक गंभीर ज़िम्मेदारी होती है। हालांकि जब देश के सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस पर ही निराधार आरोप लगने शुरू हो जायें, तो यह बात तर्कसंगत है कि ऐसा कोई तो है जो सुप्रीम कोर्ट की कार्यशैली से खुश नहीं है। इसकी शुरुआत तब होती है जब पिछले वर्ष पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस समेत 7 विपक्षी पार्टीयां महाभियोग प्रस्ताव लेकर आई थीं। दिलचस्प बात यह थी कि जब यह महाभियोग लाया गया था, उसके कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कुछ ऐसे फैसले सुनाये थे, जो पूरे विपक्ष रास नहीं आया था। उदाहरण के तौर पर, इस महाभियोग के लाए जाने के सिर्फ एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के विशेष न्यायाधीश बीएच लोया की ‘संदिग्ध परिस्थितियों’ में हुई मौत की जांच की याचिका को खारिज कर दिया था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की उस याचिका को भी खारिज कर दिया था जिसमें उसने अयोध्या मामले की सुनवाई को वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव तक टालने की अपील की थी। हालांकि जब जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का यह प्रस्ताव राज्यसभा में लाया गया था, तो उपराष्ट्रपति ने इसको आधारहीन बताते हुए इसे रद्द कर दिया था।

अब लगता है कि एक बार फिर से इतिहास दोहराया जा रहा है लेकिन इस बार कुछ अज्ञात ताकतों की साजिश बड़ी घिनौनी नजर आ रही है। अब देश के मौजूदा चीफ जस्टिस पर अब यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए जा रहे हैं। दरअसल, कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत एक महिला कर्मचारी ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। 19 अप्रैल को उस महिला ने पिछले दिनों में उसके साथ हुए तथाकथित उत्पीड़न का ब्यौरा देते हुए एक हलफनामा सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों को भेजा था, लेकिन अब इन आरोपों की आड़ में चल रही एक बड़ी साजिश का पर्दाफाश हुआ है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील उत्सव बैंस ने अब अपने एक फेसबुक पोस्ट में यह कहा है कि उसे चीफ जस्टिस के खिलाफ यह केस बनाने के लिए रिश्वत की पेशकश हुई थी। यह बात तो स्पष्ट है कि महिला द्वारा लगाए गए आरोपों की सत्यता तो जांच के बाद ही ज्ञात हो पाएगी, लेकिन इतना जरूर है कि इस पूरे मामले में किसी बड़ी साजिश के रचे जाने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

फिर भी एक अहम सवाल खड़ा होता है कि आखिर वो कौन-सी ताक़तें हो सकती हैं जो इस तरह से देश के सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ अपना एजेंडा चला रही हैं। बता दें कि जस्टिस रंजन गोगोई ने अभी कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ चल रहे ‘न्यायालय की अवमानना’ के केस पर सुनवाई की थी और राहुल से जवाब मांगा था। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय रोहिंग्या निर्वासन के मामले में भी देश के विपक्ष को नाखुश करने का काम कर चुका है। दरअसल, भारत सरकार 7 रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार भेजना चाहती थी, जिसके खिलाफ क्रांतिकारी वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की हुई थी, लेकिन रंजन गोगोई वाली बेंच ने उनकी इस याचिका को खारिज कर दिया था। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट राफेल डील को लेकर भी कांग्रेस के झूठे प्रोपेगैंडे को सबके सामने एक्सपोज करने का काम कर चुका है। यही नहीं आने वाले दिनों में चीफ जस्टिस राजीव कुमार, कोलकाता पूर्व डीजीपी मामला, नैशनल रजिस्ट्री ऑफ सिटिजन्स (NRC) मामला जैसे कई अहम मुद्दों पर अपना फैसला सुनाने वाले हैं लेकिन उससे पहले ही उनपर ये आरोप सामने आना भी शक को और मजबूत क र रहा है।  वास्तव में ‘लोकतन्त्र पर खतरा’ बताकर दिन रात रोना रोने वाले विपक्ष को यह बिल्कुल नहीं भाता कि देश का न्याय तंत्र उनके एजेंडे का पर्दाफाश कर दे। लेकिन इसी बीच एकाएक चीफ जस्टिस पर यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप लगना अपने आप में शक पैदा करता है। हालांकि इस मामले की पूरी सच्चाई तो जांच के बाद ही सामने आ पाएगी।

हालांकि, सवाल तो ये भी उठता है कि वो अज्ञात ताकतें कौनसी हैं जिसकी उत्सव बैंस बात कर रहे हैं। आखिर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश पर इस तरह से आरोप मढ़ने के पीछे इन अज्ञात ताकतों की क्या मंशा है? सच कहूं तो ऐसा लगता है कि अपने स्वार्थ के लिए कुछ लोग देश की न्यायपालिका की जड़ों को ही खोखला कर देना चाहते हैं

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