चुनाव के नजदीक आते ही बिहार की राजनीति भी गर्माने लगी है। एक तरफ जहां कुछ सीटों पर बड़े जटिल समीकरण बन रहे हैं, तो वहीं कुछ सीटों की वजह से गठबंधन कर चुकी कांग्रेस और राजद के बीच अब दरार पड़ती नज़र आ रही है। दरअसल, बिहार की राजनीति में कभी बड़े नाम रहे, और कभी राजद प्रमुख लालू यादव के बेहद करीबी रह चुके पप्पू यादव आजकल लालू यादव परिवार द्वारा नकारे जाने के बाद बेहद लाचार हो गए हैं। पप्पू यादव और राजद अध्यक्ष लालू यादव के परिवार के बीच कलह इतनी बढ़ चुकी है कि उसकी आंच अब उनकी पत्नी रंजीता रंजन तक आन पहुंची है। सुपौल सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार रंजीता रंजन के खिलाफ अब राजद नेता तेजस्वी यादव ने मोर्चा खोल दिया है। हैरानी की बात तो यह है कि बिहार में राजद और कांग्रेस के बीच गठबंधन होने के बावजूद यह सबकुछ घटित हो रहा है।
अगर हम पप्पू यादव और उनकी पत्नी रंजीता रंजन की बात करें तो वर्ष 2014 के मुक़ाबले इन दोनों की स्थिति में बहुत बदलाव आ चुका है। बिहार में मजबूत मोदी लहर होने के बावजूद ये दोनों अपनी सीट बचाने में सफल हो पाये थे। पप्पू यादव राजद की टिकट से माधेपुरा से चुनाव जीते थे, जबकि रंजीता कांग्रेस की टिकट से सुपौल से चुनाव जीती थीं। पप्पू यादव लालू के बेहद करीबी माने जाते थे, और राजद में उनकी गिनती बड़े नेताओं में की जाती थी। इतना ही नहीं, वे अपने आप को पार्टी में लालू के बाद नंबर दो की हैसियत से भी देखते थे। लेकिन उसके बाद पप्पू यादव के साथ कुछ ऐसा हुआ जिसने उनकी राजनीतिक दिशा और दृष्टि को हमेशा के लिए बदल दिया। उनके चुनाव जीतने के मात्र एक वर्ष बाद उन्हें पार्टी द्वारा निकाल दिया गया। राजद के नेतृत्व ने उनपर पार्टी-विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया।
दरअसल, वर्ष 2015 में लालू यादव और पप्पू यादव के बीच कलह तब खुलकर सामने आई जब लालू ने अपनी पार्टी का उत्तराधिकारी अपने पुत्र को बनाने की बात कही थी। लालू ने कथित तौर पर कहा था कि पिता का उत्तराधिकारी पुत्र ही होता है। इस बात पर पप्पू यादव बहुत दुखी हुए थे, और उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा था कि लालू जी को यह समझना चाहिए कि यह राजतंत्र नहीं है, और वारिस का फैसला लोकतंत्र में जनता करती है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पिता के लिए पुत्र को ही अपना उत्तराधिकारी बनाना जरुरी होता तो चौधरी चरण सिंह, कर्पूरी ठाकुर या अन्य नेता अपने बेटे को अपना राजनीतिक वारिस बना देते। राजनीतिक विरासत की इस लड़ाई में लालू यादव के साथ साथ उनके बेटे तेजस्वी यादव का नाराज़ होना भी लाज़मी था। पार्टी में उनकी महत्वकांक्षाएं इतनी बढ़ चुकी थी, कि पार्टी आलाकमान को उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा।
इसके बाद वर्ष 2015 में ही पप्पू यादव ने अपनी अलग पार्टी ‘जन अधिकार पार्टी, लोकतान्त्रिक’ का गठन किया और विधानसभा चुनावों में बिहार की 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए, हालांकि, उनकी पार्टी एक भी सीट जीतने में असफल रही। लेकिन इस दौरान उनका लालू परिवार के साथ झगड़ा जारी रहा। सितंबर 2018 में उन्होंने लालू पर हमला बोलते हुए कहा था कि अब उनकी कोई राजनीतिक महत्ता नहीं रह गई है। वहीं तेजस्वी यादव पर भी वे कड़ा हमला करते आए हैं। पिछले साल उन्होंने तेजस्वी पर हमला बोलते हुए कहा था कि वे बचपन से एसी कमरों में खेलते आए हैं, जबकि मैंने सड़क पर लोगों से मिलकर उनकी समस्याओं का निवारण करने की कोशिश की है।
अब इस लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव एक बार फिर माधेपुरा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुके हैं। पार्टी की इतनी मजबूत स्थिति ना होने के वजह से उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। इससे पहले वे राजद के गठबंधन में शामिल होना चाहते थे, लेकिन तेजस्वी यादव ने उनकी इस मांग को ठुकरा दिया और राजद की ओर से शरद यादव को माधेपुरा सीट से चुनाव में उतार दिया। आपको बता दें कि पिछले चुनावों में पप्पू यादव, उस वक्त जेडीयू में रहे शरद यादव को मात्र 56 हज़ार वोटों से हराने में सफल हुए थे, और अबकी बार उनको शरद यादव से कड़ा मुक़ाबला मिल सकता है। जबकि उनकी पत्नी रंजीता रंजन के लिए भी कोई अच्छी खबर नहीं है।
दरअसल, रंजीता रंजन को कांग्रेस द्वारा फिर एक बार सुपौल से टिकट दिया गया है, जिससे कि राजद पार्टी बिल्कुल भी खुश नहीं है। इससे पहले रंजीता रंजन के टिकट कटने की बातें राजनीतिक गलियारों में सुनाई दे रही थी, हालांकि उनके पिछले चुनावों में शानदार प्रदर्शन को देखते हुए पार्टी ने फिर उनपर विश्वास जताया है। लेकिन पप्पू यादव की पत्नी होने के नाते राजद नेता उनके उम्मीदवार बनाए जाने से बिल्कुल भी खुश नहीं हैं। सुपौल में कांग्रेस के स्थानीय नेता भी रंजन की उम्मीदवारी से खुश नहीं है और उनका समर्थन न करने की बात कह चुके हैं। वहीं राजद नेता तेजस्वी यादव, पप्पू यादव के शरद यादव के खिलाफ लड़ने से भी काफी नाराज़ चल रहे हैं। आरजेडी ने धमकी देते हुए कहा है कि यदि पप्पू यादव माधेपुरा सीट से चुनाव लड़ते हैं तो राजद सुपौल सीट से कांग्रेस के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारेगी।
जाहिर है कि कभी लालू के बेहद करीबी रहे पप्पू यादव को पहले पार्टी से बाहर निकाल दिया गया, और अब उनके चुनाव लड़ने को लेकर भी उन्हें जमकर ब्लैकमेल किया जा रहा है। पप्पू यादव के खिलाफ तेजस्वी की यह दुश्मनी इसलिए भी कुछ ज़्यादा है कि उन्होंने कभी राजद के उत्तराधिकार होने के सपने देखने की जुर्रत कर डाली थी, हालांकि अपनी इस दुश्मनी साधने के चक्कर में वे अपने गठबंधन की नैया डुबाने में लगे हुए हैं। अगर राजद कांग्रेस के खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा करती है तो आखिर में नुकसान गठबंधन का ही होगा।