सुप्रीम कोर्ट ने टेरर फंडिंग मामले में अहमद शाह की जमानत याचिका की खारिज

सुप्रीम कोर्ट वटाली

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सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी राहत मिली जब सुप्रीम कोर्ट ने एक कश्मीरी कारोबारी अहमद शाह वटाली की जमानत याचिका को रद्द कर दिया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा की केंद्रीय जांच एजेंसी एनआइए के पास पर्याप्त सबूत जो ये साबित करता है कि जम्मू-कश्मीर में हुर्रियत नेताओं और आतंकी संगठनों के बीच गहरा जुड़ाव है। जस्टिस एएम खानविल्कर और अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने कहा, “भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने को लेकर जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठन हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं और आतंकी संगठनों के बीच गहरे संबंध के सबूत प्रचुर मात्रा में हैं।“ बता दें कि वटाली पर हाफिज सईद और कई आतंकियों की मदद करने का आरोप है।

दरअसल, कारोबारी जहूर अहमद शाह वटाली पर पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा चीफ हाफिज सईद, यूसुफ शाह और अन्य लोगों की मदद करने का आरोप है। वटाली पर आरोप है कि वो जम्मू-कश्मीर में हाफिज के इशारे पर आतंकियों को पैसा मुहैया कराता था। इसी आरोप के चलते प्रवर्तन निदेशालय ने वटाली की गुरुग्राम में स्थित प्रॉपर्टी को अटैच किया था। आरोपों के मुताबिक मकान का भूतल हाफिज सईद के संगठन फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन (FIF)  की रकम से खरीदा गया था। इसके बाद एनआइए ने वटाली को पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज मुहम्मद सईद को धन मुहैया कराने के आरोप में गिरफ्तार किया था। अहमद शाह वटाली को दिल्ली हाई कोर्ट ने 13 सितंबर 2018 जमानत दे दी थी।

इसके बाद एनआइए ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। इस अपील के बाद कोर्ट ने वटाली की जमानत याचीका को खारिज कर दिया। इसके साथ ही कहा कि एनआइए द्वारा वटाली के खिलाफ पर्याप्त सबूत पेश किये गये थे फिर भी हाई कोर्ट ने इस मामले में ‘अनुचित रवैया अपनाया और सबूतों को परखने में गलती की है।

सर्वोच्च न्यायालय की बेंच के मुताबिक दिल्ली हाई कोर्ट को इस पूरे मामले में सबूतों पर गौर करना चाहिए था। दरअसल, हाई कोर्ट को जमानत याचिका पर कोई भी फैसला सुनाने से पहले इस मामले की तह तक जाना चाहिए था। ऐसा लगता है कि कोर्ट ने जो पेश किया गया और जो कहा गया उसे ही आधार बनाकर पर राय बनानी चाहिए थी। खुद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाई कोर्ट के रवैये को सही नहीं ठहराया। कोर्ट ने कहा कि ‘हाई कोर्ट को पूरी सामग्री को रिकॉर्ड पर लेना चाहिए था और इसके आधार पर अपनी राय बनानी चाहिए थी।‘

हाई कोर्ट का ये फैसला तब आया जब कश्मीर प्रशासन कश्मीर घाटी में सक्रिय हुर्रियत नेताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है। ऐसे में कोर्ट का ये फैसला प्रशासन की कार्रवाई की एक बड़ी जीत भी है।  

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