मंदिरों का प्रबंधन श्रद्दालुओं के हाथ में होना चाहिए ना कि सरकार के हाथ में- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट मंदिर

(PC: Hindustan Times)

सोमवार को देश के सुप्रीम कोर्ट ने देश की सरकारी संस्थाओ पर हिन्दू धार्मिक स्थलों और मंदिरों को अपनी निगरानी में लेने पर अपनी चिंता व्यक्त की है। सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्य सरकारों द्वारा मंदिरों के गलत प्रबंधन पर सवाल उठाते हुए कहा है कि मंदिरों का प्रबंधन खुद श्रद्धालुओं द्वारा किया जाना चाहिए। जस्टिस एस ए बोबड़े और एस ए नज़ीर की बेंच ने पुरी के जगन्नाथ मंदिर में श्रद्धालुओं के उत्पीड़न के मामले में सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। जस्टिस बोबड़े ने कहा ‘मुझे पता नहीं क्यों सरकारी अधिकारी धार्मिक स्थलों के प्रबंधन में हस्तक्षेप करते हैं?’ बेंच ने कहा कि तमिल नाडु के मंदिरों से दुर्लभ और अमूल्य मूर्तियाँ गायब हो रही हैं, उनसे लोगों की भावनाएँ जुड़ी हुई हैं’। अब कोर्ट इसपर अगले महीने सुनवाई करेगा।

पिछले काफी समय से हमारे सामने ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जिसमें कि सरकारी लोगों द्वारा मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया गया हो। कई हिन्दू समूहों द्वारा विरोध करने के बाद भी आंध्र प्रदेश की चंद्रबाबू नायडू सरकार द्वारा राज्य के मंदिरों का जिम्मा तिरुमला तिरुपति देवस्थानम को सौंप दिया गया। इस बोर्ड में कुछ विवादित नाम भी हैं। जैसे जमीन घोटाले के आरोपी एमएलए बोंदा उमामहेश्वरा राव को भी इस बोर्ड का सदस्य बना दिया गया। इसके अलावा अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए हिन्दू मंदिर के प्रबंधन बोर्ड में मुस्लिम सदस्य को भी शामिल कर दिया गया।

हिंदू मंदिरों को पूरे देश में ‘धर्मनिरपेक्ष’ राज्य सरकारों के हमले का सामना करना पड़ रहा है। ये सरकारें हिंदू रिलीजियस और चैरिटेबल एंडॉवमेंट्स (एचआरसीई) अधिनियमों के तहत  हमारे मंदिरों को नियंत्रित करती है। एचआरसीई विभागों का नेतृत्व ज्यादातर स्वायत्त बोर्डों द्वारा किया जाता है, जहां अक्सर मार्क्सवादी या धर्म में विश्वास न रखने वालों की नियुक्तियां होती हैं। दान की वजह से धार्मिक संस्थानों के पास धन की कमी नहीं होती ऐसे में अब राज्य सरकारें इन धार्मिक संस्थानों से पैसे उधार लेती हैं। सरकारें न केवल खुद को वित्तपोषित करने के लिए मंदिरों का पैसों का उपयोग करती हैं, बल्कि वे बिना किसी भुगतान के उनके स्वामित्व वाली भूमि का भी उपयोग करती हैं।

इसी का एक अन्य उदाहरण हमें पश्चिम बंगाल से देखने को मिला जब पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने मशहूर तारकेश्वर मंदिर के प्रबंधन बोर्ड में मुस्लिम एमएलए फिरहद हाकिम को लगा दिया। सूत्रों के मुताबिक उन्होने ऐसा इसलिए किया था ताकि मंदिर से होने वाली आमदनी का सही आंकलन ना किया जा सके और भ्रष्टाचार के लिए प्रयाप्त अवसर मिल सके।

आज की तारीख में कई हिन्दू मंदिरों को अलग अलग राज्य सरकारों द्वारा अपने जिम्मे लिया हुआ है।  तिरुपति मंदिर, गुरुवायुर मंदिर, जगन्नाथ पुरी, श्रीशैलम, काशी, मथुरा, अयोध्या, वैष्णो देवी मंदिर, सिद्धि विनायक मंदिर, शिरडी साईं बाबा मंदिर, अमरनाथ, बद्रीनाथ, केदारनाथ जैसे कई मंदिर इसके उदाहरण है। कर्नाटक के अंदर तो संसाधनों की कमी की वजह से सैंकड़ों की तादाद में मंदिर बंद भी हो चुके हैं। कई मंदिरों की स्थिति इतनी बदहाल हो चुकी है कि उनको अपने दिये जलाने के लिए भी तेल नसीब नहीं हो पाता। मंदिर हिन्दू संस्कृति का एक अहम हिस्सा होते हैं, ऐसे में इनको अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए कतई इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए और माननीय सुप्रीम कोर्ट की इसपर टिप्पणी स्वागत योग्य है।

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