वाराणसी में हो सकती है शी जिनपिंग और मोदी की मुलाक़ात, चीन में दिखी उत्सुकता

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PC: MSN

पीएम मोदी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं। पिछले पांच सालों के दौरान कूटनीतिक तौर पर भारत काफी सक्रिय रहा है और सभी को उम्मीद है कि पीएम मोदी आने वाले पांच सालों में भी अपनी इसी कूटनीतिक दौड़ को जारी रखेंगे। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भारत सरकार दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और अपने पड़ोसी चीन के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठा सकती है। डोकलाम विवाद के बाद चीन के वुहान में पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई शिखर वार्ता की तर्ज पर दोनों वैश्विक नेताओं के बीच एक और अनौपचारिक मुलाक़ात हो सकती है, और खास बात यह है कि यह वार्ता उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी में होगी।

पिछले साल 27-28 अप्रैल को पीएम मोदी चीन के दौरे पर गए थे और वुहान शहर में उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ करीब 10 घंटों तक द्विपक्षीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की थी। दोनों देशों ने इस मुलाक़ात के बाद सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी और भविष्य में भी ऐसी मुलाक़ात करने के संकेत दिये थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वाराणसी में संभावित मुलाक़ात को लेकर चीन ने भी काफी उत्सुकता दिखाई है।

गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने चीन के कई दौरे किए थे और कम्यूनिस्ट पार्टी के नेताओं के साथ अच्छे संबंध बनाए थे। यही कारण था कि दोनों देशों ने अपनी परिपक्व कूटनीति का उदाहरण पेश करते हुए डोकलाम विवाद को आपसी तालमेल के जरिये सुलझाया था। ध्यान देने वाली बात यह है कि डोकलाम विवाद के बाद भारत-चीन के बॉर्डर पर किसी तरह का तनाव देखने को नहीं मिला है।

अगर वाराणसी शिखर वार्ता को लेकर लगाई जा रही अटकलें सही साबित होती हैं तो पीएम मोदी और शी जिनपिंग के बीच इस साल यह तीसरी मुलाक़ात होगी। दोनों देशो के शीर्ष नेताओं के बीच लगातार हो रही आधिकारिक और अनौपचारिक मुलाकातों की वजह से पिछले कुछ समय में दोनों देशों के रिश्तों में काफी मधुरता देखने को मिली है। इसका अंदाजा आप चीनी मीडिया के रुख से लगा सकते हैं। चीनी मीडिया में चुनाव से पहले पीएम मोदी को लेकर काफी सकारात्मक बातें की गई। चीन के सरकारी अखबार ‘द ग्लोबल टाइम्स’ ने तो यहां तक लिखा कि ठीक चुनावों से पहले चीन द्वारा आतंकी मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी घोषित करवाने वाले प्रस्ताव से टेक्निकल होल्ड हटाना पीएम मोदी को चीन का अप्रत्यक्ष समर्थन था।

बता दें कि चीन और अमेरिका के बीच इस वक्त भयंकर व्यापार युद्ध छिड़ा हुआ है जिसके तहत दोनों देशों ने एक दूसरे के देशों से आयात होने वाले सामान पर भारी आयात शुल्क लगाया हुआ है। यही कारण है कि पिछले वर्ष चीन की विकास दर 90 के दशक के बाद सबसे धीमी रही। पाकिस्तान का ‘ऑल वैदर फ्रेंड’ होने के बावजूद उसने भारत के साथ अपने रिश्तों को प्राथमिकता दी है। आने वाले समय में हम दक्षिण एशिया में विकास के लिए चीन और भारत की बढ़ती साझेदारी को नया आयाम मिलता देख सकते हैं।

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