मल्लिकार्जुन खड़गे ने कभी हार नहीं देखी, लेकिन इस बार कांग्रेस के गढ़ में क्यों हार गये ?

मल्लिकार्जुन खड्गे लोकसभा चुनाव

PC: News18

जैसे ही लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित हुए, भाजपा युक्त एनडीए गठबंधन की सत्ता वापसी का रास्ता साफ हो गया। जहां स्वयं भाजपा ने 2014 के अपने 282 सीट से अप्रत्याशित छलांग लगाते हुये 303 सीट जीते, वहीं एनडीए गठबंधन ने कुल मिलाकर 352 सीट जीतकर एक नया कीर्तिमान रच दिया।

जिस कर्नाटक में पिछले वर्ष भाजपा सरकार बनाते बनाते रह गयी, वहां प्रचंड बहुमत के साथ 28 में से 25 सीटों पर भाजपा ने खुद कब्जा जमाया है। यही नहीं, इस चुनाव में भाजपा ने राज्य के दिग्गज विपक्षी नेता, जैसे कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे एवं पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा को उन्हीं की मांद में बुरी तरह हरा दिया।  

कर्नाटक में पिछले साल भाजपा द्वारा सबसे ज़्यादा सीटें जीतने के बावजूद जेडीएस और कांग्रेस के गठबंधन ने राज्य में सरकार बनाई। लेकिन इस बेमेल गठबंधन के प्रति जनता के बढ़ते विरोध का असर वर्तमान लोक सभा चुनावों में भी दिखा, जहां भाजपा ने 28 में 25 सीटों पर विजय प्राप्त की। जिस कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनावों में 9 सीटों पर सफलता प्राप्त की थी, उसे इस बार केवल 1 ही सीट नसीब हुई।

हालांकि, यहां कांग्रेस को सबसे ज़्यादा नुकसान गुलबर्ग क्षेत्र से हुआ है, जहां से वरिष्ठ कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड्गे सांसद रहे हैं। मल्लिकार्जुन खड्गे ने अपने पूरे कॅरियर में हार नहीं देखी थी वो इस बार वो भाजपा के प्रत्याशी, डॉ. उमेश जाधव से लगभग 1 लाख मतों के अंतर से हार गये।

ऐसा पहली बार हुआ है की इतने दशकों में मल्लिकार्जुन को पराजय मिली हो। इससे पहले लगातार 11 चुनावों में, जिसमें 9 विधानसभा के और 2 लोकसभा चुनावों में मल्लिकार्जुन खड्गे जीते थे।

लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले डॉ. उमेश जाधव की लंबाणी (या बंजारा) वोटों पर काफी अच्छी पकड़ है। इसके साथ ही बीएस येद्युरप्पा के लिंगायतों के समर्थन में आवाहन और साथ ही साथ पीएम मोदी के प्रभाव ने इस बार उनके पतन में एक अहम भूमिका निभाई है। 

अकेले मल्लिकार्जुन खड्गे ही कांग्रेस के लिए कर्नाटक से युद्ध लड़ रहे थे, क्योंकि कई बड़े नेताओं ने कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। जिन्होंने भी पार्टी छोड़ी थी, उन सभी ने मल्लिकार्जुन को अपने बेटे प्रियांक खड्गे को तरजीह देने का आरोप लगाया था, और भाजपा ने इस विवाद का भरपूर फायदा उठाया।

खड्गे के पुत्रमोह के विरोध में डॉ. जाधव ने पार्टी छोड़ने का फैसला लिया था। उन्होंने प्रियांक खड्गे पर दखलंदाज़ी करने और रौब जमाने का आरोप लगाया था। इसके साथ ही कांग्रेस पार्टी के कर्नाटक हैदराबाद क्षेत्र में पतन के लिए मल्लिकार्जुन के पुत्रमोह को दोषी भी ठहराया। सूत्रों की माने, तो डॉ. जाधव कुमारस्वामी के कैबिनेट में आने को पूरी तरह तैयार थे लेकिन मल्लिकार्जुन ने इसका पुरजोर विरोध किया।

कांग्रेस छोड़ भाजपा का दमन थामने वाले पूर्व मंत्री बाबूराव चिंचानसूर ने खड्गे की पराजय का सारा दोष उनके बेटे प्रियांक पर मढ़ा। उनके अनुसार, “खड्गे ने गुलबर्ग और हैदराबाद के लिए काफी काम किया है। वो लोकप्रिय भी हैं और सम्मानित भी। पर उनके बेटे के आगमन ने सब कुछ बिगाड़ दिया। अपने बेटे को प्रोत्साहित करने के लिए मल्लिकार्जुन ने पार्टी को ही अनदेखा करना शुरू कर दिया। प्रियांक को मंत्री बना दिया। यदि ऐसा न हुआ होता, तो खड्गे की हार नहीं होती।‘ वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने पूरे दो दशक बाद इस सीट पर कब्जा जमाया है।

इसी ट्रेंड का पालन करते हुए भाजपा ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ जैसे राज्यों में प्रचंड बहुमत के साथ सीटें प्राप्त की, और पिछले वर्ष विधानसभा चुनावों में इन राज्यों में मिली हार के दुख को भी काफी हद तक कम किया। उत्तर प्रदेश में जहां भाजपा के भावी हार की कई मौसमी विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की थी, वहीं परिणामों में तस्वीर तो कुछ और ही निकली। इन्हीं चुनावों में कांग्रेस ने जिस तरह भाजपा के सामने घुटने टेके हैं, उसके लिए पार्टी की वंशवादी प्रवृत्ति दोषी है, जिसके कारण ना सिर्फ कांग्रेस को एक बार फिर चुनावों में पराजय मिली है, बल्कि इस बार लोक सभा में विपक्ष भी लगभग नदारद है।  

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