देशभर में लोकसभा चुनाव अभी जारी है और आखिरी चरण के मतदान होने अभी बाकी है, लेकिन लगता है कि कांग्रेस पार्टी ने नतीजे आने से पहले ही हार मान ली है। दरअसल, कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद ने कल अपनी प्रेस वार्ता में इस बात को स्वीकार लिया कि एनडीए को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए अगर कांग्रेस को पीएम पद की उम्मीदवारी का त्याग भी करना पड़े, तो उसके लिए वह तैयार है। उनके इस बयान के बाद पूरी तरह यह साफ हो गया कि इन चुनावों में कांग्रेस अपने आप को मुख्य भूमिका में कहीं नहीं देखती। इसी के साथ कांग्रेस ने गैर-आधिकारिक तौर पर यह भी घोषित कर दिया कि राहुल गांधी पार्टी की ओर से पीएम पद के उम्मीदवार नहीं होने वाले हैं। हालांकि, जब उनके इस बयान पर विवाद गरमा गया, तो उन्होंने यू-टर्न लेते हुए यह कहा कि बेशक, हम सबसे बड़ी और सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी हैं। यदि पांच साल तक सरकार चलाने की बात आती है तो सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी को मौका दिया जाना चाहिए। अब वो बात कितना भी घुमाएं लेकिन ये तो साफ़ है कि कांग्रेस ने अब प्रधानमंत्री पद को लेकर भी हथियार डाल दिए हैं।
दरअसल, गुलाम नबी आज़ाद ने गुरुवार को बड़ा बयान देते हुए कहा था ‘हम अपना स्टैंड पहले ही क्लियर कर चुके हैं। अगर कांग्रेस के पक्ष में जनादेश आता है, तो कांग्रेस सभी दलों का नेतृत्व करेगी, लेकिन हमारा सबसे बड़ा लक्ष्य एनडीए को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाना है। अगर हमें पीएम पद ना दिया जाए, तो भी हमें इससे कोई दिक्कत नहीं होगी’। उनके इस बयान से ये तो स्पष्ट हो गया है कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी पीएम पद की रेस से बाहर हो गये हैं। वहीं सत्ता के लिए हताश ये पार्टी क्षेत्रीय दलों के सामने झुकने के लिए भी तैयार है। ये वही पार्टी है जो अपनी शर्तों पर क्षेत्रीय पार्टियों को अपने साथ कभी जोड़ा करती थी लेकिन आज ये अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। इसका उदाहरण हमने कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में देख भी चुके हैं जहां सत्ता के लिए वहां की क्षेत्रीय पार्टी जेडीएस के सामने घुटने टेके थे और मुख्यमंत्री पद का सौदा किया था।
गुलाम नबी आज़ाद का यह बयान तब सामने आया जब यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी सरकार बनाने के लिए अन्य विपक्षी दलों को साथ लाने की कोशिश कर रही थीं। खबरों के मुताबिक सोनिया गांधी ने सभी विपक्षी पार्टियों के नेताओं को पत्र लिखकर 21 मई से 23 मई तक दिल्ली में होने वाली बैठक के लिए समय निकालने की मांग की थी, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि अगर वह पिछली बार के मुक़ाबले अधिक सीटें लाने में सक्षम रहती है तो वह सरकार बनाने की जी-तोड़ कोशिश करेंगी चाहे इसके लिए पार्टी को अपना घमंड ही क्यों न छोड़ना पड़े। बता दें कि सोनिया गांधी द्वारा वर्ष 2004 में भी इसी रणनीति पर काम किया गया था।
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है कि जब इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने नतीजों से पहले ही हथियार डालने का काम किया हो। कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव प्रियंका गांधी से जब उत्तर प्रदेश में पार्टी की खराब स्थिति को लेकर सवाल पूछा था तो उन्होंने कहा था ‘मेरी रणनीति एकदम साफ है। कांग्रेस उन सीटों पर जीत हासिल करेंगी जहां हमारे मजबूत उम्मीदवार हैं। वहीं जहां हमारे उम्मीदवार कमजोर हैं, उस जगह वह बीजेपी का वोट काटने का काम करेंगे’।
Priyanka Gandhi Vadra: BJP will suffer a major setback in UP, they'll lose badly. In those seats where Congress is strong & our candidates are giving a tough fight, Congress will win. Jahan hamare ummedwar thode halke hain, wahan humne aise ummedwar diye hain jo BJP ka vote kaate pic.twitter.com/2f2BMMQCBs
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) May 1, 2019
प्रियंका गांधी के बाद कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद का ऐसा बयान सामने आना इन चुनावों में कांग्रेस की दयनीय स्थिति को बखूबी बयां करता है। ऐसा लगता है कि राहुल गांधी ने नतीजों से पहले ही खुद को पीएम पद की दौड़ से बाहर कर लिया है। पिछले ही वर्ष राहुल गांधी ने अपने आप को कांग्रेस पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बताया था। यही कारण था कि आज़ाद के इस बयान पर आम जनता के मन में कई सवाल उठने लगे लेकिन पार्टी को फजीहत से बचाने के लिए उन्होंने जल्द ही यू-टर्न भी ले लिया है। वास्तव में छः चरणों के मतदान के बाद कांग्रेस जमीनी स्तर की सच्चाईयों को अच्छी तरह भांप चुकी है, शायद यही कारण है कि कांग्रेसी नेता अब तर्कसंगत भविष्यवाणी कर रहे हैं।