पिछले पांच सालों में दुनियाभर में दक्षिणपंथी विचारधारा को बड़े पैमाने पर बल मिला है। आज अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक देशों में दक्षिणपंथी विचारधारा को मानने वाले लोग ही सत्ता में बैठे हैं। यह साफ संकेत है कि दुनियाभर के वोटर्स ने लेफ्ट के कम्युनिस्ट मॉडल को ठुकराकर, समाजवाद से पूंजीवाद की ओर बढ़ने का फैसला लिया है। हालांकि, पूरे विश्व में एक फ्रंट ऐसा रहा है जो शुरू से ही वामपंथ को बढ़ावा देता आया है, और वह है मीडिया! यह मीडिया पूरी दुनिया में दक्षिणपंथी विचारधारा के खिलाफ अपना एजेंडा चलाता आया है। भारत के खिलाफ तो यह मीडिया शुरू ही नफरत फैलाता आया है। टाइम मैगज़ीन, न्यू यॉर्क टाइम्स, द इकोनोमिस्ट और द गार्डियन जैसे मीडिया संस्थान तो पीएम मोदी और भारत को बेइज़्ज़त करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। हालांकि, इन लोकसभा चुनावों में भारत के वोटर्स ने फिर से मोदी सरकार को चुनकर पश्चिमी मीडिया के इस एजेंडे को करारा जवाब दिया है।
भारत के प्रति पश्चिमी मीडिया का यह द्वेष कोई नयी बात नहीं है। समय-समय पर यह मीडिया विकासशील देशों को लेकर अपने नकारात्मक रवैये का उदाहरण देती आई है। न्यू यॉर्क टाइम्स की बात करें तो इस मीडिया समूह ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अच्छे प्रदर्शन के बावजूद भारत को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वर्ष 2014 में जब भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने अपने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह पर सफलतापूर्वक अपना ऑर्बिटर भेजा था, तब भी न्यू यॉर्क टाइम्स ने एक आपत्तिजनक कार्टून को छापकर भारत के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का काम किया था। दरअसल, अपने कार्टून में इस अख़बार ने भारत की गरीबी का मज़ाक उड़ाते हुए एक किसान को उसकी गाय के साथ उस ‘एलिट ग्रुप’ के कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए दिखाया था जिसमें कुछ ‘अमीर’ लोग बैठकर भारत की इस सफलता की खबर पढ़ रहे थे। इस आपत्तिजनक कार्टून पर भारत के लोगों द्वारा इतना जबरदस्त विरोध जताया गया कि कुछ समय के बाद अख़बार को एक सफाई जारी करके माफी मांगनी पड़ी थी। इसके अलावा इस मीडिया समूह ने वर्ष 2015 में पेरिस जलवायु समझौते पर भारत के सकारात्मक रुख का भी मज़ाक उड़ाया था।
पश्चिमी मीडिया भारत के प्रति नकारात्मकता से इतना भरा हुआ है कि भारत की सकारात्मक खबरों में भी वह कहीं न कहीं से नकारात्मक्ता ढूंढ निकालता है। थॉमस रॉयटर्स फ़ाउंडेशन ने पिछले दिनों यह खबर दिखाई कि अन्य देशों के मुक़ाबले भारत में महिला पायलटों की संख्या काफी ज़्यादा है। हालांकि इसके साथ ही इस मीडिया समूह ने यह एजेंडा भी चलाया कि भारत में महिलाएं बहुत पीड़ित हैं और भारतीय पुरुष प्रधान समाज में नौकरीपेशा महिलाओं को स्वीकार नहीं किया जाता। हालांकि, यह तो कुछ उदाहरण मात्र थे। भारतीय लोकसभा चुनावों से ठीक पहले ‘द गार्डियन’ और ‘द इकोनोमिस्ट’ ने पीएम मोदी की नीतियों का जमकर दुष्प्रचार किया ताकि कांग्रेस और वामपंथी विचारधारा को बल मिल सके। इन लेखों में तो पीएम मोदी को भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा तक बताया गया। हाल ही में छपे टाइम मैगज़ीन के कवर पेज पर पीएम मोदी को ‘बांटने वाला प्रधानमंत्री’ बताया गया, लेकिन भारतीय वोटर्स ने अब इनके एजेंडे को जोरदार झटका दिया है। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया दुनिया के सामने भारत की छवि को एक पिछड़े, अव्यवस्थित, गरीब और अराजक देश के तौर पर बनाने की कोशिश करती आई है। अगर भारत से कोई बड़ी और सकारात्मक खबरें सामने आती हैं, तो भी ये मीडिया उसमें अपने एजेंडे का मसाला लगाकर अपने प्रोपेगैंडे को साधने का प्रयास करती हैं। ये बड़े-बड़े पत्रकार वातानुकूलित स्टूडियो में बैठकर अक्सर भारत के जमीनी स्तर के हालातों के बारे में लेख लिखते हैं ताकि उनकी कुंठित मानसिकता का प्रचार किया जा सके। हालांकि, भारतीय वोटर्स ने पीएम मोदी और भारत की दक्षिणपंथी सरकार पर अपना भरोसा जताकर इस पश्चिम मीडिया के एजेंडे को धराशायी कर दिया है।