इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड: भारत के एक दुर्दांत आतंकी को पकड़ने का एक सार्थक प्रयास

इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड

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कल्पना करो की आपको भारत के एक दुर्दांत आतंकी को पकड़ने का अवसर मिलता है, जिसने 10 से ज़्यादा बॉम्ब ब्लास्ट्स में करीब 450 से ज़्यादा निर्दोषों की जान ली हो। लेकिन आपको बताया जाता है की न आपको देश की सरकार से कोई सपोर्ट मिलेगा, न आपको इंटेलिजेंस का बैकप होगा, और न ही आप कोई हथियार ले जा सकते हैं, तो आप क्या करोगे?

नमस्कार, मैं हूँ अनिमेष पाण्डेय और आज मूवी इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड फिल्म रिलीज़ हुई। रेड, नो वन किल्ड जेसिका, आमिर जैसी फिल्में बनाने वाले राज कुमार गुप्ता के निर्देशन में बनी ये मूवी यासीन भटकल को पकड़ने वाले मिशन पर आधारित एक काल्पनिक कथा है, जिसमें मुख्य कलाकार है अर्जुन कपूर, राजेश शर्मा, सुदेव नायर इत्यादि।

यह कहानी मुख्य रूप से इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक अदना अफसर प्रभात पर आधारित है, जिसे अपने मुखबिर से इंडिया के मोस्ट वॉन्टेड आतंकी पर कुछ जानकारी मिलती है। वे अपने बॉस राजेश सिंह से इसके लिए अनुमति लेते हैं, पर राजेश चाहकर भी उसकी कुछ मदद नहीं कर सकता। इसीलिए अपने दम पर प्रभात और कुछ अन्य इंटेलिजेंस अफसर जान हथेली पर रख नेपाल के लिए निकलते हैं, जहां उनका टार्गेट छुपा हुआ है। कैसे वे अनगिनत कठिनाइयों और अपने ही देश के हुक्मरानों की बेरुखी से जूझते हुए भारत के सबसे दुर्दांत आतंकियों में से एक को जीवित पकड़के लाते हैं, ये फिल्म उसी पर आधारित हैं।

इस फिल्म के बारे में कुछ भी बोलने से पहले मैं अभिनंदन करता हूँ राज कुमार गुप्ता का, जिनहोने काल्पनिक रूप से ही सही, पर देश के आंतरिक सुरक्षा पर कांग्रेस समर्थित नौकरशाहों की बेरुखी को बखूबी परदे पर उतारा है। 5 वर्ष पहले जब यासीन भटकल को पकड़ने के लिए भारतीय इंटेलिजेंस अफसरों की एक टुकड़ी निकली थी, तो उन्हें किसी भी प्रकार का सपोर्ट नहीं मिला।

उल्टे कुछ अफसरों की माने तो इन जांबाज़ों पर 2008 के हिन्दू आतंकवाद थ्योरी की तरह किसी बेतुके आरोप में फंसने पर बर्बाद होने का खतरा भी मंडरा रहा था। पर इस मिशन में शामिल अफसरों का ध्येय दृढ़ था। एक अफसर के अनुसार ‘चाहे जान जाये या नौकरी, पर उसे पकड़कर ही दम लेंगे’। और आखिरकार बिना नेपाल में छुपकर बैठे दुर्दांत आतंकी यासीन भटकल को भारतीय इंटेलिजेंस के कुछ अफसरों द्वारा 28 अगस्त 2013 में पकड़ लिया गया। इस दौरान इस आतंकी पर कोई गोली भी नहीं चलाई गयी थी या यूँ कहें हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया गया था.. इन्हीं गुमनाम वीरों को समर्पित है इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड।

अब यदि बात करें फिल्म की, तो इसमें खूबियाँ भी है और खामियाँ भी। इस फिल्म में गुप्तचर किस तरह काम करते हैं, इस पर बखूबी ध्यान दिया गया है। यदि फिल्म थोड़ी और कसी होती, तो ‘बेबी’ की तरह ये फिल्म भी जनता को हर पल अपने सीट से चिपके रहने के लिए विवश कर देती। जहां एक तरफ फिल्म की सिनेमैटोग्राफी उच्च स्तर की है, वहीं इसके चित्रण में किसी भी प्रकार का तड़का न होने के कारण कुछ लोगों के लिए पहला हाफ उनके सब्र का अच्छा खासा इम्तिहान ले सकता है। अर्जुन कपूर ‘नमस्ते इंग्लैंड’ के मुक़ाबले काफी बेहतर दिख रहे हैं, पर एक सुलझे और मंझे हुये इंटेलिजेंस अफसर बनने की चाह में कुछ जगह वे ज़रूरत से ज़्यादा भावहीन दिखते हैं। अच्छा हुआ वो ‘फैंटम’ की कैटरीना कैफ की तरह फैसले नहीं लेते, वरना ये मूवी उबाऊ भी हो सकती है। सुदेव नायर, जिन्हें इस मूवी में शीर्षक भूमिका मिली है, उनका भी सही से इस्तेमाल नहीं हुआ।

इसके बावजूद अगर कुल मिलकार कहें, तो ‘इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड’ यासीन भटकल को पकड़ने वाले उन अनामी अफसरों के बलिदानों को व्यक्त करता एक अच्छी फिल्म है । कई लोगों के लिए यह एक और बेहतर फिल्म हो सकती थी, पर यह एक सार्थक प्रयास है, जिसे सही दिशा में अन्य फ़िल्मकारों को भी अपनाना चाहिए। मेरी दृष्टि में इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड को मिलने चाहिए 5 में 3 स्टार।

 

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