कन्हैया कुमार को अपने गांव के लोगों से ही नहीं मिला समर्थन

कन्हैया कुमार चुनाव

(PC: Times of India)

बिहार के साथ ही सबसे हॉट सीट मानी जाने वाली बेगूसराय पर सबकी नजरें थीं क्योंकि यहां पर एक तरफ भाजपा के वरिष्ठ नेता गिरिराज सिंह थे, तो दूसरी तरफ खुद को ‘नेता नहीं बेटा’ बताने वाले कन्हैया कुमार थे। चुनाव परिणाम आने से पहले कुछ राजनीतिक पंडित इस सीट पर गिरिराज और कन्हैया के बीच कड़ी टक्कर बता रहे थे लेकिन जब नतीजे आए तो सभी मुंह छिपाते नजर आए। गिरिराज सिंह ने बिहार की बेगूसराय सीट पर 422217 वोटों के बड़े अंतर से चुनाव जीता, जबकि कन्हैया कुमार तो इस रेस में बिलकुल पिछड़े हुए नजर आये। यही नहीं कन्हैया को बेगुसराय स्थित अपने गांव बिहट से भी निराशा ही मिली ।  

कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट से चुनावी मैदान में उतरे कन्हैया कुमार की स्थानीय बनाम बाहरी वाली रणनीति असफल रही। साथ ही वह अपने भूमिहार वोट को भी भुनाने में असफल रहे। बीहट सीट पर आकड़ों की बात करें तो कन्हैया को यहां पर सिर्फ 703 वोट ही मिले जबकि गिरिराज को 807 वोट हासिल हुए। यही नहीं कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ मानी जाने वाली सैफपुर में भी कन्हैया को मात्र 95 वोट मिले जबकि यहां पर गिरिराज को 610 वोट हासिल हुए। आपको बता दें कि, यह आंकड़े पॉलिटिकल एक्सपर्ट प्रदीप भंडारी ने साझा किए हैं। प्रदीप ने अपनी टीम के साथ देशभर में एग्जिट पोल किए थे जो नतीजों के बाद भी सही साबित हुए थे। इससे स्पष्ट है कि, कम्युनिस्ट पार्टी की मुस्लिम-यादव को साधने वाली रणनीति काम नहीं आई। इसके साथ ही यहां की जनता ने खुद कन्हैया का साथ नहीं दिया। बीहट सीट शुरू से ही सीपीआई का गढ़ रही है लेकिन मोदी सुनामी और राष्ट्रवाद के मुद्दे के आगे सब विफल हुए। इस सीट पर चुनावों के दौरान काफी उठापटक भी देखने को मिली थी। वहीं कन्हैया के लिए प्रचार करने स्वरा भास्कर, जावेद अख्तर जैसी कुछ बॉलीवुड हस्तियां भी पहुंची थीं लेकिन कोई भी कामयाब नहीं हुआ। वहीं बेगूसराय सीट दोनों उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने के तरीके के कारण भी काफी चर्चा में रहा। कन्हैया ने यह चुनाव क्राउड़ फंडिंग के जरिये लड़ा और राज्य के कई लोगों से वह आर्थिक मदद पाने में कामयाब रहे। ऐसा करके कन्हैया ने मात्र 30 घंटों में ही 30 लाख रुपये से अधिक फंड इकट्ठा कर लिया था। कन्हैया कुमार जो बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे, जिसने चुनाव प्रचार के लिए बाहरी लोगों को बुलाया वो अपने ही गांव के लोगों का समर्थन पाने में असफल रहा। स्पष्ट है कि उनके गांव के लोग भी उनकी देश विरोधी हरकतों से अच्छे से वाकिफ हैं और यही वजह है कि किसी ने भी कन्हैया को महत्व नहीं दिया।  

‘बाहरी बनाम स्थानीय’ के नारे को बुलंद किए हुए कन्हैया कुमार की कोई रणनीति काम नहीं आई और उन्हें बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। खुद को बेरोजगार बताकर जनता से सहानुभूति लूटने वाले कन्हैया को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में कन्हैया की इस हार से यह साबित होता है कि, सीपीआई की जो विचारधारा रही है उससे जनता अब त्रस्त हो गई और राष्ट्रवाद के मुद्दे को हर किसी ने सबसे ऊपर रखकर गिरिराज को भारी मतों से जीत दिलाई। स्पष्ट है कि कन्हैया का राजनीतिक करियर शुरू होने से पहले ही डूब गया है।  

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