अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब शरद पवार के राजनीतिक करियर पर ही ब्रेक लग जायेगा

शरद पवार एनसीपी

PC: Zee News

पीएम बनने का सपना देख रहे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार को लोकसभा चुनाव के नतीजों से बड़ा झटका लगा है। कांग्रेस के साथ चुनावी मैदान में उतरी एनसीपी को करारी हार झेलनी पड़ी है।  इस पार्टी को सिर्फ 4 सीटें मिली हैं। ऐसे में अब यह सवाल खड़ा होता है कि, क्या वह आने वाले चुनाव में कोई नई रणनीति के साथ बीजेपी का सामना करने में कामयाब हो पाएंगे या नहीं।

कांग्रेस का साथ लेकर मोदी सुनामी को रोकने के लिए शरद पवार ने पूरा दम लगा दिया लेकिन किसी को भी कामयाबी हासिल नहीं हुई और महाराष्ट्र की जनता ने राष्ट्रवाद के मुद्दे को प्रमुखता से रखते हुए बीजेपी और शिवसेना गठबंधन पर भरोसा जताया। शरद पवार ने लोकसभा चुनावों से खुद को दूर रखते हुए अपने परिवार को आगे रखने का काम किया। शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले एक बार फिर बारामती सीट से चुनाव लड़ रही थीं और यहां पर उनको भाजपा की उम्मीदवार कंचन से करारी टक्कर मिली। दिलचस्प बात यह है कि, यह सीट पवार परिवार का गढ़ मानी जाती रही है, लेकिन, मोदी वेव और विकास का मुद्दा इतना हावी हो गया कि, उन्हे यहां पर भी बीजेपी की उम्मीदवार से कड़ी चुनौती मिली। अगर आकड़ों कि बात करें तो सुप्रिया सुले को 683705 वोट मिले, तो वहीं भाजपा उम्मीदवार कंचन को 528711 वोट हासिल हुए। ऐसे में पवार परिवार का गढ़ रहे बारमाती में भी मोदी सुनामी ने कड़ी टककर दी। वहीं शरद पवार के पौत्र पार्थ पवार को मावल लोकसभा सीट से बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा।

आपको बता दें कि, पार्थ पवार शरद पवार के पोते हैं और राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री अजीत पवार के बेटे हैं। बता दें एक समय ऐसा भी आया था जब एनसीपी ने जीत हासिल करने के लिए शिवसेना को फ़ोन करके समर्थन की मांग तक की थी , फिर भी पार्थ पवार को जीत नहीं मिल पाई थी। गौरतलब है कि शरद पवार 1967 से अब तक 14 चुनाव लड़ चुके हैं और सभी में उन्हें जीत मिली है।इसके अलावा पवार परिवार से अजीत पवार भी अपने 25 साल के राजनीतिक जीवन में कोई चुनाव नहीं हारे हैं। ऐसे में पार्थ पवार की इस हार के कई मायने हैं। इससे यह साबित होता है कि राज्य की जनता इस पार्टी की विचारधारा को नकार दिया है। इन चुनावों में शरद पवार ने खुद सामने ना आकर अपने परिवार के लोगों को बढ़ावा दिया जिससे एक नई और युवा नेताओं की टीम गठित हो सके, लेकिन वह ऐसा करने में बिलकुल भी कामयाब नहीं हुए।

इसके इतर अगर महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो 2014 में 260 सीटों पर लड़ी बीजेपी को 123 सीटें हासिल हुई थीं। 278 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली शरद पवार की एनसीपी को मात्र 41 सीटें हासिल हुई थी। तो इन आकड़ों से साफ होता है कि, वह लगातार पिछले कुछ सालों में अपना अस्तित्व खो रही है। जैसे-जैसे बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन मजबूत होता जा रहा है उसके साथ ही एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन बिखरता और टूटता दिख रहा है। इसके अलावा महाराष्ट्र में हुए अन्य चुनावों की बात करें तो उसमें भी एनसीपी को हार झेलनी पड़ी है, इसमे बीएमसी और नगर पंचायत के चुनाव शामिल हैं।

राज्य में बीजेपी के बढ़ते दबदबे के साथ एनसीपी की पकड़ कमजोर होती जा रही है। अब खबर सामने आ रही है कि लोकसभा में मिली हार के बाद पार्टी के कई विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं और ऐसा कहा जा रहा है कि, वह जल्द ही बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। अगर सच में इस खबर में सच्चाई है तो ये एनसीपी के लिए राज्य के विधानसभा चुनाव से पहले ही एक बड़ा झटका है।

बता दें कि, महाराष्ट्र में अब अक्टूबर 2019 में विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में ये सवाल खड़ा होता है कि, क्या बीजेपी और मोदी लहर के आगे एनसीपी अपना अस्तित्व बचाने में सफल होगी या फिर वह लगातार राज्य में अपना दबदबा खोने के साथ ही यह चुनाव भी हार जाएगी। हालांकि यह तो अब आने वाले समय में ही साफ हो पाएगा कि एनसीपी का क्या होगा। बहरहाल यह तो तय है कि, अगर एनसीपी इस विधानसभा चुनाव में भी हारती है तो वह राज्य में उसका अस्तित्व खतरे में आ जायेगा।

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