मोदी लहर के आगे नहीं चला प्रियंका गांधी वाड्रा का जादू

प्रियंका गांधी कांग्रेस

PC: firstpost

कल भाजपा ने अपने इतिहास की सबसे प्रचंड विजय का अनुभव किया। 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम कल घोषित हुये और भारतीय जनता पार्टी ने अप्रत्याशित बहुमत प्राप्त करते हुये अपने दम पर 303 सीट और साथी दलों के साथ मिलकर 352 सीटों पर एनडीए गठबंधन के रूप में जीत दर्ज की। जहां कई नेता और राजनीतिक विशेषज्ञ इस विजय का श्रेय भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिर बांध रहे हैं। हालांकि, यहां एक और दिलचस्प वजह है जिसके कारण भाजपा को यह अप्रत्याशित बहुमत प्राप्त हुआ है, और वो कोई और नहीं, कांग्रेस की आंखों का तारा और पार्टी की पूर्वी उत्तर प्रदेश की वर्तमान उपाध्यक्ष प्रियंका गांधी वाड्रा।

प्रियंका गांधी वाड्रा का गाजे बाजे के साथ कांग्रेस पार्टी ने पार्टी में स्वागत किया। जब उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का पार्टी का प्रभारी बनाया गया था तो ये माना जा रहा था कि देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को नई उर्जा मिलेगी। ऐसा इसलिए था क्योंकि पिछले चुनाव में कांग्रेस ने राज्य में अपना निम्नतम प्रदर्शन किया था। अमेठी और रायबरेली को छोडकर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में एक भी सीट नहीं जीत पायी थी। ऐसे में पार्टी को लगा कि अमेठी और रायबरेली तो कांग्रेस के हाथ में है ही क्यों न अन्य क्षेत्रों पर भी पार्टी की पकड को मजबूत किया जाये। लेकिन कृपा हो प्रियंका गांधी की क्षत्र छाया में पार्टी ने इस बार पिछले चुनावों के मुकाबले निम्नतम प्रदर्शन किया, और अमेठी का किला भी राहुल गांधी स्मृति ईरानी के हाथों गंवा बैठे।

प्रियंका गांधी ने यूपी में धौरहरा, बाराबंकी, उन्नाव, कानपुर, झांसी, प्रतापगढ़, जौनपुर, कुशीनगर, सुल्तानपुर, भदोही, दुमरियागंज, बस्ती, फ़तेहपुर, वाराणसी और संत कबीर नगर इत्यादि में पार्टी के लिए प्रचार प्रसार किया। इन सभी सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। मजे की बात तो यह है कि कानपुर को छोड़कर बाकी सारी सीटों पर कांग्रेस भाजपा को सीधे मुंह टक्कर भी नहीं दे पायी, और इनमें से अधिकांश सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत तक ज़ब्त हो गयी।  

यूपी में नाकामी के अलावा प्रियंका गांधी के प्रचार प्रसार का बाकी उत्तरी राज्यों में भी कोई विशेष असर नहीं पड़ा। उत्तर प्रदेश के बाहर प्रियंका ने 12 सीटों पर प्रचार किया था, जिसमें 11 पर कांग्रेस प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा था, जिनमें सिल्चर, अंबाला, हिसार, रोहतक, उत्तर पूर्वी दिल्ली, दक्षिण दिल्ली, रतलाम एवं इंदौर जैसे कुछ प्रमुख सीट हैं। कुल मिलाकर प्रियंका गांधी ने जिन 31 सीटों पर प्रचार किया, उनमें से 30 सीट पर कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। प्रियंका का सक्रिय राजनीति में आना पार्टी के लिए बिलकुल भी फायदेमंद नहीं रहा. यहां तक कि पंजाब राज्य, जहां पार्टी ने 13 में से 8 सीटें जीती, वहां भी भटिंडा और गुरदासपुर जैसी सीट भी गंवा बैठी।

अपने क्षेत्रों के लिए प्रचार करने के साथ-साथ प्रियंका ने भाजपा का मत प्रतिशत काटने की अपने मंशा भी खुलकर ज़ाहिर की थी। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान कहा भी था, ‘मेरा यूपी का हर कैंडीडेट भाजपा का वोट प्रतिशत काटने के लिए खड़ा हुआ है।‘ हालांकि परिणामों अगर देखें, तो कांग्रेस ने भाजपा से ज़्यादा अपने ही गुप्त सहयोगियों का वोट प्रतिशत काटा है, क्योंकि भाजपा कड़ी टक्कर के बावजूद 80 में से 64 सीटों पर विजयी रही है। …बड़े बुज़ुर्गों ने सही कहा है, जो दूसरों के लिए गड्ढे खोदते हैं, वो अक्सर उसी गड्ढे में गिर जाते हैं।

लेफ्ट लिबरल मीडिया प्रियंका को इस तरीके से चित्रित कर रही थी, मानो वो पीएम मोदी के विरुद्ध कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र थी। मीडिया चाहती थी कि लोगों को ऐसा लगे, जैसे प्रियंका ने छड़ी घुमाई, और आम जनता की सारी मुसीबतें गायब! पर लोकसभा के परिणामों ने यह सिद्ध कर दिया है कि इस बार देश के नागरिक वंशवाद को नहीं बल्कि राष्ट्रवाद और योग्यता को तरजीह देते हैं। न तो प्रियंका गांधी की ‘इंदिरा गांधी से मिलती जुलती शक्ल’ काम आई, और न ही उनका अकूत राजनैतिक ज्ञान। ऐसे में अब कांग्रेस को अगली बार कांग्रेस को चुनाव जीतने के लिए नामदार की बजाए कामदार को चुनना चाहिए।

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