राजद के समक्ष अस्तित्व बचाने का खतरा.. क्या कारगार होगी ये नई रणनीति?

आरजेडी लालू

PC: BharatKhabar

‘फिर एक बार मोदी सरकार’ के नारे को बुलंद कर भाजपा ने 2014 के मुक़ाबले 2019 में और बड़ी जीत हासिल की है। भाजपा की माहविजय और मोदी सुनामी ऐसी चली की सभी राज्यवर पार्टियां अपने ही गढ़ से साफ हो गई। अपनी जातिवादी राजनीति के जरिये बिहार में दमखम बनाने में लालू की पार्टी राजद को 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद केंद्र मे झटका लगा और कैबिनेट से बाहर होना पड़ा था। वहीं अब 2019 में बीजेपी की प्रचंड बहुमत के साथ अब उनका प्रदेश में भी सूपड़ा साफ हो गया है। इस हार से यह जाहिर होता है कि, अब जनता जातिवाद की राजनीति में नहीं फंसने वाली है और ऐसे लोगों को राजनीति से बाहर करने के लिए वह उठ खड़े हुए हैं।

लालू यादव की पार्टी आरजेडी हमेशा से ही जातिवाद की राजनीति पर आधारित रहती रही है। लेकिन पार्टी इस साल के लोकसभा चुनाव में फ्लॉप साबित हुई है वो अपनी एक सीट भी बचा पाने में सफल नहीं हो पायी है। बिहार मे आरजेडी का जो हाल हुआ है उसके बारे में उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। लेकिन कहते हैं न जनता ही आदेश देती है और जनता ही सबक सिखाती है। ऐसे में बिहार की जनता ने जातिवाद की राजनीति से ऊपर उठकर नई राजनीति को चुना और आरजेडी का सूपड़ा साफ कर दिया। मोदी रथ रोकने के लिए राजद ने राज्य में महागठबंधन भी किया। इसमें कांग्रेस, रालोसपा, हम, वीआईपी सीपीआईएम शामिल रही थीं। आपको बता दें, लालू यादव की पार्टी के लिए यह ऐतिहासिक हार इसलिए है क्योंकि 1977 में पार्टी की स्थापना के बाद से इस चुनाव में यह पहली बार हुआ जब लोकसभा चुनावों में आरजेडी का खाता तक नहीं खुल पाया। राजद के सभी बड़े दिग्गजों को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा है। लालू परिवार और पार्टी को उम्मीद थी कि मीसा भारती पाटलिपुत्र सीट जीत लेंगी लेकिन उन्हें भी भाजपा के रामक्रपाल यादव से बुरी हरा मिली है।  

सारण से लालू यादव के समधि चंद्रिका राय भी अपनी सीट बचाने में असफल रहे। उनको भाजपा के राजीव प्रताप रूड़ी ने करारी शिकस्त दी। राजद के दिग्गज नेता ओर वैशाली से उम्मीदवार रघुवंश प्रसाद, बेगूसराय से तनवीर हसन, सिवान से बाहुबली नेता शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब जैसे दिग्गज नेताओं को भी हार का मुंह देखना पड़ा है। गौरतलब है कि, लालू की गैरमौजूगदी में पार्टी की ज़िम्मेदारी दोनों बेटों पर थीं जिसमे तेजस्वी अच्छी रणनीति बनाने में असफल साबित हुए।

लालू की पार्टी की बड़ी हार की एक और वजह यह भी रही कि, उनके अपने परिवार में दोनों बेटों और पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच मतभेद। चारा घोटाले मामले में लालू यादव जबसे जेल गये है तबसे उनकी पार्टी की स्थिति बिगड़ती ही जा रही है। इसका नतीजा यह हुआ कि, लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी का ही सूपड़ा साफ हो गया है। लालू यादव की अनुपस्थिति में उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव पार्टी की कमान सम्भाल रहे थे लेकिन वो भी जनता के बीच अपने संदेश को पहुंचाने में असफल रहे। अब आरजेडी अपनी रणनीति बदलने की तैयारी कर रही है, लेकिन यहां पर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि, क्या वह इसमे कामयाब हो पाएंगे? क्या बिहार की जनता उनके भ्रष्ट कामों, गुंडागर्दी और बेहद खराब रवैये को भुलाकर एक बार फिर उनपर भरोसा जताएगी? अगर राजद पार्टी को नई दिशा देने के लिए काम करेगी तो वह किसको फॉलो करेंगे और किस आधार पर आगे आने वाले समय में चुनाव लड़ते हैं, यह तो समय ही बताएगा।

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