सागरिका घोष बीजेपी पर निशाना साध रही थीं लेकिन वो खुद ही ट्रोलर का शिकार हो गयीं

(PC: India.com)

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की नागरिकता का मुद्दा देश भर में गरमा चुका है। जिसके बाद कांग्रेस समर्थकों की भी खूब खिंचाई की जाए रही है। ऐसा ही कुछ हुआ वरिष्ठ पत्रकार सागरिका घोष के साथ भी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का बचाव करते हुए सागरिका खुद बुरी फंस गईं।

दरअसल, सागरिका घोष ने एक ट्वीट करते हुए राहुल गांधी का विदेशी नागरिक होने की बात पर  बचाव किया। उन्होनें लिखा कि “दिलचस्प बात है कि, ‘भाजपा, राहुल गांधी पर लगे कथित ब्रिटिश नागरिकता के आरोप पर खूब शोर मचा रही है, जबकि खुद इस पार्टी के कोर समर्थक अमेरिका के नागरिक और निवासी हैं।“ इस ट्वीट के बाद वरिष्ठ पत्रकार सागरिका घोष को सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल किया जा रहा है।

इस ट्वीट से ऐसा लगता है कि वरिष्ठ पत्रकार को किसी देश के नागरिक होने और किसी पार्टी का समर्थक होने में फर्क नज़र नहीं आता। उनके इस ट्वीट पर यूजर्स ने उन्हें जमकर सुनाया और बताया भी कि आखिर पार्टी का समर्थन करने और देश में चुनाव लड़ने में कितना फर्क है। कई यूजर्स ने तो सागरिका को ट्वीट करने से पहले होमवर्क करने की सलाह तक दे डाली।

यूजर ने लिखा कि ‘सागरिका जी, ‘उम्मीद है कि आपको किसी पार्टी का समर्थन करने और चुनाव लड़ने में अंतर पता होगा। यूजर ने आगे लिखा कि ‘क्या हमारा संविधान विदेशी लोगों को किसी पार्टी का समर्थन करने से रोकता है ?’ लेकिन देश के संविधान के अनुसार चुनाव लड़ने के लिए देश का नागरिक होना ज़रूरी है।‘ किसी पार्टी का समर्थन करने और चुनाव में कैंडिडेट के तौर पर खड़े होने में अंतर है।‘

चुनाव लड़ने के लिए देश का नागरिक होना जरूरी है लेकिन लोकतंत्र में सबको ये हक़ है कि वो जिसे चाहे उस पार्टी को सपोर्ट कर सकते हैं। सागरिका घोष एक पत्रकार है तो उन्हें इस बात का ख्याल तो रखना ही चाहिए था। इससे वो ट्रोल होने से बच जातीं और साथ ही उनकी पत्रकारिता पर भी सवाल नही उठते। वैसे भी सागरिका घोष अपना एजेंडा साधने और कांग्रेस के हाई कमान को खुश करने का एक मौका नहीं छोड़ती। शायद वो भी पत्रकार सुप्रिया श्रीनेत की तरह कांग्रेस पार्टी से इनाम की आस लगाये बैठीं हैं। 

पत्रकार का काम होता है निष्पक्ष होकर गलत राजनीति की पोल खोलना न की स्वयं उसका हिस्सा बन जाना। लेकिन सागरिका जैसे पत्रकार सरकार के विपक्ष की भूमिका निभाते निभाते विपक्ष की खामियों  को नज़रअंदाज़ कर देते है और उन पर पर्दा डालने का काम करने लग जाते है। ऐसे में पत्रकारिता पर से लोगों का विश्वास उठने लगता है। जरूरी है कि ध्यान रखा जाए कि किसी राजनीतिक पार्टी या व्यक्ति का समर्थन किया जाए, लेकिन पत्रकारिता की साख को दांव पर रख कर नहीं। 

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