हिंदुओं की आस्था के केंद्र कैलाश मानसरोवर पर भारत को मिली बड़ी कामयाबी, चीन-नेपाल भी आए साथ

कैलाश मानसरोवर यूनेस्को विश्व धरोहर

PC : jagran

हिंदू धर्म में खास महत्व रखने वाले कैलाश मानसरोवर के सरंक्षण की दिशा में बड़ी सफलता मिली है। यूनेस्को ने कैलाश मानसरोवर को विश्व धरोहर का दर्जा देने की दिशा में सहमति दी है और इसे अंतरिम सूची में भी शामिल किया है। इस तरह से यह भारत द्वारा पवित्र कैलास को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने की दिशा में यह एक बड़ी सफलता है। भारत इसकी मांग दशकों से करता आ रहा है, जिसमें हमें अब जाकर कामयाबी मिली है। बता दें कि, जो प्रस्ताव तैयार किया गया है उसके अनुसार अंतर्राष्ट्रीय महत्व वाले इस क्षेत्र को प्राकृतिक के साथ ही सांस्कृतिक श्रेणी की संरक्षित धरोहर का दर्जा मिलेगा।

बता दें कि, कैलास भूक्षेत्र केवल भारत ही नहीं बल्कि चीन व नेपाल की भी संयुक्त धरोहर है। चीन व नेपाल विश्व धरोहर की मांग को लेकर पहले ही यूनेस्को को प्रस्ताव भेज चुके थे। अब भारत ने भी अपने हिस्से वाले कैलास के भूक्षेत्र को यूनेस्को से प्रारंभिक मंजूरी प्रदान करा दी है। भारत का यह हिस्सा 7120 वर्ग किलोमीटर का है। भारत के इस भू भाग को यूनेस्को द्वारा प्रारंभिक मंजूरी मिलने के बाद अब कैलास का 31252 वर्ग किलोमीटर भूक्षेत्र यूनेस्को की अंतरिम सूची में आ गया है। इस पवित्र भूक्षेत्र के विश्व धरोहर बनने से इस पूरे क्षेत्र का विकास तो होगा ही और कैलास मानसरोवर की यात्रा भी काफी बेहतर हो जाएगी।

कैलास भूक्षेत्र के विश्व धरोहर घोषित हो जाने से सबसे ज्यादा फायदा कैलास मानसरोवर की यात्रा को होने वाला है। इस यात्रा का सबसे ज्यादा 1433 किलोमीटर मार्ग भारत में पड़ता है। इसमें 127 किमी पैदल और 1306 किमी यात्रा वाहन से की जाती है। वहीं यात्रा का 464 किमी का मार्ग चीन में पड़ता है। इसमें 53 किमी पैदल और 411 किमी वाहन से होती है। बता दें कि, श्रद्दालुओं को भारत में पड़ने वाले मार्ग को तय करने में 14 दिन और चीन में पड़ने वाले मार्ग को तय करने में 12 दिन लगते हैं।

रिपोर्ट्स के अनुसार भारत के कैलाश भूक्षेत्र को विश्व धरोहर की प्रारंभिक सहमित दिलाने में देहरादून स्थित यूनेस्को के कैटेगरी-दो सेंटर की अहम भूमिका रही है। यह सेंटर एशिया पैसिफिक क्षेत्र की प्राकृतिक धरोहरों को विश्व पटल पर पहचान दिलाने का काम करता है। इस कैटेगरी सेंटर के निदेशक डॉ. वीबी माथुर ने मीडिया को बताया है कि अंतरिम सूची में पवित्र कैलाश भूक्षेत्र को स्थान मिल जाने के बाद नियमानुसार एक साल तक विभिन्न स्तर पर काम करना होता है। इसके बाद मुख्य प्रस्ताव बनाकर यूनेस्को को भेजा जाएगा और उसके बाद कैलाश भूक्षेत्र को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने की कार्रवाई को अंतिम रूप दिया जाएगा।

आपको बता दें कि, उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) ने कैलाश भूक्षेत्र के 14 सेटेलाइट मैप तैयार किए हैं। इसमें प्राकृतिक व सांस्कृतिक विविधता व कैलाश भूक्षेत्र में आ रहे बदलावों को इंगित किया गया है। इन तथ्यों के आधार पर ही यूनेस्को के कैटेगरी-दो सेंटर ने प्रस्ताव तैयार किया है।

हालांकि, कैलाश मानसरोवर के यात्रा मार्ग को प्रारंभिक प्रस्ताव में अंतिम रूप नहीं दिया गया है। लेकिन फिर भी अभी तक उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के मार्ग को ही सबसे बेहतर बताय गया है। इस पर अभी और विचार-विमर्श किया जाना है। कुल मिलाकर यह समस्त भारतवासियों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है।

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